Helang Ground Report : खाकी के खौफनाक रवैये के बीच आंखों की कोर से आंसू पोंछती हैलंग की घसियारी महिलाओं का संघर्ष चिपको आंदोलन की राह पर
चिपको के पचास साल बाद फिर चमोली जिले में रैणी की जगह हैलंग में और गौरा देवी की जगह मंदोदरी देवी के नेतृत्व में अपना गोचर जंगल बचाने की लड़ाई देखने को मिल रही है, तब भी ग्रामीणों के खिलाफ सरकार थी और लड़ाई के शुरू में मुट्ठी भर लोग, आज हैलंग में भी लड़ाई सरकार से और शुरुआती दौर में लड़ने वाले मुट्ठी भर लोग....
सलीम मलिक की ग्राउंड रिपोर्ट
Uttarakhand Helang news : उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ शहर और पीपलकोटी के बीच ऑल वेदर रोड के किनारे एक पहाड़ी की तलहटी में बसा हैलंग गांव आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इसी महीने जुलाई पंद्रह की ही तो बात है जब आसमान में सावन की घटाएं और सूरज की तपिश दोनो को महसूस करती इस हेलंग की धरती पर वह घटना घटी जिसने एक अपरिचित गांव हेलंग को राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया।
गांव की मंदोदरी देवी गांव के जिस गोचर से घास ला रही थी, उसे विष्णुगाड़-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना के लिए बनने वाली सुरंग के मलवा डंपिंग जोन के लिए कम्पनी के हवाले कर दिया गया था। मंदोदरी देवी के इस दुस्साहस की सजा के तौर पर कम्पनी हितों की सुरक्षा में तैनात केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के जवानों की भारी-भरकम मौजूदगी के बीच पुलिस ने मंदोदरी देवी और उनके साथ उनकी देवरानी लीला देवी, विपिन भंडारी के घास के गट्ठर छीनते हुए एक ढाई साल के बच्ची दीया के साथ गिरफ्तार कर लिया।
छः घंटे की हिरासत के बाद इन महिलाओं को उत्तराखंड पुलिस एक्ट के तहत ढाई-ढाई सौ जुर्माने के बाद छोड़ा गया। पुलिसिया बदसलूकी का यह पूरा नजारा मंदोदरी देवी की बेटी संगीता भंडारी ने अपने मोबाइल में कैद किया। यह वीडियो वायरल होते ही महिलाओं के तमाम बलिदानों और अपमान के घूंट पीने के बाद बने उत्तराखंड राज्य में गोचर से घास लाने पर मंदोदरी देवी के साथ हुई इस बदसलूकी की घटना ने पूरे प्रदेश को स्तब्ध करके रख दिया।
खाकी वर्दी के खौफनाक रवैये के बीच आंखों की कोर से आंसू पोंछती इन महिलाओं के इस दृश्य ने हर संवेदनशील व्यक्ति को उद्वेलित कर डाला, लेकिन चमोली जिले का पूरा प्रशासन अपने जिलाधिकारी हिमांशु खुराना की शह पर इन महिलाओं को ही अपराधी करार देने पर उतारू हो गया। खुद जिलाधिकारी ट्विटर हैंडल पर महिलाओं को अपराधी साबित करने के इस पूरे ऑपरेशन को लीड करते रहे, लेकिन घटना इतनी शर्मनाक थी कि जिलाधिकारी के इन प्रयासों ने लोगों के गुस्से की आग में घी का काम किया। आनन-फानन में बिना किसी नेतृत्व के लोग इस घटना के विरोध में आ गए।
विभिन्न सामाजिक, राजनैतिक संगठनों के साथ प्रदेश के कोने-कोने से इस घटना के विरोध में जब आवाजें उठने लगीं तो राज्य सरकार को भी इसकी गंभीरता का एहसास होने लगा। सरकार ने घटना की जांच गढ़वाल कमिश्नर से कराए जाने के आदेश दिए, लेकिन लोगों को पुरानी जांचों के अनुभव की रोशनी में न तो इस जांच के आदेश पर और न ही होने वाली जांच पर कोई भरोसा हुआ। लिहाजा सभी आंदोलनकारी ताकतों ने 24 जुलाई हेलंग चलो का आह्वान कर दिया।
22 जुलाई तक के इस घटनाक्रम के बाद उत्तराखंड के दूर-दराज के आंदोलनकारी 23 जुलाई की सुबह से ही हेलंग के रवाना होने शुरू हो गए। शाम होते-होते आंदोलनकारियों का कारवां हेलंग के आस-पास की जगहों पर पहुंच चुका था, जबकि आंदोलन की सुगबुगाहट के बीच जिला प्रशासन के लोग ग्रामीणों को हेलंग कार्यक्रम में शामिल न होने के लिए दबाव बना रहे थे। 24 जुलाई रविवार ग्यारह बजे के वक्त तक तकरीबन सभी लोग हेलंग के उस घटनास्थल पर मौजूद थे जहां से उठी चिंगारी आग बनने की प्रक्रिया में थी। जिला प्रशासन और कम्पनी लठेतों के खिलाफ नारेबाजी के साथ जुलूस बिजली कम्पनी परियोजना के मुख्य गेट पहुंचा जहां जनसभा के संचालन की कमान जोशीमठ निवासी भाकपा माले नेता अतुल सती ने संभालते हुए घटनाक्रम का ब्यौरा दिया।
जनसभा को हेलंग पहुंचे दर्जनों संगठनों के प्रतिनिधियों ने संबोधित करते हुए घसियारी महिलाओं के साथ हुई इस बदसलूकी को उत्तराखंडी अस्मिता पर हमला मानते हुए इसके लिए पूरी तरह जिला प्रशासन को जिम्मेदार माना। इंद्रेश मैखुरी ने पुलिस प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाते हुए मंदोदरी देवी की हिरासत को गैरकानूनी करार दिया। मैखुरी ने जिलाधिकारी हिमांशु खुराना को निशाने पर रखते हुए उन्हें टीएचडीसी बिजली कम्पनी का आदमी बताते हुए उनकी जमकर मजम्मत की।
हेलंग की इस जनसभा में हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं में शुमार डीके जोशी ने इस घटना के कानूनी पहलुओं पर रोशनी डालते हुए कहा कि अगर सरकार ने इस मामले में इंसाफ नहीं किया तो इस मामले को न्यायालय की चौखट पर भी ले जाया जा सकता है। बागेश्वर गरुड़ के सामाजिक कार्यकर्ता भुवन पाठक ने चिलचिलाती धूप में आंदोलन पर बैठी महिलाओं के धैर्य को आंदोलन की ताक़त बताते हुए कहा कि हेलंग में महिलाओं से घास का गट्ठर छीनना सामान्य नहीं बल्कि दमन की घटना का ट्रेलर था। इस घटना ने हेलंग को दमन का प्रतीक बना दिया है। जो हेलंग तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई बन गई है।
हेलंग में सभा के बाद सभा स्थल पर इस बात का भी फैसला लिया गया कि जब तक आन्दोलन की पांच मांगों को सरकार द्वारा माना नहीं जाता तब तक आंदोलन जारी रहेगा। इन मांगों में महिलाओं से घास छीनने, उन्हें छह घंटे हिरासत में रखने और डेढ़-दो साल की बच्ची को एक घंटे तक कस्टडी में रखने वाले सीआईएसएफ़ और पुलिस कर्मियों को निलंबित करके उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही किए जाने, पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर उत्पीड़ित महिलाओं के विरुद्ध अभियान चलाये हुए चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना को तत्काल उनके पद से तत्काल हटाये जाने और पहली बार जिलाधिकारी नियुक्त होते ही ऐसी पूर्वाग्रहयुक्त सोच रखने वाले अधिकारी को भविष्य में किसी सार्वजनिक पद पर नियुक्त न किए जाने, वन पंचायत नियमावली व वनाधिकार कानून 2006 का उल्लंघन करके ली गयी वन पंचायत की गैरकानूनी स्वीकृति को रद्द करने के साथ ही इस अवैध अनुमति को आधार बना कर पेड़ काटने वालों के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही किए जाने, बिजली कम्पनी टीएचडीसी के खिलाफ नदी में मलवा डालने और पेड़ काटने के जुर्म में मुकदमा दर्ज करते हुए टीएचडीसी सहित राज्य की सभी परियोजनाओ के कामों की मॉनिटरिंग (अनुश्रवण) में स्थानीय जनता की भागीदारी की व्यवस्था के अलावा हेलंग प्रकरण की जांच गढ़वाल कमिश्नर की जगह हाईकोर्ट के सेवारत या रिटायर्ड जज से करवाया जाना शामिल है।
आम राय से हेलंग के आन्दोलन को व्यापक बनाने तथा उत्तराखण्ड की अस्मिता तथा जल-जंगल-जमीन आधारित नवनिर्माण के संकल्प को दोहराते हुए सहमति बनी कि पहाड़ का जीवन यहां की महिलाओं के श्रम और कौशल पर निर्भर रहा है। पहाड़ के विकास तथा नीतियों के केन्द्र में महिलाओं के सपनों व उनकी समस्याओं को रखा जाए।
आंदोलन के अगले चरण की बाबत सोमवार 1 अगस्त को इन मांगों के समर्थन में सभी जिला और तहसील मुख्यालयों पर धरने-प्रदर्शन के साथ ज्ञापन दिए जाने के अलावा इन डिमांड ऑफ चार्टर को लेकर गढ़वाल कमिश्नर और मुख्य सचिव से मिलने और मांग पूरी न होने की सूरत में राजधानी देहरादून में विधानसभा के साथ ही मुख्यमंत्री घेराव के कार्यक्रम भी तय किए गए।
हेलंग कूच में शामिल लोग
24 जुलाई के इस हेलंग कूच में विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। जिनमें विभिन्न गांवो की महिला मंगल दल लंगासी पैनी हेलंग ऊर्गम गुलाब कोटि आदि प्रमुख थे। इसके अलावा इन्द्रेश मैखुरी, पीसी तिवारी, अतुल सती, तरूण जोशी, भुवन पाठक, ईश्वरी दत्त जोशी, एडवोकेट डीके जोशी, एडवोकेट कैलाश जोशी, चारु तिवारी, ललिता रावत, हीरा जंगपांगी, प्रकाश चन्द्र जोशी, अनिल स्वामी, रमेश कृषक, , नरेन्द्र पोखरियाल, अरुण कुकसाल, योगेन्द्र कांडपाल, सीताराम बहुगुणा, आनन्द नेगी, मदन मोहन चमोली, मुनीष कुमार, मनीष सुंदरियाल, प्रकाश जोशी, हीरा जंगपांगी, गोपाल लोहिया, गोपाल लोधियाल, आनंद बिष्ट, लक्ष्मण आर्या, सुंदर बरोलिया, शिवानी पांडे, भारती पाण्डे, राजीवनयन बहुगुणा, त्रिलोचन भट्ट, सलीम मलिक, जसवंत सिंह, जय नारायण नौटियाल, संजय भंडारी, मंदोदरी देवी, विनोद जोशी आदि शामिल रहे।
हेलंग का बटर फ्लाई इंपेक्ट कहां तक पहुंचेगा ?
हैलंग में 24 जुलाई को उत्तराखंड के कोने कोने से हुए आंदोलनकारियों के इस जुटान को लेकर एक बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि क्या यह छोटी सी लड़ाई किसी बड़े जनांदोलन की बुनियाद साबित हो सकती है ? चिपको आंदोलन की पचासवीं वर्षगांठ के मौके पर हुए इत्तेफाक को बटरफ्लाई इंपेक्ट के तौर पर भी देखा जाने लगा है। गणित जिनका विषय है उनमें से शायद ही कोई chaos theory से अपरिचित हो। chaos की इस थ्योरी के अनुसार विश्व की छोटी से छोटी घटना के परिणाम बहुत बड़े भी हो सकते हैं। अपनी इस थ्योरी में chaos एक तितली के पंख फड़फड़ाने से कहीं दूर उठे बड़े बवंडर को जोड़ते हुए इसे बटरफ्लाई इंपेक्ट करार देते हैं। उनके ही शब्दों में "तितली के पंख फड़फड़ाने की वजह से होने वाले परिणामो के स्वरुप जो परिवर्तन हुए, उससे विश्व के एक हिस्से में टर्नाडो आ गया।"
Chaos की इसी थ्योरी के आलोक में कई लोग हैलंग की इस घटना को उत्तराखंड की धरती पर बड़े आंदोलन की बुनियाद के तौर पर देख रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण व चिपको आंदोलन पर मीडिया की भूमिका पर शोध कर रही शोधार्थी शिवानी पाण्डे के मुताबिक जिस लोकतांत्रिक ढंग से जंगलों की सुरक्षा के लिए आज से पचास साल पहले चिपको आंदोलन शुरू हुआ था, हेलंग के इस आंदोलन ने उसकी याद ताजा कर दी है। अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर शिवानी ने चिपको आंदोलन का जिक्र करते हुए लिखा है कि "50 साल पहले जिस जमीन से चिपको का आंदोलन शुरू हुआ था। आज उसी जमीन से हेलंग की घसियारियों का अपने ही जंगलों पर हक हकूक के लिए एक नया आंदोलन शुरू हो रहा है। 50 साल पहले चिपको ने ना केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में पर्यावरण की बहस को न केवल बदला बल्कि नीति निर्माताओं की कलम पर भी ले कर के आए। आज हैलंग की महिलाएं एक नया आंदोलन खड़ा कर रही है। उम्मीद है यह आंदोलन चिपको की तरह एक बड़ी बहस और बदलाव की तरह हमारे देश और समाज को लेकर जाएगा।"
यहां बता दे कि जंगल बचाने के लिए अपने आप में विश्व का अनूठा आंदोलन "चिपको आंदोलन" रहा है। जंगल काटने के ठेकेदार के आदमी आरी लेकर खड़े होते थे और गांव की महिलाओं उन पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ों से लिपट जाती थीं। अनायास नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र संघ तक में गूंजने वाला यह आंदोलन इसी चमोली जिले के रैणी गांव से निकला था, जिसकी सूत्रधार गौरा देवी थी। चिपको के पचास साल बाद फिर चमोली जिले में रैणी की जगह हैलंग में और गौरा देवी की जगह मंदोदरी देवी के नेतृत्व में अपना गोचर जंगल बचाने की लड़ाई देखने को मिल रही है। तब भी ग्रामीणों के खिलाफ सरकार थी और लड़ाई के शुरू में मुट्ठी भर लोग। आज हैलंग में भी लड़ाई सरकार से और शुरुआती दौर में लड़ने वाले मुट्ठी भर लोग।