पूर्वांचल के एम्स BHU में मरीजों की दुर्दशा का दौर जारी, no bed for heart patients के बाद अब ख़राब MRI मशीन से बढ़ीं मुसीबतें

पिछले 9 महीने से बीएचयू में हृदय रोगियों को भर्ती नहीं किया जा रहा है। दूसरी ओर 18 अक्टूबर से रेडियोलॉजी विभाग के मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग स्कैन (एमआरआई) की मशीन ख़राब होने से रोजाना सौ से अधिक पेशेंट और तीमारदारों को बैरंग लौटना पड़ रहा है....

Update: 2022-11-28 09:13 GMT

पूर्वांचल के एम्स BHU में मरीजों की दुर्दशा का दौर जारी, no bed for heart patients के बाद अब ख़राब MRI मशीन से बढ़ीं मुसीबतें (सभी फोटो जनज्वार)

वाराणसी से पवन कुमार मौर्य की रिपोर्ट

BHU : बीएचयू के आईसीयू में मात्र 16 से 18 ही बेड हैं, जो जनसंख्या की अनुपात और रोजाना इलाज को आने वाले मरीजों के लिए नाकाफी हैं। प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र में बीएचयू अस्पताल की बड़ी दुर्दशा चल रही है। अस्पताल प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। डबल इंजन की सरकार में मरीजों को एमआरआई जांच, बेड और इलाज के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही है।

वाराणसी के लिए प्रस्तावित 2500 बेड के एम्स के कहीं और शिफ्ट हो जाने से पूर्वांचल समेत करोड़ों की आबादी मुश्किल में आ गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में ओवरलोड से चरमराते सरकारी अस्पताल व सभी वार्ड मरीजों से फुल हैं। इधर, पूर्वांचल का एम्स कहे जाने वाले काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल अस्पताल में कई विभाग लापरवाही की भेंट चढ़ गए हैं। रोजाना सैकड़ों मरीजों को बगैर इलाज कराए ही मायूस लौटना पड़ रहा है।

पिछले नौ महीने से बीएचयू में हृदय रोगियों को भर्ती नहीं किया जा रहा है। दूसरी ओर 18 अक्टूबर से रेडियोलॉजी विभाग के मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग स्कैन (एमआरआई) की मशीन ख़राब होने से रोजाना सौ से अधिक पेशेंट और तीमारदारों को बैरंग लौटना पड़ रहा है। वहीं, जिनको नवम्बर में एमआरआई की डेट दी गई थी, उन्हें फोन कर मना किया जा रहा है। मसलन, बीएचयू अस्पताल में एक के बाद एक बढ़ती अव्यवस्था और अस्पताल परिसर में ख़राब पड़ी लिफ्ट और इमारतों से टपकते गंदे पानी से हर कोई परेशान है, तो वहीं बीएचयू की छवि भी ख़राब हो रही है।

एमआरआई सेंटर बीएचयू की गत 18 अक्टूबर से मशीन खराब होने से रोजाना सैकड़ों पेशेंटो को मायूस लौटना पड़ रहा है

पूर्वांचल का एम्स कहे जाने वाले बीएचयू अस्पताल का अव्यवस्थाओं से पीछा छूटता नहीं दिख रहा है। एक ओर जहां हृदय रोग विभाग में पेशेंट के बेड 46 से घटाकर 41 कर दिए गए और इन पर भी एमएस ने डिजिटल लॉक लगाया हुआ है, वहीं दूसरी ओर पूर्वांचल का एकमात्र सरकारी एमआरआई सेंटर बीएचयू की गत 18 अक्टूबर से मशीन खराब होने से रोजाना सैकड़ों पेशेंटो को मायूस लौटना पड़ रहा है। पेशेंट और तीमारदारों की समस्या यहीं नहीं खत्म हो रही है। विभागों में सक्रिय दलाल मरीजों के मजबूरियों का फायदा उठाते हुए अपने सांठगांठ वाले शहर के प्राइवेट अस्पतालों में पांच से छह हजार रुपए में एमआरआई कराने के लिए भेज रहे हैैं। इन दलालों को न तो पुलिस का खौफ है और न ही विवि प्रशासन की कार्रवाई का। दलालों की करतूतों से बीएचयू की छवि खराब हो रही है।

हृदय रोग विभाग के एचओडी प्रोफेसर डॉ ओमशंकर के मुताबिक़, उनके विभाग में पहले 46 बेड थे, जिन्हें घटाकर सिर्फ 41 बेड कर दिया है। उसमें भी इन बेडों को एमएस प्रो केके गुप्ता द्वारा डिजिटल लॉक लगाया गया है। इससे विगत नौ महीने उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, नेपाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल के हजारों यात्रियों के जरूरतमंद दिल के मरीजों को इलाज के लिए भर्ती नहीं किया जा सका है। बीएचयू के हृदय रोग विभाग की मेडिकल सुविधा नहीं मिलने से उक्त अवधि में सैकड़ों मरीजों की असामयिक मौत हो है। साथ ही हृदय रोग का प्राइवेट अस्पतालों में इलाज महंगा होने से कई परिवारों के जेवर-गहने, खेत और जमीनें तक बेचनी पड़ी हैं।

बीएचयू अस्पताल में मिर्जापुर की आशा का इलाज एमरजेंसी में चल रहा है। उनके तीमारदार सोनू जनज्वार से हुइ बातचीत में बताते हैं, 'बीएचयू के डॉक्टर ने उनके ब्रेन का एमआरआई और एमआरबी टेस्ट करने के लिए लिखा। आशा के परिजन जब शुक्रवार 25 नवंबर को एमआरआई व एमआरबी जांच कराने पहुंचे तो बताया गया कि मशीन तकरीबन एक महीने से बंद है। आप अपने सुविधा अनुसार कहीं और करा लें। हमें अब, बीमार मरीज को सीरियस हालत में लेकर यहां-वहां की भागदौड़ करनी पड़ेगी।

सोनू आगे कहते हैं, "हम लोग गरीब आदमी है। कैसे इतने रुपए की व्यवस्था करेंगे? एमआरआई लिखने वाले डॉक्टर के वार्ड में एक दलाल ने बीएचयू की एमआरआई मशीन के खराब होने के बाद ट्रामा सेंटर से एमआरआई कराने से मना कर दिया। उसने एक सुविधा नामक प्राइवेट अस्पताल में जाने को कहा। पता चला कि प्राइवेट एमआरआई का शुल्क पांच हजार और एमआरबी जांच का 15 सौ रुपए लगेंगे। जबकि, बीएचयू में एमआरआई शुल्क 2200 रुपए में और एमआरबी जांच फ्री में होनी थी।

वाराणसी के भेलूपुर के अमन की उम्र 21 वर्ष है और वह मैदागिन स्थित हरिश्चंद्र डिग्री कॉलेज में बीए का छात्र है। अमन के पिता हरीश कहते हैं कि अब बीएचयू में पहले वाली बात नहीं रह गई है। यहां पेशेंटों के अनुपात में व्यवस्थाएं नाकाफी साबित हो रही है। यहां आया तो मालूम हुआ कि एमआरआई मशीन खराब है। अब प्राइवेट में एमआरआई कराना पड़ेगा, जो काफी महंगा और बीएचयू के गुणवत्ता के स्तर का नहीं होता है। बीएचयू की एमआरआई मशीन खराब होने से दूर-दराज से आए रोजाना 70 से 80 लोगों को बैरंग लौटना पड़ रहा है।


महीनाभर पहले से महंगे दाम पर MRI कर रहे प्राइवेट अस्पताल

बीएचयू के एमआरआई मशीन के एक महीने से अधिक समय से खराब होने से महंगे दाम पर एमआरआई कर प्राइवेट हास्पिटल वाले चांदी कूट रहे है। आजमगढ़, जौनपुर, बलिया, चंदौली, बनारस, मिर्जापुर, सोनभद्र, गाजीपुर व बिहार के हजारों पेशेंटों को परेशानी उठाने के साथ कर्ज लेकर इलाज कराना पड़ रहा है। बीएचयू की एमआरआई मशीन के ख़राब होने से जिनको डेट दी गई थी, ऐसे लोगों तो दोहरी मुश्किल में फंस गए हैं। सबसे अधिक परेशानी तो पूर्वांचल के सुदूर जनपदों से किराया-भाड़ा खर्च कर आये लोगों को परेशान होना पड़ता है। इलाज नहीं मिलने से मरीजों को बीमारी की परेशानी के साथ आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है।

बीएचयू स्थित रेडियोलॉजी विभाग के एचओडी प्रो आशीष वर्मा जनज्वार से हुई बातचीत में कहते हैं, 'अस्पताल का महत्वपूर्ण हिस्सा है एमआरआई सेंटर। हमें भी पेशेंटों की परेशानियों की फिक्र है। युद्धस्तर पर मशीन को ठीक करने में इंजीनियर जुटे हुए हैैं। पहले जो पार्ट आए थे, वे सेट नहीं हो पाए। टीम ने बेंगलुरु और मुम्बई से पार्ट लाने की कोशिश में जुटी है। जल्द ही एमआरआई सेंटर शुरू मरीजों के लिए सेवा बहाल कर दिया जाएगा।'

आंकड़ों में एमआरआई

बीएचयू में MRI शुल्क                           2200 रुपए

बीएचयू ट्रॉमा सेंटर में MRI शुल्क            2500 से 3000 रुपए

बीएचयू में MRI रोजाना पेशेंट                  100-150

बीएचयू में MRI सेंटर पर वेटिंग                दो से तीन महीने

Private hospital में MRI शुल्क             5000 से 6000 रुपए

लिफ्ट ख़राब, टपक रहा पानी

हृदय रोग विभाग की ओपीडी के सामने लगी लिफ्ट महीनों से बदहाल है। इससे बुजुर्ग और महिला पेशेंट को दूसरे-तीसरे मंजिल पर इलाज के लिए जाने में सीढ़ी चढ़कर जाना पड़ता है, जो किसी मुसीबत से कम नहीं है। वहीं, थोड़ा आगे बढ़ने पर सूचनापट्ट के पास इमारत से पानी गंदा टपक रहा रहा है। दवा और इलाज के लिए भागदौड़ कर रहे मरीज और तीमारदार टपकते पानी से परेशान दिखे। इनकी सुध लेने और सुधार करने वाला कोई नहीं है।

स्मार्ट हेल्थ फैसिलिटी की दरकार

पत्रकार राजीव सिंह बीएचयू प्रशासन पर कई सवाल खड़े करते हुए कहते हैं, "बीएचयू अस्पताल में हाल के वर्षों में विवि प्रशासन\एमएस द्वारा मरीज पर्ची और रोगों के जांच शुल्क भी कई गुना बढ़ा दिया गया है। मालवीय जी के बगिया में जिस सामाजिक मूल्य को लेकर अस्पताल की स्थापना कराई गई थी, वह मूल्य अब धीरे-धीरे क्षीण हो रहा है। मध्यम वर्ग, हासिये के लोग, महिलाएं, बच्चें, गरीब और जटिल रोगों से पीड़ित हर वर्ग के मरीजों को रियायत दर पर मिलने वाला इलाज आज बीएचयू में आसान नहीं रहा गया है। बीएचयू के 10 से 20 किमी के दायरे में कुकुरमुत्ते की तरह सैकड़ों की तादात में प्राइवेट अस्पताल उग आये हैं। बीएचयू में इलाज व बेड नहीं मिलने पर मरीज व तीमारदार मजबूरी में इन्हीं निजी अस्पतालों की शरण में चले जाते हैं। कुछ केसों में सफलता मिल जाती है, लेकिन अधिकांशतः में महंगे इलाज से मरीजों के परिजनों को खेत, जमीन और गहने बेचकर लगभग एक पीढ़ी के लिए कर्ज के भंवर में फंस जाते हैं। इन सबका जिम्मेदार बीएचयू अस्पताल प्रशासन ही है।"

राजीव सिंह आगे कहते हैं, 'बनारस जहां तेजी से एक के बाद एक विकास के सोपान तय कर रहा है। वहीं, बीएचयू हास्पिटल में अव्यवस्था और लापरवाही से मरीजों को इलाज पाने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। विगत कई साल पहले भी एमआरआई जांच के लिए पेशेंट को दो-तीन महीनों तक इंतजार करना पड़ता था। आज भी दो महीने का इंतजार करना पड़ रहा। इस बीच मशीन के खराब होने से मरीजों की जान पर बन आई है। लिहाजा, बदलते दौर के हिसाब से सुविधाओं को भी स्मार्ट किए जाने की दरकार है।'


प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग की बाबत चिट्ठी लिखने वाले BHU के हृदय रोग विभाग के एचओडी प्रो ओमशंकर "जनज्वार" से हुई बातचीत में बताते हैं, 'पूरे कोरोनकाल में सरकारी आंकड़ों में भारत में लगभग साढ़े छह लाख लोगों की मौतें और दुनिया में 65 लाख लोगों के मौत का दावा किया जाता है। वहीं इंडिया में कार्डियोवैस्कुलर हार्ट डिजीज से एक वर्ष में तकरीबन 65 लाख लोग मरते हैं। तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो दुनिया में जितने लोग कोरोना की चपेट में आकर दम तोड़ दिए, उतने लोग सिर्फ इंडिया में हृदय रोग की एक बीमारी से सालभर में मरते हैं। बहरहाल, भारत में अधिकांश समाज गरीब है और इनमें से ही लोग इलाज कराने सरकारी अस्पतालों में आते हैं। हाल के वर्षों में दिल के रोगियों की संख्या में काफी इजाफा देखने को मिल रहा है, जो भयावह है। आसपास के जनपदों के 10-15 करोड़ की आबादी पर हमारे विभाग में पहले 46 बेड थे, जिन्हें घटाकर 41 कर कर दिया है। इसे भी दिल के मरीजों के लिए उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। यह कैसा विकास है?'

एक्टिविस्ट वैभव कुमार त्रिपाठी बताते हैं, 'यूपीए सरकार में यूपी में 2500 बेड का एम्स वाराणसी में बनाया जाना था। सत्ता में आने के बाद एनडीए सरकार ने इसे गोरखपुर में शिफ्ट कर दिया, जहां 500 बेड का एम्स निर्माणाधीन है। पूर्वांचल, बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और नेपाल के मरीजों के हित के लिए बनारस में एम्स जरूरी था। वाराणसी के लिए घोषित एम्स को गोरखपुर में शिफ्ट किया जाना शासन की अदूरदर्शिता है। बीएचयू के आईसीयू में लगभग 16 से 18 ही बेड हैं, जो जनसंख्या की अनुपात और रोजाना इलाज को आने वाले मरीजों के लिए नाकाफी है। प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र में बीएचयू अस्पताल की बड़ी दुर्दशा चल रही है। अस्पताल प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। डबल इंजन की सरकार में मरीजों को एमआरआई जांच, बेड और इलाज के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही है।"

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