Ground Report : 200 साल पहले एक ख्वाब देखकर बनवाई गई जालौन की लंका मीनार, जिसमें सगे भाई-बहन का जाना मना है
जालौन के कालपी की इस मीनार को लंका मीनार के नाम से जाना जाता है, मीनार की ऊंचाई लगभग 210 फीट है, मीनार का निर्माण वकील बाबू मथुरा प्रसाद ने कराया था, मथुरा प्रसाद को लंकेश के नाम से जाना जाता था.....
मनीष दुबे की रिपोर्ट
जनज्वार। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के कानपुर (Kanpur) से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर बसा जालौन, जहां की एक जगह है लंका। नेशनल हाइवे से एक किलोमीटर उल्टे हाथ चलने पर आपको यह जगह मिलेगी। यमुना किनारे बसे इस कस्बे में एक मंदिर बना हुआ है, इस मंदिर को लेकर तमाम तरह की किवंदंतियां कही और बताई जाती हैं।
लंका मंदिर (Lanka Temple) प्रांगण के आसपास लगभग दो हजार से अधिक परिवार रहते हैं। जिनमें गुप्ता, ब्राह्मण, यादव, वैश्य, मुस्लिम, दलित कुल मिलाकर सभी जातियां रहती हैं। लेकिन इनमें आपस का जो सद्भाव है, वह काबिले तारीफ है। सभी आपस में मिल-जुलकर और एक परिवार की मानिंद रहते हैं। यहां का लगने वाला 'लंका मेला' खूब प्रचलित है।
कहा जाता है कि इस मंदिर के प्रांगण में जो मीनार बनी है, उसमें सगे भाई-बहन (Brother-Sister) का प्रवेश वर्जित है। जब हमने इस बारे में सुना तो कुछ अटपटा सा लगा। इस बात की तस्दीक करने के लिए हम जनपद कालपी के जालौन में बसे लंका के इस मंदिर में पहुंचे थे। हमारे द्वारा देखे गए अब तक के तमाम मंदिरों और दार्शनिक स्थलों की अपेक्षा यह बहुत हद तक अलग मिला।
एक ऊंची सी मीनार जिसके चारों तरफ छोटे से लेकर आदमकद देवी-देवताओं की बड़ी प्रतिमाएं उकेरी गई थीं। मीनार के सामने भगवान शिव का एक विशाल मंदिर बना हुआ था। इस मंदिर के बाहरी तरफ दो बड़े-बड़े सांपों की पथरीली आकृति उकेरी गई थी, जो एक दूसरे की तरफ फन खड़ा किये बनी थी, पूछने पर पता चला कि यह नाग और नागिन का जोड़ा है, जैसा ख्वाब में दिखा था।
इस मंदिर के बाहरी तरफ एक परचून दुकानदार जिसने हमें अपना नाम अल्लादीन बताया। बातों-बातों में अल्लादीन ने भी हमें वही बात बताई, जो हमनें सुनी थी। उनके मुताबिक यहां सगे भाई-बहन का प्रवेश नहीं हो सकता ये पुरानी मान्यता है। अल्लादीन बताते हैं इस मंदिर को बने हुए 200 साल से जादा का समय हो चुका है। हम सभी यहीं के रहने वाले हैं और बचपन से सुनते आ रहे कि यहां भाई बहन एक साथ नहीं जा सकते, और यह बिल्कुल सच है।
आज देश भाई-बहनों के खूबसूरत रिश्ते को और मजबूत करने वाला त्योहार रक्षाबंधन (Rakshabandhan) मना रहा है, और जालौन से जुड़ी ये एक हैरान कर देने वाली कहानी। जो आपको कुछ पल के लिये सोचने पर जरूर मजबूर कर देती है। वैसे तो हमारा देश संस्कृति की पहचान के लिए पूरे विश्व में मशहूर है, लेकिन यहां कुछ ऐसे अनसुलझे रहस्य छुपे हुए हैं जिनके बारे में जानकर आप भी हैरान हो सकते हैं।
क्या है मीनार में?
बुंदेलखंड (Bundelkhand) की पावन धरती पर कई तरह की परंपराओं और रीति-रिवाजों का अद्भूत मेल होता है। यहां तमाम ऐसे अजीबो-गरीब रीति-रिवाज है जिनका पुराणों के मुताबिक आज भी मान्य हैं। जालौन के कालपी की इस मीनार को लंका मीनार के नाम से जाना जाता है। इस मीनार की ऊंचाई लगभग 215 फीट है। मीनार का निर्माण वकील बाबू मथुरा प्रसाद ने कराया था। मथुरा प्रसाद को अमूमन लंकेश के नाम से जाना जाता था।
मंदिर के केयरटेकर ने क्या कहा?
मंदिर के अंदर जाने पर मीनार में हमें यहां के केयरटेकर शुभम तिवारी मिले। शुभम के मुताबिक यह मान्यता है जो बहुत पुराने समय से चली आ रही है। इस मीनार में भाई-बहन एक साथ नहीं जा सकते हैं। इसके पीछे का जो रहस्य है वह ये की मीनार के ऊपर तक जाने के लिए सात परिक्रमाओं से होकर गुजरना पड़ता है और हिंदू धर्म के अनुसार भाई-बहन के द्वारा ये नहीं किया जा सकता। क्योंकि सात परिक्रमाओं का संबंध पति-पत्नी के सात फेरों के रिश्तों की तरह माना जाता है। इसी वजह से मीनार के ऊपर भाई-बहन का जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। हां ये अलग बात है कि भाई-बहन अलग अलग होकर वापस आ जाएं तब कोई दिक्कत नहीं है।
क्या कहा मंदिर बनवाने वाले लंकेश के वंशज ने?
मंदिर प्रांगण में हमें कुछ दूर मथुरा प्रसाद निगम उर्फ लंकेश (Lankesh) के पड़पोते शुभम निगम भी मिले। शुभम बताते हैं कि उनके परबाबा को एक स्वप्न आया था। जिसमें उन्हें इस मंदिर के नीचे खजाना दबा होने की बात पता चली थी। खुदाई की गई तो खजाना मिला। खजाने के साथ एक चांदी के नाग नागिन का जोड़ा भी मिला था, जिसे स्वप्न के मुताबिक यमुना में प्रवाहित करना था और प्राप्त हुए खजाने से यह मंदिर बनवाने के लिए कहा गया था।
शुभम आगे बताते हैं कि उनके परबाबा मथुरा प्रसाद निगम उर्फ वकील बाबु रामलीला में रावण (Ravan) का किरदार निभाते थे। उन्होंने अपने नाम के आगे लंकेश शब्द को जोड़ लिया था। मंदिर बनने के बाद इसे लंका मंदिर का नाम दिया गया। उसके बाद इस आस-पास के पूरे कस्बे को ही लंका का नाम मिल गया।
क्या कहते हैं इतिहासकार?
इतिहासकार अशोक कुमार के मुताबिक लंका मीनार का इतिहास लगभग 200 वर्ष पुराना है। यह दिल्ली की कुतुब मीनार के बाद दूसरी सबसे ऊंची मीनार है। इसका निर्माण गुड़, दाल, कौड़ी व अन्य सामग्रियों से हुआ है। अशोक कुमार द्वारा कही गई बात हमने मीनार के सामने भी लिखी हुई देखी, की इस मंदिर के निर्माण में कई तरह की सामग्रियों का इस्तेमाल किया गया है। जिसके चलते, इसकी मजबूती अपने आप में आज भी नायाब है।