Bundelkhand News : ग्राउंड रिपोर्ट : समस्याओं के दुष्चक्र में उलझा है बुन्देलखण्ड का किसान

Bundelkhand News : आखिरकार खेती-किसानी (Farming) से जुड़ी रोजमर्रा की दिक्कतें क्या हैं और लोगों का कृषि से मोहभंग क्यों हो रहा है।

Update: 2021-11-03 11:18 GMT

(फिर चर्चाओं में बुंदेलखंड के किसानों की आत्महत्याएं और आकस्मिक मौतें)

झांसी से लक्ष्मी नारायण शर्मा की ग्राउंड रिपोर्ट

Bundelkhand News। बुन्देलखण्ड (Bundelkhand) में किसानों की खुदकुशी (Farmers Suicide) और आकस्मिक मौत की घटनाएं एक बार फिर से राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है। ललितपुर (Lalitpur) में हुई किसानों की मौतों के बाद विपक्षी दलों और किसान संगठनों के नेताओं के इस क्षेत्र में आगमन से बुन्देलखण्ड के किसानों की समस्याएं चर्चा के केंद्र में आ गई हैं। इन चहलकदमियों से इतर हमने किसानों के बीच जाकर यह समझने का प्रयास किया कि आखिरकार खेती-किसानी (Farming) से जुड़ी रोजमर्रा की दिक्कतें क्या हैं और लोगों का कृषि से मोहभंग क्यों हो रहा है। हमने झांसी (Jhansi) के अठोदना गांव पहुँचकर कई किसानों से बातचीत कर मूलभूत समस्याओं को समझने की कोशिश की। 

कर्ज के जंजाल में फंसा किसान

गांव के बाहर हमारी मुलाकात सबसे पहले करन सिंह पाल नाम के किसान से हुई। करन बटाई पर खेती करते हैं। उन्होंने बताया कि मूंगफली, उर्द और मूंग की फसल उगाते हैं लेकिन इस बार बारिश अधिक होने के कारण फसल खराब हो गई। आखिर में गल गया। बारिश की वजह से तिल हुई ही नहीं है। खाद की बड़ी समस्या है। दो-दो तीन-तीन दिन चक्कर काटना पड़ता है, लाइन लगाना पड़ता है। तब खाद मिलता है। कोई कहता है नन्दनपुरा में मिलेगा, कोई कहता है शहर में मिलेगा तो कोई कहता है डेली में मिलेगा। तीन-तीन दिन चक्कर काटते हैं। अभी चना बोना है लेकिन खाद ही नहीं मिल रहा है। खेत सूखने लगे हैं। 

Full View

बेकार चली गई मेहनत

घनश्याम बताते हैं कि वे मूंगफली, गेंहू और मटर की फसल उगाते हैं। सब ऊपर वाले की देन है। कभी घाटा भी हो सकता है कभी फायदा भी। इस बार मूंगफली बोई थी लेकिन थोड़ी कमजोर है। पानी समय से नहीं बरसने से मूंगफली पर असर पड़ा। मूंग और उर्द बोया था लेकिन बारिश से उर्द सड़ गया। लागत तो निकल गई लेकिन मेहनत नहीं निकली। खाद के लिए दुकान में भीड़भाड़ हो रही है। दुकानदार दबा ले रहे हैं। अपनी अटकी है तो ग्यारह सौ की बारह सौ में लेना पड़ेगा। सरकार को इन चीजो पर सुनवाई करनी चाहिए।

घर चलाने के लिए मजदूरी

बंटाई पर खेती करने वाली ममता बताती हैं कि वे उर्द और मूंग की खेती करती हैं। इस बार कुछ भी नहीं हुआ। पानी बरस गया, इससे सब सड़ गया। लागत पता नहीं कैसे निकलेगा। जुतावनी और अन्य काम में लागत लगाई लेकिन कुछ नहीं निकला। मुआवजा की लिखापढ़ी हो गई थी कि मिलेंगे पैसे। बुवाई की तैयारी कर रहे हैं। अभी खाद भी नहीं मिल पाया है। हम खाद प्राइवेट से ले आते हैं। मजदूरी करके किसी तरह से पेट भर रहे हैं। खेती के अलावा मजदूरी का काम करते हैं। खेत बंटाई पर लिए हैं। 

खेती से हो रहा मोहभंग

खेती के साथ पशुपालन का भी काम करने वाले शिशुपाल बताते हैं कि उर्द और मूंगफली बोई थी लेकिन कुछ नहीं हुआ। लागत भी नहीं निकली। दो बीघा में मूंगफली बोई थी और पूरे खेत में उर्द थी। इस बार कुछ नहीं बो रहे। कोई फायदा नहीं है। दो हज़ार रुपये दे दो तो खाद मिल जाएगा नहीं तो महीनों लगे रहो लाइन में। इस बार जो फसल बोई थी, उसमें कम से कम पन्द्रह हजार का घाटा हुआ है। घर चलाने के लिए पशुपालन कर रहे हैं लेकिन भूसा भी महंगा मिल रहा है। आठ सौ रुपये क्विंटल भूसा मिला है।

Tags:    

Similar News