Ground Report: कश्मीर में छलका बिहारी मजदूरों का दर्द, आतंकियों के खौफ से घर लौटने को मजबूर

कश्मीर में बिहारी मजदूरों की आतंकियों द्वारा हत्या के बाद हालात कुछ इस कदर खौफनाक हो गये हैं कि रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर मजदूरों का रैला लगा है, ये बिहारी मजदूर आंखों में आंसू लिये अपना बोरिया बिस्तर बांध किसी तरह जान बचाकर घर वापसी की राह देख रहे हैं...

Update: 2021-10-19 11:29 GMT

फैजान मीर की रिपोर्ट

जम्मू-कश्मीर: घाटी में आतंकवादी गतिविधियों के मामले एक बार फिर तेजी से बढ़ रहे हैं। कश्मीर में काम करने वाले गरीब लोगों को आतंकवादियों द्वारा सड़क के बीचोबीच गोली मार दी जा रही है। रविवार, 17 अक्टूबर को कश्मीर के कुलगाम में आतंकवादियों ने तीन मजदूरों की गोली मारकर दी, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई वहीं तीसरा घायल है। खासतौर पर कश्मीर में अल्पसंख्यक कहे जाने वाले लोग आतंकियों के निशाने पर हैं। तीनों मजदूर बिहार के अररिया जिले के रहने वाले थे। मरने वालों में राजा ऋषिदेव (32 वर्ष) और योगेन्द्र ऋषिदेव (34 वर्ष) थे।

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जम्मू-कश्मीर में आतंकियों द्वारा मजदूरों की टारगेट किलिंग से वहां रहने वाले मजदूरों में खौफ का माहौल बन गया है। पहले तो मजदूरों की हत्या को लोग आपसी रंजिश और अन्य विवाद से जोड़कर देख रहे थे। लेकिन जैसे ही अन्य बिहारी मजदूरों के साथ ये घटनाएं आम हुई वैसे ही कश्मीर में काम कर रहे बाहर के लोगों में डर का माहौल बन गया। आलम ये हैं कि अब गैर कश्मीरी लोग जल्द से जल्द वहां से निकलकर सुरक्षित अपने घर वापस आना चाहते हैं। कश्मीर में हालात कुछ इस कदर हो गए हैं कि रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर लोगों की भीड़ हो गई है। यहां आपको लोगों का हुजूम मिलेगा जो अपना बोरिया बिस्तर बांध कर किसी तरह बस जान बचाकर घर वापसी की राह देख रहे हैं।

photo : janjwar

हमने कुछ ऐसे ही मजदूरों से बात की जो खौफ के कारण कश्मीर छोड़ने पर विवश हो गए हैं और अब घर लौट रहे हैं। एक मजदूर ने बताया कि कश्मीर में हालात खराब होने से बीवी बच्चे भी घबरा गए हैं और घर वापस आने की जिद कर रहे हैं। इलसिए अब घर लौट रहे हैं। एक अन्य मजदूर ने बताया कि, 'कश्मीर में इस तरह के हाताल पहले कभी नहीं थे। मजदूरों को जिस तरह से निशाना बनाया जा रहा है ऐसे में हम खुद को भी सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रहे। ऐसे हालात में यहां रहना सही नहीं है। यही वजह है कि हम सभी घर जा रहे हैं।' मजदूर के मुताबिक, 'पहले गोलगप्पे वाले की हत्या हुई। तब हमने सोचा कि हत्या का कारण आपसी विवाद या धोखाधड़ी हो सकता है, लेकिन फिर ईदगाह और कुलगाम में भी हत्याएं हुई। मजदूरों को घर में घुसकर मारा जा रहा है। इसलिए हमें अब अपनी जान की चिंता होने लगी है। अब बस किसी तरह घर चले जाएं तो कैसे भी गुजारा कर लेंगे।'

कश्मीर में मजदूरी करके दो वक्त की रोजी-रोटी कमाने वाले भी अब खुद को सुरक्षित नहीं मान रहे। आतंकवादियों ने जिस तरह से गरीब मजदूरों को निशाना बनाना शुरू किया है, ऐसे में गरीब मजदूर अपनी सबसे किमती चीज, यानि अपनी जान बचाने की जद्दोजहद में जुट गया है। घर लौट रहे एक मजदूर ने हमें बताया कि, 'जहां काम करते थे, वहां से भी कहा गया कि घर चले जाओं, कुछ होगा तो हम रिस्क नहीं लेंगे। पुलिस भी घर चले जाने को कह रही है। इसलिए अब जान बचाने का एकमात्र तरीका है कि यहां से निकल जाएं। स्थिति सामान्य होगी तो फिर चले आएंगे।'

बता दें कि मोदी सरकार द्वारा धारा 370 हटाने के बाद से उम्मीद की जा रही थी कि घाटी के हालात सुधर जाएंगे। कश्मीर को नए सिरे से संवारने की कोशिशें तेज हो गई थी। घाटी में रोजगार के नए अवसर बन रहे थे। अन्य राज्यों से लोग रोजगार की तलाश में जम्मू-कश्मीर की ओर पलायन कर रहे थे। माना जा रहा है कि यही कारण हैं कि सालों से कश्मीर में तनाव फैलाने वाले आतंकवादियों में बौखलाहट बढ़ गई। गैर-कश्मीरी लोगों को टारगेट किया जाने लगा और कश्मीर में बार फिर से अशांति फैलाने की कोशिशें तेज हो गई। 

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कश्मीर में मौजूदा हालात को देखते हुए भारी संख्या में गैर कश्मीरी लोगों का अपने गृह राज्य लौटने का सिलसिला जारी है। यहां एक बस में करीब 30-40 मजदूर भी भय के कारण घर लौट रहे थे। जनज्वार ने इनसे बात की तो इनकी आखों से पीड़ा छलक पड़ी। मजदूरों ने बताया कि नवंबर में घर जाने वाले थे। टिकट हो चुका था। लेकिन इस तरह से पहले ही जाना पड़ेगा ये सोच कर दुख होता है।

बातचीत के दौरान एक मजदूर ने बदहाली की दास्तां बयां करते हुए बताया कि, 'जहां काम करते थे, वहां से पैसा भी नहीं मिला। घर से पैसे मंगवा कर घर लौट रहे हैं। सड़क पर निकलने में अब डर लगता है। कब कौन गोली मार दे नहीं पता।' घर लौट रहे लोगों का कहना है कि यहां पहले से रहते थे, पर कभी कोई दिक्कत नहीं हुई। लेकिन, हाल में जिस तरह से घटनाएं हो रही है उससे खौफ में आकर अपने राज्य वापस जा रहे हैं।

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बता दें कि कश्मीर में आतंकवादियों के हौसले एक बार फिर से बुलंद होते जा रहे हैं। इस बार उनका शिकार गरीब मजदूर बन रहे हैं। ठेला लगाकर पेट पालने वाले मजदूरों को सड़क पर गोली मार दी जारही है। इससे घैर कश्मीरी लोगों के साथ साथ वहां के स्थानीय लोगों में भी डर का माहौल बन गया है। लोग सड़क पर निकलने से कतराने लगे हैं। माना जाता है कि कश्मीर में इस तरह के हालात 90 के दशक के दौरान हुआ करता था। चरमपंथियों ने एक बार फिर जम्मू-कश्मीर में ऐसा ही माहौल बना दिया है।

माना जा रहा है कि घाटी में चरमपंथियों और आतंकवादियों ने लश्कर-ए-तैयबा के साथ मिलकर द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) के आतंकवादियों से गैर कश्मीरी लोगों की टारगेट किलिंग शुरु करवाई है। केंद्र सरकार ने घाटी में कश्मीरी पंडितों को वापस बसाने और लोगों में रोजगार देने की कवायदें तेज कर दी थी। उसे लेकर आतंकी संगठनों में बौखलाहट बढ़ गई और कश्मीर में दशहत फैला कर डर पैदा करने की कोशिशें शुरु कर दी गईं।

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