Ground Report : खेतों में धान सड़ने से किसान हुए तबाह, खुद की पीठ थपथपाते CM योगी कैसे करेंगे इस नुकसान की भरपाई
किसानों की समस्या मात्र फसल भींगने और सड़ने तक सीमित नहीं है, पेट्रोल डीजल और अन्य चीजों की महंगाई ने किसानों के जले पर नमक छिड़कने का काम किया है...
अजय प्रकाश की ग्राउंड रिपोर्ट
Uttar Pradesh Farmers: देश में बेमौसम बरसात ने चारों तरफ से तबाही लाई है। अक्टूबर के महीने में हुई बारिश की सबसे ज्यादा मार किसान झेल रहे हैं। रिकॉर्ड स्तर की बारिश के कारण खेतों में घुटने तक पानी भर गया, जिससे खेत में लगे फसल सड़ने की कगार पर है। पिछले दिनों पहाड़ों पर बारिश और बर्फबारी हुई तो उत्तर प्रदेश की नदियों का जलस्तर भी बढ़ गया और बाढ़ के हालात बन गए। राज्य के लगभग सभी जिलों में धान के खेतों में पानी भर गया। अक्टूबर माह धानों की कटाई का समय होता है। लेकिन मूसलाधार बारिश के कारण धान की तैयार फसल हवा से गिर पड़ी और जो फसलें काट कर खेतों में सूख रही थी वो पानी के कारण खेतों में तैरने लगी। घुटने तक खेतों में भरे पानी के जल्द सूखने की उम्मीद भी नहीं है। ऐसे में धान की फसल सड़ रही है और जो थोड़े बहुत बच गए हैं उनकी गुणवत्ता खराब हो गई।
देश में एक गरीब किसान अच्छी आमदनी की उम्मीद में अपने साल भर की पूंजी और कर्ज लेकर धान की खेती में खर्च कर देता है। लेकिन, इस साल अक्टूबर महीने में दो-तीन दिन की बारिश ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया। किसानों के हालात को नजदीक से जानने और समझने के लिए जनज्वार टीम उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी पहुंची और किसानों से बात की।
अपने खेत में सड़ रहे धान की फसल को दिखाते हुए एक किसान ने बताया कि, "रविवार को बारिश से पहले मजदूर बुलाकर तैयार फसल की कटाई की थी। सोचा था कि काटने के बाद धान को दो दिन सूखने देते हैं फिर मशीन लाकर उठवा लेगें और इसलिए धान को खेत में ही छोड़ दिया। लेकिन उस दिन के बाद से लगातार तीन दिनों तक बारिश हुई और पूरे खेत में डेढ़ से दो फीट तक पानी भर गया। पूरा फसल पानी में तैरने लगा था। बारिश रूकी तो खेत के किनारे नाली बनाया और जमे पानी को निकाला। लेकिन खेत में कटा हुआ धान जम गया है और अब सड़ने लगा है।"
नए जमाने मे तमाम आधुनिक माध्यमों से मौसम पूर्वानुमान की व्यवस्था है। इस बारे में पूछने पर किसानों ने बताया कि बारिश की जानकारी पहले मिल भी जाए तो इतनी बड़ी मात्रा में फसलों को रखेंगे कहां!
महंगाई ने किसानों की कमर तोड़ी
इन किसानों की समस्या मात्र फसल भींगने और सड़ने तक सीमित नहीं है। पेट्रोल डीजल और अन्य चीजों की मंहगाई ने किसानों के जले पर नमक छिड़कने का काम किया है। पीड़ित किसानों का कहना है कि, "पानी भरे खेतों से धान को काटने के लिए कोई मजदूर राजी नहीं है। पहले 200 रुपये में मजदूर मिल जाता था। पर अब दोगुना पैसा मांग रहे। डीजल और पेट्रोल के दाम बढ़ने से मशीन को किराए पर लेना भी मंहगा पड़ रहा है। दलदल खेतों में मशीन जा भी नहीं पाती है।"
भाजपा सरकार द्वारा किसानों के लिए तीन कृषि कानून लाया गया। केन्द्र में मोदी सरकार से लेकर राज्य की योगी सरकार बार-बार ये दावा करती है कि किसानों की आय दोगुनी हो गयी है। लेकिन, धरातल की तस्वीरें कुछ और बयां करते हैं। लखीमपुर में किसानों ने बताया कि लाखों के कर्ज में पहले से डुबे हुए हैं। बारिश के कारण तैयार फसलें सड़ गई। सरकार भी फसल बर्बादी का मुआवजा नहीं देगी।
किसानों के दोगुनी आय की हकीकत
पीड़ित किसान ने बताया कि, "गेहूं काटने के बाद एक एकड़ खेत को धान की बुआई के लिए तैयार करने में ही 4600 रुपये लग गए। फिर खेत में धान रोपायी के लिए मजदूरों को 3000-3500 रुपये दिए। धान रोपायी से लेकर फसल तैयार होने तक 2000 रुपये के खाद सामाग्री में खर्च किए।" किसानों ने बताया कि, "धान तैयार करने से लेकर काटने तक प्रति एकड़ 15-20 हजार रुपये खर्च होते हैं। एक एकड़ में 20 से 25 क्विंटल पैदावार होता है। बाजार में प्रति क्विंटल कीमत किसानों को 1 हजार रुपये मिलते हैं।"
यानि सरकार के दलीलों से हटकर देखें तो किसानों को एक एकड़ जमीन में फसल रोपने से लेकर कटाई तक 20-25 हजार रुपये खर्ज हो जाते हैं। उत्तर प्रदेश के बाजारों में किसानों को प्रति क्विंटल धान पर 1 हजार रुपये मिलते हैं। किसानों का कहना है कि जोर जबरदस्ती करके 1200 तक बिकता है। मतलब, किसानों के गणित के मुताबिक, प्रति क्विंटल धान में मुनाफा एक रुपये का नहीं है। दो चार हचार रुपये बचते हैं तो फिर गेहूं के फसल में कर्च करते हैं।
इधर, बेमौसम बारिश ने किसानों की मेहनत और पैसे दोनों पर पानी फेर दिया। राज्य भर के प्रभावित किसान सर्वे और मुआवजे की मांग तो उठा रहे हैं, लेकिन फसल बीमा नियमों के मुताबिक खड़े या आड़े पड़े धान में नुकसान के सर्वे या क्लेम का कोई प्रावधान ही नहीं है। फसल बीमा कंपनी खेत में केवल कटे पड़े धान के नुकसान का ही मुआवजा देगी। बता दें कि फसल बीमा नियमों में धान, गन्ना सहित जूट और नेस्ता ऐसी फसल है, जिसमें खड़ी या आड़ी फसल में नुकसान का न तो सर्वे हो सकता है और न ही मुआवजे की राशि के लिए क्लेम दिया जा सकता है। हालांकि, सरकार चाहे तो अपने स्तर पर पीड़ित किसानों को मुआवजा दे सकती है। यानि, अब किसानों कि किस्मत मोदी और योगी सरकार के हाथों में हैं। अगर योगी सरकार का दिल इन गरीब किसानों के प्रति पसीजता है तो संभावना है कि इन किसानों के जख्म पर मरहम लग सके।