Corruption in PM Awas Yojna: गाजियाबाद में पीएम आवास योजना में भयंकर लूटपाट, नगर निगम वालों को घूस देने के बावजूद नहीं मिले घर

Corruption in PM Awas Yojna: प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना में आवास दिलवाने के नाम पर शहर के ग़रीब तबकों से धन की उगाही, गाज़ियाबाद के कनावनी एक्सटेंशन ब्लाक बी में वसूल ली गयी है भारी—भरकम, मगर आवास तो दूर फॉर्म तक हो चुका है रिजेक्ट

Update: 2021-10-14 09:52 GMT

रिक्शाचालक सुरेश राम : नगर निगम कर्मियों को हजारों रुपये घूस देने के बावजूद नहीं मिला आवास

Corruption in PM Awas Yojna: इसी माह 5 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लखनऊ में अमृत महोत्सव पर 75000 लोगों को शहरी आवास की चाबी सौंपी। उज्ज्वला योजना के बाद मोदी सरकार की सबसे बड़ी योजनाओं में से एक प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना 7.5 करोड़ लाख की लागत से भारत सरकार चला रही है, मगर इस योजना के ऐसे न जाने कितने आवेदक हैं, जो दो-दो साल से आवास का इंतज़ार कर रहे हैं।

अमृत महोत्सव यानी 5 अक्टूबर को गाज़ियाबाद में कुल 538 लोगों को आवास दिये जाने की बात कही गयी। मगर जनज्वार की पड़ताल में सामने आया कि गाज़ियाबाद के कनावनी एक्सटेंशन ब्लाक बी में ऐसे बहुत से लोगों से आवास पास कराने के नाम पर बीते 2 साल में हज़ारों रुपए लेने के बाद भी प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना के तहत कोई आवास या ढाई लाख की धनराशि नहीं मिली है।

कनावनी एक्सटेंशन ब्लाक बी में रहने वाले बिहार मूल के सुनील बताते हैं, मैंने आवास के लिए 2019 में प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना में फॉर्म भरा था, लेक़िन आज दो—ढ़ाई साल से ऊपर हो गये कोई घर नहीं मिला। अभी तक मैं नगर निगम वालों को 13-14 हजार रुपया दे चुका हूँ, जब वो जाँच या कुछ चीज़ के लिए आते तो मुझसे दो-तीन हज़ार रुपया ले जाते थे। जब भी मैं नगर निगम कार्यालय जाता हूँ तो वहाँ के अधिकारी बताते हैं कि कुछ दिन बाद आवास का पैसा आ जाएगा, लेकिन आवास का पैसा अभी तक नहीं मिला है।


नगर निगम अधिकारियों को अपने खून—पसीने की कमाई के हजारों रुपये घूस देने के बावजूद इन लोगों के फॉर्म तक कर दिये गये रिजेक्ट

बकौल सुनील, 'जब मैंने फॉर्म भरा उसके कुछ ही दिन बाद नगर निगम से एक अधिकारी आया था और जाँच -पड़ताल के नाम पर पहली बार मुझसे 3000 रुपए ले गया था। नगर निगम के अधिकारी से मैंने पूछा था, पैसे क्यों लेते हो, तो उसने बताया आपके आवास के लिए जो पैसे आने वाले हैं, उसमें पैसे लगेंगे, इसलिए मैं तुम से पैसा ले रहा हूँ। ऐसे ही वह हर दो महीने पर मुझसे पैसा लेने आ जाता था। किसी तरह इस टूटे—फूटे कच्चे मकान में किसी तरह गुज़ारा कर रहा हूं। मेरे पास बच्ची को पढ़ाने के लिए पैसे तक नहीं हैं। मैं महीने का 7-8 हज़ार रुपया मुश्किल से कमा लेता हूँ। जितना महीने का कमा नहीं पाता, उससे कहीं ज्यादा पैसा तो आवास के लिए दे दिया। आवास पास कराने के लिए पैसा ब्याज पर लेकर दिया था। मैं सरकार से बस यही कहना चाहता हूँ कि जो मैंने आवास के लिए फॉर्म डाला है उसे किसी भी तरह पास कर दे। मेरे परिवार को रहने के लिए 25 गज़ में ही एक मेरा अपना पक्का मकान हो जाए, जहाँ मैं सुरक्षित तरीके से परिवार और बच्ची के साथ रह सकूं, बरसात के पानी और कीड़े-मकौड़ों से तो राहत मिलेंगी।

सुनील आगे कहते हैं, 'मैं बीते 8 साल से यहीं गाजियाबाद में ई-रिक्शा चला रहा हूँ। इससे रोज़ 400 रुपए तक की आमदनी हो जाती है। परिवार में मेरे अलावा 3 लोग हैं— माँ, बीवी और एक छोटी बच्ची। 25 गज़ की इस कच्चे मकान में बरसात और गर्मी के मौसम में काफी ज्यादा दिक़्क़त होती है। हमेशा कीड़े-मकौड़ों के आने का डर रहता है। बरसात के समय घर में पूरे जांघ भर पानी भर जाता है, निकासी की कोई जग़ह नहीं है। हालांकि ये जल निकासी की समस्या सुनील की ही नहीं पूरे कनावनी की है। कनावनी का पूरा इलाक़ा 22 बीघा के नाम से जाना जाता है और पूरे 22 बीघे में कहीं नाला नहीं है। सारा गन्दा पानी गाँव के खेतों में बहता हैं। कनावनी की गली और नाली में कोई खास ज्यादा फ़र्क नहीं है।

प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना की वेबसाइट पर आधिकारिक डाटा देखें तो अभी तक 113.56 लाख आवास पास किये गये, जिनमें से 87.95 लाख घरों को निर्माणाधीन दिखाया गया है और 50.83 लाख आवास प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनकर तैयार हैं। गाज़ियाबाद के कनावनी में ऐसे भी लोग हैं, जो 2-2 साल से घर की उम्मीद लगाए बैठे हैं, लेकिन इन्हें अभी तक आवास नहीं मिल पाया है। आवास पास कराने के लिए लोग नगर निगम के कर्मचारियों को कई हजार रुपये दे चुके हैं, लेकिन इन्हें अभी तक कुछ नहीं मिला। कई लोगों का तो पैसा देने के बावजूद फॉर्म रिजेक्ट किया जा चुका है।

हजारों रुपये खर्च करने के बावजूद शिव कुमार का फॉर्म भी रिजेक्ट कर दिया गया। शिव कुमार कहते हैं, 'मैंने प्रधानमंत्री आवास योजना 2019 में घर के लिए फॉर्म भरा था। फॉर्म भरने के दूसरे दिन ही मेरे यहाँ नगर निगम से अधिकारी जाँच पड़ताल के लिए आये और मुझसे कहा कि 2 हज़ार रुपए दो तुम्हारा फॉर्म ओके कर देंगे, लेकिन मैंने उन्हें 1000 रुपए दिये। उसके कुछ दिन बाद एक फ़ोन आया और मुझसे कहा कि फॉर्म के लिए आ रहे हैं। फ़िर मुझसे दो हज़ार रुपये की माँग की गयी। मैंने फिर एक हज़ार रुपये दिये। खुद को नगर निगम का अधिकारी बताने वाले उस व्यक्ति ने कहा, छह महीने बाद प्रधानमंत्री शहरी आवा योजना का पैसा खाते में आ जायेगा, मगर पैसे तो दूर छह माह तक उस व्यक्ति का फोन तक नहीं आया।

कोई कार्रवाई न होते देख जब शिव कुमार नगर निगम के स्थानीय कार्यालय में इनक्वायरी के लिए गये तो वहाँ पता चला लिस्ट में नाम है, पैसे मिल जाएंगे। उसके बाद लॉकडाउन लग गया, फिर वह दो महीने बाद नगर निगम कार्यालय गये तो पता चला उनका फॉर्म ही रिजेक्ट हो गया है।नगर निगम के स्थानीय कार्यालय ने फॉर्म रिजेक्ट होने का कारण कोई नहीं बताया। शिव कुमार भी गाज़ियाबाद के कनवानी गाँव में ही रहते हैं।

शिव कुमार के घर के बगल में खुद के पैसे से अधूरा घर बनाकर रहे बिरजू पंडित अपनी तकलीफ साझा करते हुए कहते हैं, 'मैं यहीं गाज़ियाबाद में ऑटो चलाता हूँ, रोज़ 400-500 की आमदनी हो जाती है। यहाँ 10-11 साल से रह रहा हूँ, लेक़िन यहाँ रहने के लिए खुद का घर नहीं है। मैंने भी 2019 में प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना में घर के लिए फॉर्म डाला था। जब फॉर्म भरा तो उसके कुछ ही दिन बाद मेरे यहाँ नगर निगम के कुछ अधिकारी आये। उन्होंने सारी जाँच पड़ताल करने के बाद कहा कि फॉर्म को आगे बढ़ाने के लिए 1500 रुपये देना पड़ेंगे। मैंने उन्हें 1500 रुपये दे दिये। फिर से एक महीने बाद घर का फ़ोटो खींचने के लिए आए तो एक हज़ार रुपए की माँग की कि पैसे दे दो लिस्ट में तुम्हारा नाम आगे बढ़ा देंगे।'

बिरजू पंडित आगे कहते हैं, 'नगर निगम के कार्यालय में जाने पर हमसे कहा जाता है कि एक रुपए भी नहीं लगेगा, लेक़िन यहाँ आने पर पैसा माँगते है। 3 महीने बाद नगर निगम का एक कर्मचारी फिर आया और फॉर्म आगे बढ़ाने के नाम पर 1000 रुपया ले गया। अभी तक उस कर्मचारी ने करीब मुझसे 5-6 हज़ार रुपए ले लिए हैं, मगर मुझे कुछ भी हासिल नहीं हुआ। लॉकडाउन खुलने के बाद उस अधिकारी ने फिर से जाँच के नाम पर 1500 रुपए लिये। ये पूछने पर कि घर कब मिलेगा? उसने बताया लिस्ट में नाम आ गया है, जल्दी मिल जाएगा। 2 साल हो चुके हैं मुझे फाफर्म भरे हुए, आज तक घर नहीं मिल पाया है। मैं लॉकडाउन खुलने के दो या तीन महीने बाद कार्यालय गया तो पता चला कि मेरा लिस्ट से नाम रिजेक्ट हो गया है। रिजेक्ट क्यों हुआ, इसका कारण कुछ नहीं बताया है। निराश होकर मैंने खुद घर बनाना शुरू किया, लेकिन पैसे के अभाव में यह अधूरा पड़ा है। मेरे पास कुछ पैसे थे और बाकी लोगों से उधार माँग कर घर का काम शुरू किया था, अब पैसे नहीं है कि घर की छत बनायें, आगे का पता नहीं पूरा घर कैसे बनेगा? '

कनवानी एक्सटेंशन ब्लॉक बी में 20 साल रह रहे सुरेश राम मूलतः बिहार के रहने वाले हैं। तिलमिला कर कहते हैं, 'मैंने भी दो साल पहले प्रधानमंत्री शहरी आवास योज़ना में आवास के लिए फॉर्म भरा था, लेकिन आज ढाई साल बाद भी आवास की राशि नहीं मिली। जब मैं फॉर्म भरने गया था तो उस वक्त मुझसे 2 हज़ार रुपये लिए गये थे। उसके बाद नगर निगम से एक अधिकारी घर का फ़ोटो खींचने आया और उसने मेरे परिवार से 2 हज़ार रुपया लिया। मैंने पूछा भी कि पैसा क्यों ले रहे हो? तो स्थानीय नगर निगम का वो अधिकारी बोला, पैसा नहीं देने पर फॉर्म आगे नहीं बढ़ेगा। फॉर्म आगे बढ़ाने के लिए पैसा ले रहा हूँ।'

सुरेश राम कहते हैं, 'अब मैं आवास के बारे में पता करने के लिए ऑफ़िस में जाता हूँ तो कहते हैं, बारी बारी से सबका नंबर आएगा, उसी में तुम्हारा भी आ जायेगा। मैं ई-रिक्शे से महीने का 5-6 रुपया कमा लेता हूँ, इतने में क्या क्या करूँगा, लेकिन फिर भी किसी भी तरीके से एडजस्ट करके उसे आवास पास कराने के लिए पैसा दिया था। सरकार से यही कहना है कि मेरा आवास पास कर दे। मैं 25 गज के शेड से बनी झुग्गी में कैसे गुज़ारा कर रहा हूँ वो मैं ही जानता हूं। बरसात के मौसम में पूरा घर पानी से भर जाता है। झुग्गी की चादर ऐसे ही टूटी पड़ी है। गर्मी के समय यहां इतनी उमस होती है कि रहना मुश्किल हो जाता है। हम बस किसी भी तरह यहाँ जिंदगी काट रहे हैं। मेरी झुग्गी के दरवाजे के पास इतनी भी जगह नहीं है कि जो मकान नंबर प्लेट मिली है उसको लगा दें। ऐसे ही घर में रखा पड़ा है। मकान नंबर प्लेट लगा के क्या भी करेंगे, जब रहने लायक़ आवास ही नहीं है। सरकार बस हमें इस 25 गज़ में ही रहने लायक़ आवास पास कर दे और बाक़ी रोजी-रोटी का जैसे-तैसे गुज़ारा कर लेंगे।

आवास योजना के नाम पर लोगों से ठगी

प्रधानमंत्री आवास योजना के नाम पर गाज़ियाबाद के कनवानी एक्सटेंशन ब्लॉक बी में आवास के लिए आवेदन करने वाले लोगो से जाँच—पड़ताल की नाम पर मोटी रकम वसूली गई है। गाज़ियाबाद के कनवानी में कई लोग इसके शिकार हुए हैं। खुद को स्थानीय नगर निगम के अधिकारी बताकर कनवानी कॉलोनी में लोगों से हज़ारों रुपए वसूले हैं।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री आवास योजना में आवेदकों से किसी भी तरीक़े का कोई शुल्क चार्ज नहीं लिया जाता है। इसमें आवास के लिए आवेदन करने वाले लोगों को 2,50,000 लाख रुपए घर बनाने के लिए मिलते हैं। 5 अक्टूबर को गाज़ियाबाद में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 22 हज़ार घरों का डीपीआर बनकर लखनऊ में बनने की बात कही गयी है, मगर ऐसे लोग भी हैं जो 2-2 साल से प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास की आवंटन राशि का इंतज़ार कर रहे हैं। उन्हें इस राशि के लिए रिश्वत भी देना पड़ी, लेकिन फिर भी उन्हें कुछ नहीं मिला।


डूडा अधिकारी संजय कुमार

इस मुद्दे पर जब जनज्वार ने डूडा (District Urban Development Agency) अधिकारी का पक्ष जानने की कोशिश की तो पीओ संजय कुमार ने बताया, मेरी पोस्टिंग यहाँ 2 महीने पहले ही हुई है। मेरे सामने ऐसी कोई शिकायत नहीं आई है, लेकिन पूर्व की घटनाओं में ऐसी शिक़ायत दर्ज हुई है, जिसमें लोगों से पैसे मांगे गए हैं।

डूडा अधिकारी की मानें तो स्थानीय पार्षद, लोकल दलाल और कर्मचारियों की मिलीभगत से ये हुआ है। हालांकि डूडा को शिकायत मिलने पर ऐसे कर्मचारियों को संस्था से बाहर भी किया गया है। ऐसे 29 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और क़रीब 54 कर्मचारियों को ऐसी शिकायत मिलने पर बाहर किया गया है। प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना में 3 निजी कम्पनियाँ साथ मिलकर काम कर रही हैं। इन संस्थाओं ने शिक़ायत मिलने पर कर्मचारियों को बाहर निकाला है।

डूडा अधिकारी संजय कुमार कहते हैं, किसी भी आवेदक को प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना के सबंधित कोई जानकारी लेनी हो या फिर आवदेन करना हो तो सीधा डूडा कार्यालय आये या स्थानीय नगर निगम के कार्यालय में सम्पर्क करे। इसके लिए लोगों को जागरूक होना पड़ेगा। योजना के लिए किसी भी तरीके का कोई शुल्क नहीं देना होता है, अगर कोई शुल्क मांगे तो मना कर दें या फ़िर सीधे कार्यालय में सम्पर्क करें।गाजियाबाद में पीएम आवास योजना में भयंकर लूटपाट, नगर निगम वालों को घूस देने के बावजूद नहीं मिले घर

Tags:    

Similar News