खोजी रिपोर्ट : हरियाणा के जिन गांवों में हिंदू थे ही नहीं वहां से मुस्लिमों ने उत्पीड़न कर खदेड़ा कैसे
नूंह के दर्जनों गांवों से जनज्वार टीम ने जाना हिंदुओं के पलायन का सच, ज्यादातर ग्रामीणों ने बताया जब हिंदू यहां रहते ही नहीं, तो फिर पलायन और उत्पीड़न कैसा, मेवात को बदनाम करने के लिए रची जा रही राजनीतिक साजिश...
नूहं जिले के उन गांवों से मनोज ठाकुर की ग्राउंड रिपोर्ट जिनके बारे में दावा किया जा रहा है मुस्लिमों के कारण हिंदुओं ने किया है पलायन
जनज्वार। नूंह के 103 गांवों से हिंदुओं के पलायन यानी मुस्लिमों के वहां हिंदुओं को न बसने देने के दावे की पड़ताल करने के लिए जनज्वार टीम ने उन गांवों का दौरा किया, जिनके बारे में दावा किया गया कि वहां से हिंदू परिवार पलायन कर गए हैं। जनज्वार टीम ने हकीकत जानने के लिए उन गांवों के लोगों से बातचीत की, उनसे जाना कि आखिर जो दावे किए जा रहे हैं, इसका सच है क्या? ज्यादातर ग्रामीणों ने बताया कि उनके गांव में तो हिंदू रहते ही नहीं, तो फिर पलायन का सवाल कहां से उठता है। कहा गया था कि मुस्लिमों के उत्पीड़न से तंग आकर यहां से हिंदू पलायन कर चुके हैं।
जिस सर्वे को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई कि नूंह जिले के 103 गांव में कोई हिंदू नहीं है, यहां से हिंदू परिवार पलायन कर गए हैं, उसके बारे में हम रिपोर्ट के पहले हिस्से में बता चुके हैं कि उसके लिए जमीनी स्तर पर काम किया ही नहीं गया था, बल्कि कहासुनी के आधार पर उसे तैयार किया गया था। सर्वे टीम में शामिल तीन लोगों में से एक हरि मंदिर आश्रम पटौदी के संत स्वामी धर्मदेव ने जनज्वार टीम के सामने स्वीकार किया कि कोविड के कारण गांवों में कोई गया ही नहीं था, सिर्फ लोगों की कही बातों के आधार पर सर्वे हुआ था।
मुस्लिम बहुल इलाकों यानी गांवों से उत्पीड़न के कारण इतनी बड़ी तादाद में हिंदुओं के पलायन की बात वाकई चौंकाने वाली बात थी। हो भी क्यों न, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में इसी आधार पर एक याचिका तक दायर कर दी गई थी। हालांकि याचिका बाद में खारिज कर दी गयी थी, फिर भी यह सवाल तो अपनी जगह था ही कि क्या मेवात में वास्तव में इतने हालात खराब हैं। वहां हिंदू होने का मतलब क्या दबकर जीना है, मुस्लिम उन्हें तंग करते हैं? क्या हिंदुओं की बहू-बेटियां यहां सुरक्षित नहीं है? इस सर्वे का सच जानने के लिए जनज्वार टीम उन गांवों में गयी, जिनके बारे में बताया गया कि यहां से हिंदू मुस्लिम उत्पीड़न से तंग आकर पलायन कर चुके हैं।
हिंदुओं के इतने बड़े स्तर से पलायन की खबर के बाद जनज्वार टीम इन गांवों में जाते हुए डरी हुयी थी। इस रिपोर्ट का संवाददाता डरा हुआ था। कहता भी है, 'मैंने अपने पत्रकारिता करियर में माओवादियों पर रिपोर्ट की,कश्मीर में रिपोर्ट की, मैं श्रीनगर समेत कश्मीर के अशांत इलाकों में जाने पर भी नहीं डरा, लेकिन मेवात में जाने पर डर रहा था, इसलिए पुख्ता इंतजाम किए। तय किया कि दिन के उजाले में ही काम करेंगे। शाम से पहले वापस सुरक्षित ठिकाने पर आ जाएंगे, क्योंकि मेवात को लेकर इतनी डरावनी बातें सुनाई और बताई गई कि यकायक वहां जाने से पहले मन आशंका से भर उठता था। तय किया, खिजराबाद कस्बा जिला यमुनानगर के स्थानीय पत्रकार नवाब को टीम में शामिल करते हैं। इसकी वजह साफ थी, वह मुस्लिम है, यदि मेवात में दिक्कत आती है तो वह बचा सकते हैं।'
लेट हो जाने की वजह से पहले दिन जनज्वार टीम नूंह नहीं गयी, बल्कि गुड़गांव में ठहर गयी। अगले दिन सुबह नूंह के लिए निकले। रास्ते में पटौदी पड़ता है। तय किया, यहां के श्रीहरि आश्रम में जाना है, क्योंकि यहां के महंत स्वामी धर्मदेव भी सर्वे करने वाली टीम के सदस्य थे। हम आश्रम में पहुंचे। स्वामी नहीं मिले। पता चला वह बाहर गए हुए हैं। उन्हें फोन किया, लेकिन फोन नहीं उठाया। बार-बार कॉल की, सब बेकार। कोई चारा न देख हमने उस संगठन के लोगों से बातचीत की, जिन्होंने सर्वे कराया था। काफी प्रयास करने के बाद इस संगठन के एक सदस्य से हम संपर्क करने में कामयाब हो गए। हम उनसे लिस्ट लेना चाहते थे, ताकि गांवों में जा सके। लेकिन उन्होंने लिस्ट नहीं दी। उन्होंने आगे एक और नंबर दे दिया। आखिर में इस संगठन के एक सदस्य ने हमें बताया कि खेड़ला गांव में चले जाओ, सब सच पता चल जाएगा। हमने तय किया कि खेड़ला से ही शुरुआत करते हैं।
नूंह खंड का गांव है खेड़ला, दावा किया गया कि यहां का लाला मुंशी राम इसलिए गांव छोड़कर चला गया, क्योंकि उसके घर डकैती पड़ गई थी। वह डर के मारे अपनी पुश्तैनी हवेली छोड़ जान बचाने के लिए दूसरी जगह चले गए, लेकिन जब गांव में पहुंचे यह झूठ निकला।
असलियत यह थी कि लाला मुंशी राम गांव छोड़कर इसलिए गया, क्योंकि उसका कारोबार शहर में था। उनकी एक हवेली को 35 लाख रुपए में दो साल पहले खरीदने वाले बिलाल ने बताया कि इसके मालिक तो दशकों पहले गांव से चले गए थे। हम इस गांव में किसी हिंदू परिवार को खोज रहे थे। हमें बताया गया कि पास ही में दूसरी गली में एक हिंदू परिवार रहता है। हम उसके पास गए। वहां हमें रणजीत सिंह मिले। 68 साल के रणजीत ने बताया कि वह जन्म से इस गांव में रह रहे हैं। कभी कोई दिक्कत नहीं आई। न ही कभी उन्हें तंग किया गया। खेतीबाड़ी से गुजारा करने वाले रणजीत से बात करने के बाद हमारी टीम को थोड़ी हिम्मत मिली।
रणजीत आगे बताते हैं, आज तक उन्होंने ऐसा नहीं सुना कि किसी मुस्लिम ने हिंदू को तंग किया हो। जहां तक लाला मुंशी की बात है, वह तो व्यापार के सिलसिले में गांव छोड़ कर चले गए थे। जो लोग इस तरह की बात करते हैं, वह गलत बोल रहे हैं।
साथ बैठे रणजीत सिंह के 80 वर्षीय चाचा स्वर्ण सिंह बताते हैं, 'आज तक हमारे गांव में हिंदू मुस्लिम विवाद तक नहीं हुआ। यहां सभी लोग भाईचारे के साथ रहते हैं। खेड़ला गांव में 15 घर हरिजनों के हैं, तीन घर बढ़ई हैं, यानी कि हिंदू परिवारों की संख्या 20 के आसपास है। बाकी सारा गांव मुस्लिम है। हिंदू यहां कम संख्या में जरूर हैं, लेकिन कोई किसी को तंग नहीं करता।
काफी मशक्कत के बाद आखिरकार जनज्वार टीम को वह लिस्ट मिल गई, जो सुप्रीम कोर्ट में दी गई थी। लिस्ट में नूंह खंड का गांव जाेगीपुर भी शामिल है। दावा किया गया कि इस गांव में एक भी हिंदू परिवार नहीं है। उन्हें इतना तंग किया गया कि वह अपना सब कुछ यहां छोड़कर जान की हिफाजत के लिए दूसरी जगह चले गए। जनज्वार टीम दिन के करीब तीन बजे इस गांव में पहुंची। गर्मी अपने उफान पर थी। तेज गर्म हवा के थपेड़े ऐसे थे कि गाड़ी से मुंह बाहर निकालते ही लगता था आग के सामने खड़े हैं। रास्ते में खाली खेत थे। सड़कों के किनारे पेड़ तो नहीं थे, लेकिन कीकर खूब थी। खेतों में एक तिनका भर हरियाली भी नहीं थी।
गांव के बाहर ही चौपाल पर पांच छह लोग बैठे हुए थे। हम उनके पास पहुंचे। सभी ने हमार गर्मजोशी से स्वागत किया। बातचीत शुरू हुई तो गांव के स्थानीय निवासी 53 वर्षीय आश मोहम्मद ने बताया कि उनके जन्म से लेकर आज तक इस गांव में हिंदू घर था ही नहीं, तो आखिर पलायन का सवाल कहां से उठता है। गांव में 150 घर हैं, एक हजार वोट है। गांव के ही तीस वर्षीय युवक मोहम्मद आजाद जो कि पेशे से ड्राइवर हैं, उन्होंने बताया कि इस गांव में कोई हिंदू मुस्लिम विवाद का सवाल ही नहीं उठता।
खेत की ओर जा रहे जोगीमाजरा के 45 वर्षीय किसान इकबाल खान 45 भी हमारी टीम को देखकर ठहर गए और बातचीत में शामिल हो गए। उनके साथ इरफान 24 भी थे, इन्होंने बताया कि आसपास के गांव में हिंदू और मुस्लिम परिवार रहते हैं। वहां कभी इस तरह की कोई बात नहीं हुई।
सर्वे की लिस्ट में शामिल एक और गांव निजामपुर भी हमारी टीम पहुंची शाम होने को आ गई थी। जैसे ही हम गांव में पहुंचे तो नमाज का वक्त हो चला था। इस गांव में भी लगभग 1200 वोट हैं। अजान शुरू होते ही बड़ी संख्या में ग्रामीण नजमा अता करने मस्जिद में चले गए। हम बाहर ही खड़े होकर उनका इंतजार करने लगे।
नमाज अता कर सबसे पहले मस्जिद से 43 वर्षीय लियाकत अली निकले। वह हमें अपने साथ अपनी चौपाल में ले गए। चौपाल में छप्पर का एक झोपड़ा था। दो बकरियां और कुछ मवेशी बंधे हुए थे। एक महिला मवेशियों को चारा डाल रही थी।
लियाकत अली ने आवाज देकर कुछ और ग्रामीणों को वहां बुला लिया। लियाकत ने बताया कि यह गांव 1947 से पहले का है, तभी से यहां एक भी हिंदू परिवार नहीं है। बातचीत में मवेशियों को चारा डाल रही 65 वर्षीय महिला नूरजहां ने बताया कि उसके पोते-पोतियां है, वह जब से इस गांव में विवाहिता बन कर आई, तब से तो एक भी हिंदू परिवार यहां न देखा न सुना।
बातचीत में राजस्थान के जरैड़ा जो कि हरियाणा राजस्थान के बार्डर पर पड़ता हैं, वहां के सरकारी स्कूल में अध्यापक के तौर पर कार्यरत अमीर खान ने बताया कि यहां से कोई पलायन नहीं हुआ।
उन्होंने बताया कि कुछ ग्रामीण गांव से बाहर गए हैं, मगर उनके जाने की वजह व्यापार, शिक्षा और बेहतर जिंदगी है, क्योंकि यहां ग्रामीण जीवन बहुत मुश्किल है। खेती बरसात पर निर्भर है। पीने के पानी की भारी किल्लत है। शिक्षा नहीं है। रोजगार नहीं है, इसलिए जिसके पास थोड़ा सा पैसा है, या फिर जो व्यापार करता है, वह गांव में रहना पसंद नहीं करता, फिर वह चाहे हिंदू हो या मुसलमान। सब गांव छोड़ शहर की ओर चले जाते हैं।
निजामपुर में ही एक अन्य ग्रामीण शेर मोहम्मद ने बताया, भारत पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त इस गांव में तीन चार हिंदू परिवारों को घर और जमीन अलॉट हुई थी, लेकिन वह लोग कभी गांव में नहीं आए। अलबत्ता उनकी 160 एकड़ जमीन है, इसे वह ठेके पर गांव के लोगों को दे देते हैं।
जैसे जैसे शाम रात में तब्दील हो रही थी, नूंह को लेकर हमारा डर भी खत्म हो रहा था। जहां बताया गया, ऐसा कुछ यहां था ही नहीं। सब कुछ सामान्य था। जैसा कि अन्य शहरों या गांवों में होता है।
सर्वे की लिस्ट में शामिल एक गांव और गांव का दौरा हो जाए, इसी सोच के साथ हम निजामपुर से निकल बजैड़का की ओर बढ़ गए। इस गांव के बारे में भी दावा किया गया था कि यहां से हिंदू पलायन कर गए हैं। गांव के बाहर ही हमें पूर्व सैनिक 54 वर्षीय अब्दुल रजाक मिल गए। 175 घर के इस गांव में भी कभी हिंदू रहते ही नहीं थे। फिर गए कहां? यह सवाल तो उठना ही नहीं चाहिए। अब्दुल रजाक ने कहा, यहां ऐसा कुछ नहीं है। कुछ लोग ऐसी अफवाह उड़ा रहे हैं। इसमें कोई सच नहीं है। सब झूठ है।
सर्वे की लिस्ट में शामिल 30 गांवों का हमारी टीम ने दौरा किया, मगर एक भी जगह हमें ऐसा केस नहीं मिला, जहां हिंदुओं का उत्पीड़न किया गया। उनकी जमीन और संपत्ति जबरन छीन ली हो। ग्रामीणों ने बताया कि यह दुष्प्रचार लंबे समय से चला आ रहा है, जबकि हकीकत यह है कि यहां हिंदू और मुस्लिम सौहार्दपूर्ण वातावरण में रह रहे हैं। एक दूसरे के दुख सुख में काम आते हैं। शादियों में एक दूसरे के यहां आते जाते हैं।
मगर हम अभी भी संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि अभी तक तो वही गांव कवर किए गए थे, जो मुस्लिम बहुल हैं, जिन गांवों के बारे में दावा किया गया कि वहां से हिंदू पलायन कर गए। लिस्ट में ऐसे भी गांव शामिल हैं, जिसमें दावा किया गया कि इन गांवों में गिनती के हिंदू परिवार रह गए। वह क्या महसूस करते हैं,हमने अगले दिन जनज्वार टीम ने इन परिवारों से मिलना तय किया।
अगली सुबह हम सीधे रानिका गांव पहुंचे। मुस्लिम बहुल इस गांव में हिंदू परिवार खोजना वास्तव में मुश्किल काम था। गांव के बाहर किराने की दुकान चला रहे 23 वर्षीय सत्तार अहमद से हिंदू घरों का रास्ता पूछा तो उन्होंने गली की ओर इशारा करते हुए कहा कि आखिरी छोर पर पूछ लेना। हम गली के आखिरी छोर पर पहुंचे तो यहां से एक गली अंदर गांव की ओर जा रही थी। एक बच्चा हमें रास्ता बताते हुए अंदर ले गया। उसने एक बैठक की ओर इशारा किया कि यहां हिंदू लोग रहते हैं। हम बैठक में पहुंचे तो यहां 65 वर्षीय बाबू लाल मिले। उन्होंने बताया कि 500 घर गांव में मुस्लिम हैं और चार घर हिंदुओं के हैं। हमने पूछा कि तब तो आपको यहां बहुत दिक्कत आती होगी? उन्होंने कहां दिक्कत क्या? हम तो इनके खेत में काम कर बसर करते हैं। उनसे तो हमारा गुजारा चलता है। हमने पूछा कि वह आपको तंग नहीं करते। सुना है मुस्लिम बहुत इलाके में हिंदुओं को खासी दिक्कत आती है। इस पर उन्होंने कहा कि सब झूठ है।
हम एक अन्य गांव ऊंटका में गए। इस गांव के बारे में भी दावा है कि यहां हिंदू परिवार पांच से कम है। दिन के लगभग दो बजे होंगे हम हिंदू परिवार को खोजते खोजते गांव के बीच में पहुंच गए। यहां दो कमरे के मकान में हमे गांव का एक एक युवक अंदर लेकर गया। घर में एक बालक खाना खा रहा था, हमें देखकर वह खाना लेकर दूसरे कमरे मे चला गया। घर का 57 वर्षीय मुखिया रघुबीर बाहर गया हुआ था। घर में उसकी 18 साल की बेटी ज्योति और उसकी छोटी बहन व एक भाई मौजूद था। ज्योति ने बताया, इस गांव में 500 मुस्लिम परिवार है। वह आठ बहन भाई हैं। उसकी चार बहनों की शादी हो चुकी है, लेकिन किसी के साथ कभी ऐसी कोई घटना नहीं हुई। उन्हें किसी ने कभी तंग नहीं किया। वहां यहां सुकून से रह रही है।
तमाम गांवों का दौरा करने के बाद हमने नूंह के सामाजिक कार्यकर्ता समय सिंह से बातचीत की। उन्होंने बताया कि एक प्रोपेगेंडा के तहत मेवात को बदनाम किया जा रहा है। इसके लिए कुछ लोगों ने खास एजेंडा चलाया है। वह मेवात का भला चाहने वाले नहीं हैं। वह इस इलाके को बदनाम कर अपना सियासी हित साधना चाह रहा हैं। इससे दिक्कत यह आती है जब यहां के युवा बाहर काम या शिक्षा के सिलसिले में जाते हैं तो वहां उन्हें हर जगह दिक्कत आती है। यहां तक की रहने के लिए कमरा तक नहीं मिलता। उन्होंने बताया कि वह स्वयं इसका शिकार हो चुके हैं। समय सिंह ने लव जिहाद और धर्म परिवर्तन की सारी बातों को सिरे से खारिज करते हुए बताया कि यहां इस तरह की कोई दिक्कत नहीं है।
बड़े पैमाने पर गांवों का दौरा करने के बाद भी जनज्वार टीम को सर्वे में शामिल एक भी गांव का सिंगल परिवार ऐसा नहीं मिला, जिसने शिकायत की हो कि उन्हें मुस्लिमों द्वारा तंग किया जा रहा है। उनका उत्पीड़न हो रहा है।
सवाल है कि फिर यह लिस्ट क्यों? हालांकि इस सवाल का जवाब तो मंदिर के महंत स्वामीजी की बातचीत से चल गया था। लिस्ट तैयार करने में ग्राउंड पर वर्क नहीं किया गया, करते तो शायद इतनी बड़ी गलती न होती। हिंदू विक्टिम कार्ड नहीं खेला गया होता।