Ground Report : दलित बच्चों की जुबानी जानिए कैसे झेलते हैं समाज की जहरीली जातिवादी मानसिकता
स्कूल पढ़ने वाले छोटे-छोटे बच्चों ने बताते हैं कि उनके साथ के बच्चे उन्हें स्कूल में डोम कहते हैं, डोम कहकर भगा देते हैं, साथ नहीं बैठाते....
अजय प्रकाश की रिपोर्ट
जनज्वार। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब दलितों के पैर धोते हैं तो उसकी चर्चा देश ही नहीं दुनियाभर में होती है। खबर यह भी होती है कि वह दलितों के बड़े नुमांइदे हैं और उनकी भलाई चाहते हैं। समाज का वह सबसे नीचला तबका जो शहरों को चमका देता है। अगर यह एक दिन काम बंद कर दे तो आपकी जिंदगी नरक बन जाती है। देवरिया की दलित बस्ती में अधिकांश सफाईकर्मी हैं। यहां की असल स्थिति क्या है, 'जनज्वार' ने इसकी पड़ताल की।
बस्ती में विधायक नाम से फेमस बुजुर्ग ने बताया हमारी बस्ती में स्थिति ये है कि आज कमाएं कल खाते हैं, कल कमाएं परसों खाते हैं। हम लोग परेशान हैं। नगर पालिका इस महीने की तनख्वाह उस महीने और उस महीने की तनख्वाह इस महीने देती है। नगरपालिका को छोड़कर कहां जाएगा रहेगा इसी जगह पर।
एक युवक ने बताया बाकि हर जगह दस हजार मिलते हैं लेकिन यहां पर सात हजार ही मिलते हैं। हम लोग ठेके पर काम करते हैं जिस दिन ड्यूटी नहीं करते हैं तो सैलरी कट जाती है। हर दिन काम करवाते हैं। बिना घूसखोरी के काम नहीं चलता है। रो-रोकर कर्मचारियों को पैसा मिलता है। जमींदार, नगरपालिका सबको घूस देना पड़ता है।
सफाईकर्मचारियों के लिए सुविधा नहीं
युवक ने बताया हम केवल अंडरवियर पहनकर नाले-सीवर में जाते हैं। उसपर भी ऊपर से मालिक लोग गाली दे देते हैं। मुंह-पैर में बांधने के लिए कोई कपड़ा नहीं मिलता है, नंगे ही जाते हैं।
बस्ती में रहने वाली महिलाओं ने बताया कि 12 हजार महीने प्रतिमाह तनख्वाह है लेकिन 7 हजार रुपये ही मिलता है। बाकि सब कमीशन में कट जाता है।
बस्ती में रहने वाले बच्चे बताते हैं कि वह बीते दो साल से स्कूल नहीं गए हैं। हमारे पास मोबाइल फोन ही नहीं हैं तो ऑनलाइन कैसे पढ़ाई करेंगे। कुछ बच्चों के पिता के पास फोन हैं लेकिन वह स्मार्टफोन नहीं है। उनमें वीडियो दिखाई नहीं देता है।
बस्ती में रहने वाला एक बच्चा बताता है कि लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद हुआ तो पढ़ाई छूट गयी। बस्ती में इन दिनों कोई भी बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। बच्चों ने बताया कि मिड डे मील का खाना भी नहीं मिलता है। न ही कोई शिक्षक घर राशन पहुंचाने आते हैं। न ही उसके बदले माता-पिता के खाते में पैसा आता है। बता दें कि सरकार की ओर से बार-बार दावा किया जाता रहा है कि शिक्षकों की ओर से मिड डे मील का राशन शिक्षकों के द्वारा घर तक पहुंचाया जा रहा है।
प्रधानमंत्री आवास योजना से दूर दलित बस्ती
सरकार के पास इंदिरा आवास योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना है लेकिन बस्ती में रहने वाले किसी भी सफाईकर्मी के पास कोई पक्का मकान नहीं है। एक सफाईकर्मी युवक ने बताया कि उनके पास कोई घर नहीं है। सरकार के सभी नेता-अधिकारी इस जगह को भी अवैध बताते हैं और कहीं रहने को जगह भी नहीं दे रहे हैं। किसी तरह यहां जी रहे हैं।
एक महिला ने बताया कि सरकार ने कहा था कि आप यहां से हट जाइए, हम आपको आवास बनाकर रहने के लिए दे रहे हैं। जब कोरोना नहीं आया था तब की बात है। चार-पांच साल हो गए।
खाने के इंतजाम के सवाल पर महिला ने बताया कि हम लोग ऐसे ही प्राइवेट काम मिल जाता है तो काम चल पाता है। हम लोगों के पास खेत-खलिहान नहीं हैं कि हम कहां से कमाकर खाएंगे। हमारे पास राशन कार्ड भी नहीं है जो हम राशन की व्यवस्था कर पाएंगे। राशन कार्ड भी नहीं बनता है।
बस्ती में रहने वाले लोगों ने बताया कि बीते साल 2020 में बाढ़ आयी थी तो ये इलाका डूब गया था। एक महिला ने बताया कि हमारे घर के अंदर पानी आ जाता है। हम इसी में रहते हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना का घर नहीं मिला। नेता लोग केवल यहां पर वोट लेकर जाते हैं। उसके बाद नहीं दिखाई देते हैं।
छोटे-छोटे बच्चों ने बताया कि उनके साथ के बच्चे उन्हें स्कूल में डोम कहते हैं। डोम कहकर भगा देते हैं। साथ नहीं बैठाते हैं।
दलित बस्ती की बदतर स्थिति को लेकर देवरिया के पूर्व जिला सपा अध्यक्ष व्यास यादव बताते हैं- असल में यहां प्रकाश तो डाला जाता है लेकिन इनकी स्थिति दयनीय है कि पिछली बार जब बाढ़ आयी थी तो मैं यहां आया था। जो बस्ती में आप घूमे हैं। सबके घुटनेभर पानी लगा हुआ था। उसके बाद व्यक्तिगत रूप में मैने जेनरेटर को लेकर एडीएम साहब से बात की। तेल मिलता था लेकिन दो चार घंटे चलने के बाद जेनरेटर बंद हो जाता था।
व्यास ने बताया कि पिछली बार नगरपालिका में ईद के पर्व के मौके पर सफाईकर्मियों को तनख्वाह नहीं दी जा रही थी। कहने पर तनख्वाह दी लेकिन उन्होंने मुझसे एक बड़ी मुझसे कही कि नेताजी सफाई के काम में अब सब जाति के लोग आ गए हैं ब्राह्मण, ठाकुर, लोहार, यादव आदि सब। बेरोजगारी इतनी बढ़ गयी है कि सब लोग इनका काम ले गए हैं। अब हम लोगों के पास न खेती है, न कोई दुकानदारी है जो अपना जीवनोपार्जन कर पाएं।
दूर जमीन पर बैठाकर खिलाते हैं खाना
व्यास कहते हैं, ''कितनी बड़ी पीड़ा के साथ ये लोग बता रहे थे कि हमें न्यौता देकर बुलाया जाता है। लेकिन केवल ब्रह्मभोज में बुलाते हैं तिलक में नहीं। ब्रह्मभोज में बुलाते हैं तो वो जो सम्मान देना चाहिए वो न देकर इनको जो बड़े दरवाजे पर गंदगी रहती है वहां पर जाकर खिलाया जाता है। घर पर टेबल पर बैठकर खाना नहीं खिलाया जाता है। मैं तो इन लोगों से यह कहता हूं कि अगर कोई आपको टेबल पर खाना न खिलाए तो वहां खाना मत खाइए, वापस घर लौट आइए। लेकिन ये लोग मानते नहीं हैं। जिस दिन ये लोग उनके घर से वापस आने लग जाएंगे तो समाज भी बदल जाएगा। इनकी कमी यह है कि इनकी अभी हिम्मत नहीं बन पा रही है। ''
दलित समुदाय के एक युवक ने बताया कि इस देश में सभी हिंदू एक समान नहीं हैं। देवरिया में हमें कहीं भी बुलाया जाता है तो जमीन पर बैठाया जाता है। डीएम, एसपी या नेता कोई भी साहब हो हमें जमीन पर ही बैठाते हैं। युवक ने बताया कि हम यहां दुकान खोलेंगे भी तो चलेगी नहीं। डोम बोलकर कोई आता नहीं है। चाऊमीन की दुकान खोली थी वह बंद हो गयी है। छोटे-छोटे बच्चों ने बताया कि हमें जमीन पर बिठाया जाता है, बहुत बुरा फील होता है। हमारे लिए दूरी पर ही खाना रख देते हैं।