Ground Report : मोदी की काशी में गंगा में जहर उड़ेल रही ऐतिहासिक नदी, रिवर बैंक लूटने की भू-माफियाओं में होड़

Ground Report : 'अस्सी नदी में बहते बदबूदार सीवर और इसमें नहाते सुअर स्मार्ट सिटी के उस बदनसीबी की दास्तां कहते हैं जिससे अमूमन सभी अनजान हैं जबकि सच यह है कि बदलते बनारस में भू- माफियाओं और पैसे के जोर से अस्सी नदी के दोनों तरफ के नदी बैंक को लूट लिया गया है...'

Update: 2022-05-04 12:24 GMT

Ground Report : मोदी की काशी में गंगा में जहर उड़ेल रही ऐतिहासिक नदी, रिवर बैंक लूटने की भू-माफिया में होड़

उपेंद्र प्रताप की रिपोर्ट

Ground Report : बनारस में गंगा (Ganga River) को अविरल और निर्मल बनाने की कवायद 1980 के दशक से आज तक चली आ रही है। अब शहर में आधा दर्जन सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (STP) होने के बावजूद लगभग 160 एमएलडी से अधिक सीवर रोजाना गंगा में गिर रहा है। वरुणा और अस्सी नदियों (Varuna And Assi River) के नाम से बने वाराणसी (Varanasi) के लिए अब ये दोनों नदियां गंगा नदी के लिए अभिशाप से कम नहीं हैं। वरुणा और अस्सी नदी समेत 30 छोटे - बड़े नाले दिन - रात चौबीस घंटे गंगा में 160 एमएलडी सीवेज गंगा में उड़ेल रहे हैं। इससे गंगा के इको सिस्टम को खतरा पैदा हो गया है। अब तो नागरिक और सैलानी सड़ते पानी से उठती बदबू के चलते गंगा में नहाने और घाट किनारे आने से भी कतराने लगे हैं।

नगवां में अस्सी नदी (अब नाला) के किनारे वेल्डिंग की दुकान चलाने वाले अमरनाथ दहकती दुपहरी में एक ओर से फट रही तिरपाल के नीचे पटिये पर बैठे कुछ सोच रहे थे। पूछने पर अमरनाथ बताते हैं, 'मुझे यहां दुकान लगाते चार दशक से अधिक हो गए। जिस अस्सी नदी में कभी साफ पानी (Clean Water) बहता था, उसमें आज आधे शहर की गंदगी बहती है। नदी के भौतिक स्वरूप और इको सिस्टम का इस कदर दोहन किया गया है कि अस्सी नदी को शहर में 'अस्सी नाले' के रूप में जाना जाता है। अब तो हालत और बुरी हो गई है। अस्सी नदी में बहते बदबूदार सीवर और इसमें नहाते सुअर स्मार्ट सिटी (Smart City) की उस बदनसीबी की दास्तां कहते हैं जिससे अमूमन सभी अनजान हैं। सच यह है कि बदलते बनारस में दबंगों, भू- माफियाओं और पैसे के जोर से अस्सी नदी के दोनों तरफ के नदी बैंक को लूट लिया गया है, यह किसी को नहीं दिखता है।'

 (नगवां में अस्सी नाले के पास अस्थाई वेल्डिंग दुकान चलाने वाले अमरनाथ)

अमरनाथ आगे कहते हैं, 'आज से सात साल पहले यहीं नगवां में अस्सी नदी के किनारे मेरी वेल्डिंग की दुकान थी। मेरे ठीक बगल में गोरखपुर के लालबहादुर की चाय-पान की दुकान थी। मोदी के आने बाद नगर निगम वाले आए और उसकी लकड़ी की गुमटी पर बुलडोजर चला दिया और क्षतिग्रस्त गुमटी को 12 में 15 फीट गहरे अस्सी नाले में धक्का मारकर गिरा दिया गया। बुलडोजर से कार्रवाई की गुंडई के बाद से मैं भी डर गया था, तब से लेकर आज तक करीब आठ साल का वक्त हो गया होगा। मैं रोज आता हूं, तो तिरपाल लगाता हूं और वेल्डिंग के उपकरण जमाकर दुकान खोलता हूं। दिल्ली - मुंम्बई जैसे कई शहरों में सरकार रेहड़ी - पटरी वालों को दुकान, सरकारी मदद और रियायतें देती है, लेकिन मुझे 40 साल से अधिक हो गया, कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। गुमटी तोड़े जाने के बाद एक - दो साल बाद लालबहादुर की मौत हो गई थी।

घाट किनारे सड़कर बजबजाता गंगा का पानी

पांडेयघाट (कोरियन घाट) पर नाव का संचालन करने वाले नाव मालिक राकेश साहनी बताते हैं कि गंगा में सीवर आज भी गिरता है। सीवर की गंदगी गंगा के लिए अभिशाप बन गई है, मुझे नहीं लगता कि गंगा कभी इससे मुक्त हो पाएगी। शहर के अस्सी, सामनेघाट, ललिता घाट, मणिकर्णिका घाट पर दो पहला विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर गेट और दूसरा ललिता घाट, गोलाघाट, राजघाट, खिड़किया घाट, मानसरोवर घाट, दशाश्वमेध घाट समेत घाट इलाके में ही और भी छोटे नाले हैं, जिनको पाइप के सहारे गंगा में मिलाया गया है, जो दिन-रात गंगा की धारा में गंदगी फेंटते रहते हैं। जिन लोगों या सैलानियों को पता नहीं रहता है, वे स्नान और आचमन करते हैं। जिनको खबर है, इधर आने से कतराते हैं। जबकि नगर निगम के प्लान, नमामि गंगे और स्वच्छ गंगा प्राधिकरण मिशन जैसी कई योजनाएं गंगा को साफ रखने के लिए चलाई जा रहीं हैं।'

राकेश आगे कहते हैं कि 'बनारस में रोजाना लाखों की तादाद में लोग आते हैं। इनमें से आधे बुद्ध स्थली सारनाथ और शेष काशी विश्वनाथ मंदिर व मां गंगे के दर्शन - पूजन के लिए घाट किनारे गंगा की शरण में आते हैं। देसी के अलावा विदेशी भी सैलानी आते हैं, घाट किनारे न सुरक्षा की व्यवस्था है और न ही लेडीज - जेंट्स टॉयलेट की व्यवस्था है। कम समझदार लोग जहां-तहां गन्दगी करते हैं। सैलानी और विदेशी टूरिस्टों को टॉयलेट आदि की तलाश में एक - दो किलो मीटर चलकर होटल तक जाना होता है। सभी को बहुत परेशानी होती है।'

(काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के गंगा द्वार के ठीक सामने गंगा में सीवर उलेड़ता नाला)

तान्हा निषाद ने बताते हैं, 'गंगा में सीवर के मिलने से मणिकर्णिका, दशाश्वमेश, प्रयाग और हनुमान घाट तक गंगा का पानी घाट किनारे सड़ रहा है। राजेंद्र घाट पर लगे जल निगम का पम्प और टैंक से इसी गंगा से पानी को खींचकर शहर को पानी की आपूर्ति करते हैं। रात और अल सुबह एक - दो दिन छोड़कर रोजाना टैंक का कचरा दशाश्वमेश घाट के पास गंगा में बहाया जाता है। यहां रोज लाखों की तादाद में सैलानी स्नान करने और घूमने आते हैं, ये सब किसी अधिकारी को नहीं दिखता कि सैलानियों को कितनी दिक्कत हो रही है?'

सूखती गई अस्सी, बढ़ती गई लूट

'असि बचाओ संघर्ष समिति' के गणेश शंकर चतुर्वेदी कहते हैं, 'योगी सरकार आने के बाद से अस्सी नदी के रिवर बैंक को माफिया और दबंग कब्जाकर प्लॉटिंग भी कर रहे हैं। फर्जी दस्तावेज बनवाकर इस जमीन को करोड़ों में बेच भी रहे हैं। अस्सी को सुनियोजित तरीके से लूटा जा रहा है। इसकी मुख्यधारा को बंदकर वहां इमारत तान दी गई है और नदी को नगवां नाले में मोड़ दिया गया है। तब से अस्सी नदी का नाम अस्सी नाला पड़ गया। साल 2013 में शहर की गंदगी ढोती अस्सी को बचाने के लिए हाईकोर्ट में दायर मेरी जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई भी हुई और एनजीटी (NGT) ने भी मामले का संज्ञान लिया, लेकिन उम्मीद के मुताबिक मामले में प्रगति नहीं हुई।'

(संकट मोचन के पास अस्सी नाले पर हुए अतिक्रमण और सीवर बहकर गंगा में जाते हुए दिखाते गणेश शंकर चतुर्वेदी)

गणेश शंकर ये भी कहते हैं, 'अस्सी नदी के दोनों कपाटों पर भदैनी, अस्सी, नगवां, दुर्गाकुंड, साकेत नगर, मौर्य नगर, ब्रम्हा कॉलोनी, सुंदरपुर, घसियारी टोला, चितईपुर, कंदवा समेत 40 से अधिक कॉलोनियां बनीं हैं। इन कॉलोनियों के निर्माण में भी नदी के बैंक को लूटा गया है और दिन-रात इनका कूड़ा-कचरा और सीवर अस्सी में बहता रहता है। इससे आठ किमी में बहने वाली अस्सी नदी सिर्फ और सिर्फ सीवर तंत्र बनकर रह गई है। 50 एमएलडी को छोड़कर शेष 70 एमएलडी से अधिक सीवर रविदास पार्क के पास से गंगा की धारा में समाहित हो रहा है।'

तेजी से भाग रहा ग्राउंड वाटर लेवल

वाराणसी के पत्रकार राजीव कुमार सिंह कहते हैं, 'बनारस में बारिश के बाद बाढ़ आती है तो कई इलाके डूबते हैं, वहीं लाखों की तादाद में लोग पलायन करते हैं लेकिन पहले ऐसा नहीं था, पहले जब बाढ़ आती थी तो बाढ़ का पानी अस्सी और वरुणा नदी अपने ड्रेनेज सिस्टम से बहाकर शहर के दूसरे छोर तक ले जाती थी। इससे कुएं, तालाब, ग्राउंड वाटर समेत जल स्रोत रिचार्ज हो जाते थे। वर्तमान में ये दोनों नदियां सीवर और कूड़े से इतनी पटी हैं कि बाढ़ का पानी एक-दो किमी से आगे बढ़ नहीं पाता है। इससे बनारस की सभी तहसीलों का ग्राउंड वाटर लेवल संकटग्रस्त स्थिति में जा पहुंचा है।'

वह आगे बताते हैं, 'इतना ही नहीं गंगा को बचाने और बनारस का सीवर गंगा में जाने से रोकने के लिए साल 1975 से अब तक देश-विदेश से कल्पना से अधिक फंडिग हुई है। आप यूं समझिये कि इन रुपयों से तकनीक, मजदूर और फावड़े से हिमालय से बंगाल की खाड़ी तक दूसरी गंगा खोद दी गई होती। तर्क हास्यास्पद लग सकता है, लेकिन हकीकत यही है। गंगा में सीवर और गंदगी रोकने के नाम पर बनी समितियां और एक्शन प्लान की हकीकत किसी से छिपी नहीं है। इनसे जुड़े वैज्ञानिक और एक्सपर्ट करोड़पति हो गए। कई शहरों में उनकी कोठियां हो गईं और गंगा के दिन पहले से ज्यादा बुरे ही गए। यदि समय रहते सीवर को रोका नहीं गया तो गंगा का हाल भी अस्सी और वरुणा की तरह हो जाएगा।

जहर बन गया नगवां - रविदास घाट पर गंगा का पानी

बनारस की गंगा में डायरेक्ट सीवर के जाने से घाट इलाके में कई स्थानों पर गंगा बजबजाने लगी है। सड़ते जल और उठते बदबू के बवंडर से सैलानी भी इधर आने से कतराने लगे हैं। इसमें खिड़किया घाट का शाही नाला, अस्सी-भदैनी इलाके में रविदास घाट के पास अस्सी नाला और सामनेघाट समेत 30 से अधिक छोटे-बड़े सीवर नाले रोजाना आठ करोड़ लीटर से अधिक मलजल गंगा की धारा में उड़ेल रहे हैं। गंगा जल में सीवर का पानी मिलने से फास्फोरस और नाइट्रेट की मात्रा बढ़ गई है जिससे गंगा का इको सिस्टम दिन-ब-दिन चौपट होता जा रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) की रिपोर्ट के अनुसार रामनगर से राजघाट तक गंगा जल की गुणवत्ता में लगातार सुधार हो रहा है लेकिन, हकीकत डराने वाली है।

तुलसीघाट स्थित संकट मोचन फाउंडेशन (SMF) के अध्यक्ष विशंभरनाथ मिश्र बताते हैं, 'पीने योग्य पानी में कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया 50 एमपीएन (मोस्ट प्रोबेबल नंबर- सर्वाधिक संभावित संख्या)/100 मिली और एक लीटर पानी में बीओडी की मात्रा 3 मिलीग्राम से कम होनी चाहिए।'

गंगाजल की जमीनी हकीकत को बयां करते हुए प्रो. विश्वभरनाथ ने हाल ही में ट्विटर पर एक वीडियो शेयर कर लिखा है, 'नगवां और रविदास घाट पर गंगा का पानी गंदगी से भी बदतर हो गया है। पानी में घुलनशील ऑक्सीजन घट रही है। 100 मिली जल में 24,000,000 फीकल कॉलीफार्म काउंट आ रही है, जबकि नहाने-धोने के लिए 500 फीकल कॉलीफार्म काउंट का मानक निर्धारित है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बनारस में गंगा जल और नदी के इको सिस्टम की क्या हालत है?'

बीएचयू के साइंटिस्ट और रिवर एक्सपर्ट प्रो. बीडी त्रिपाठी कहते हैं, 'हाल के दशक में गंगा तंत्र बिगड़ता और इसके जल क्वालिटी का स्तर गिरता ही जा रहा है। तमाम प्रयासों के बाद भी जो सुधार होने चाहिए थे, वह नहीं हो पाए हैं। गंगा बेसिन के अबाध प्रवाह के लिए पानी छोड़ा जाए। गंगा जल के इस्तेमाल के लिए जल्द ही पॉलिसी बनाई जाए। एसटीपी प्लांट को पूरी क्षमता के साथ चलाया जाए वरना गंगा के इको सिस्टम को तबाही से नहीं बचाया जा सकेगा।'

STP प्लांट आखिर जलमल\सीवर का करते क्या हैं ?

'गंगा में गिरने वाले डायरेक्ट सीवर की बीओडी- 120 मिलीग्राम\लीटर से अधिक होती है। यह मलजल अति जहरीला और मछली-जलीय जीवों के अस्तित्व को तबाह कर देने वाला होता है। नगवां एसटीपी पम्प ऑपरेटर बताते हैं, 'नगवां पम्प हाउस से रोजाना 50 एमएलडी मलजल पाइप लाइन के माध्यम से आठ किमी दूर रमना एसटीपी पहुंचाया जाता है। मलजल यानी सीवर रिसीविंग चेंबर में स्टोर होता है। फिर गंदे जल को बेसिन टैंक में डालकर हवा का प्रेसर दिया जाता है। चौथे चरम में क्लोरीन टेस्ट होता है। इसमें तीन चरणों से होकर आये जल में क्लोरीन मिलाकर आउटलेट में स्टोर कर लिया जाता है। पांचवें चरण में ट्रीटमेंट सीवर जल को गंगा में छोड़ने से पहले एसबीआर टीम सेंसर से जल की बायलोजिकल गुणवत्ता को जांचती है। इसमें गंगा में छोड़े जाने वाले शोधित सीवर जल का मानक .. टीएसएस- 14.2 मिलीग्राम\लीटर (अधिकतम ), बीओडी - 10 मिलीग्राम\लीटर (अधिकतम ) और सीओडी - 81.9 मिलीग्राम\लीटर (अधिकतम ) होता है। इस जांच के बाद शोधित सीवर जल को गंगा में छोड़ दिया जाता है।

(नगवां एसटीपी पम्प जिसकी क्षमता सिर्फ 50 एमएलडी है)

उड़ाई जा रही नियमों की धज्जियां

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जांच में बनारस के कई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट शोधन मानक क्षमता 10 बीओडी के सापेक्ष 25 से अधिक बीओडी (Biochemical Oxyzen Demand) के स्तर वाला पानी गंगा में छोड़ा जा रहा है। चूंकि 25 बीओडी स्तर वाले जल में सल्फर, नाइट्रेट समेत अन्य हानिकारक तत्व होते हैं, जो गंगा जल में मिलते ही उसके बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी को नष्ट कर देते हैं। लिहाजा, एसटीपी की लापरवाही से गंगा और पर्यावरण को होने वाले नुकसान को देखते हुए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एसटीपी का संचालन करने वाली जल निगम की गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई पर 45 लाख का जुर्माना ठोंक चुकी है, फिर भी सुधार होता नहीं दिख रहा है। रात के अंधेरे में स्टाफ बगैर ट्रीटमेंट का सीवेज को गंगा में बहा देते हैं।


जैसे-तैसे चल रही गंगा के साफ करने की योजना

बनारस में रमना, रामनगर, भगवानपुर, और बीएलडब्ल्यू चारों एसटीपी को छोड़ दें तो बाकी एसटीपी अपने क्षमता से कम सीवेज का ट्रीटमेंट कर रहे हैं। शहर से दूर बने एसटीपी दीनापुर और गोईठहां की हालत और भी खराब है। पहले तो ये पूरी क्षमता से सीवेज का ट्रीटमेंट नहीं करते हैं। तकनीकी गड़बड़ियों की वजह से हफ्तों बंद भी रहते हैं। कुलजमा, गंगा को बचाने के लिए लगाए गए एसटीपी महज 40 से 60 फीसदी क्षमता से ही काम कर रहे हैं। इससे अब भी 150 एमएलडी से अधिक सीवेज सीधे गंगाजल में मिल रहा है।

वाराणसी की सीमा में कुल 44 गांव गंगा नदी (Ganga River) से पांच किमी के दायरे में बसे हैं। इन गांवों से निकलने वाली ठोस और सीवेज यानी गंदा पानी को गंगा नदी में जाने रोकने के लिए सालिड लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट योजना बनाई गई लेकिन कोरोना के समय से यह योजना अधर में अटक गई। इससे इन गांवों की गन्दगी को गंगा में जाने से रोका नहीं जा सका है। 44 गांवों के सीवेज और गन्दगी को गंगा में जाने से रोकने के लिए बनी सॉलिड लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट स्कीम फाइलों में ही रुक गई है। यह कब खुलेगी, किसी को पता नहीं?

सीवर नालों के टैपिंग का काम आधा-अधूरा

शहर में जल की आपूर्ति और वेस्ट वाटर के मैनेजमेंट की जिम्मेदारी जल निगम के पास है। विभागीय पेंच और समय से वेतन न मिलने का असर गंगा में गिरने वाले नालों से सीवर रोकने के काम पर पड़ने लगा है। शासन स्तर से पहले मार्च तक पूरा करने का लक्ष्य दिया गया था लेकिन बाद में इसकी तिथि बढ़ाकर जून कर दी गई। लिहाजा, गंगा में गिरने वाले नालों की टैपिंग, मरम्मत, शिफ्टिंग पर अब तक लगभग 600 करोड़ रुपये पानी की तरह फूंके जा चुके हैं। जमीनी हकीकत ये है कि अबतक 50 फीसदी भी काम पूरा नहीं हो सका है।

(दशाश्वमेध घाट पर सड़ता हुआ पानी। यहां के पानी में राख, प्लास्टिक, माला-फूल और ठोस कचरा भी मिला हुआ है)

थोड़ा है .. थोड़ी की जरूरत है

जलकल विभाग वाराणसी के महाप्रबंधक रघुवेन्द्र कुमार रोजाना सैकड़ों एमएलडी सीवर के गंगा में समाहित होने के सवाल पर 'जनज्वार' को बताते हैं कि 'पहले से गंगा में सीवर जाना कम हुआ है लेकिन ये बात भी सच है कि वाराणसी के सैकड़ों एमएलडी सीवेज को ट्रीट करने के लिए आधा दर्जन एसटीपी नाकाफी हो रहे हैं। शासन और विभाग को नए और अधिक क्षमता वाले एसटीपी के लिए प्रपोजल भेजा गया है। जैसे ही अनुमोदन आता है, वैसे ही नए एसटीपी पर काम शुरू कर दिया जाएगा। रमना एसटीपी की क्षमता महज 50 एमएलडी की है, जिससे पूरी क्षमता से सीवेज को ट्रीट किया जा रहा है। शेष 60-80 एमएलडी सीवर सीधे गंगा में जा रहा है।'

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