Ground Report : मुस्लिमों के बिना गुजरात के इस शहर में पूरे नहीं होते दुर्गापूजा में नवरात्रि के नौ दिन
Ground Report : इस क्षेत्र के हिंदुओं की दीवाली कभी मुस्लिमों के बिना नहीं मनाई जाती और मुस्लिमों की ईद भी हिंदुओं के बिना अधूरी रहती है, इस समय देश में हिंदू-मुस्लिम का जो जहर लोगों के दिमाग में बोया जा रहा है, उसका एक अंश भी फिलहाल इस नवरात्रि में नहीं दिख रहा...
कच्छ से दत्तेश भावसार की रिपोर्ट
नवरात्रि मतलब हिंदू धर्म में पूजनीय मां दुर्गा की आराधना का पर्व। गुजरात में नवरात्रि का खासा महत्व है और यहां के लोग बहुत उल्लास से इस पर्व को मनाते हैं। यहां नवरात्रों में गरबा और डांडिया खेला जाता है, गुजराती डांडिया-गरबा पूरे देशभर में प्रसिद्ध है।
वैसे तो नवरात्र हिन्दू धर्म से जुड़ा त्यौहार है, तो जाहिर है इसमें हिंदू ही बढ़-चढ़कर भागीदारी करते हैं। मगर गुजरात में एक जगह ऐसी भी है, जहां धर्म के बंधनों से परे हिंदू मुस्लिम सभी नवरात्रि के पर्व को उल्लासपूर्ण ढंग से मनाते हैं। कच्छ जिले के भुज शहर में की नवरात्रि मुस्लिमों के बिना संपन्न नहीं होती है। गुजरात में और भी कई जगहों पर हिन्दू मुस्लिम साथ मिलकर नवरात्रि का उत्सव धूमधाम से सेलिब्रेट करते हैं।
गौरतलब है कि वोकला फलिया नवरात्रि मंडल में कई मुस्लिम परिवार पिछले 49 सालों से यहां अपनी सेवाएं दे रहे हैं और हर्ष और उल्लास के साथ हिंदू परिवारों के पर्व में कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं। वोकला फलिया गरबी मित्र मंडल के लगभग 175 सदस्यों में से 30-40 मुस्लिम सदस्य हैं।
एक तरफ जहां मालेगांव ब्लास्ट में आरोपी रहीं भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा नवरात्रों के बीच सांप्रदायिकता फैलाने के लिए जहर उगर रही हैं कि गरबा पंडाल में मुस्लिमों की एंट्री पर बैन लगाया जाये, वहीं दूसरी तरफ भुज का नवरात्र पर्व प्रज्ञा जैसी कट्टरपंथियों के मुंह पर तमाचा है।
इस पर्व की बात करें तो मां आशापुरा का दीप जलाने के लिए जो गरबा बनता है, वह कुम्हार मिट्टी से बनाता है। ज्यादातर कुम्हार मुस्लिम परिवारों से आते हैं, इसलिए शुरुआत से ही मुस्लिमों का योगदान नवरात्रि में होता है। वोकला फलिया में डेकोरेशन की बात करें तो हुसैन भाई खलीफा के परिवार ने यह जिम्मा लिया हुआ है। तीन पीढ़ियों से हुसैन भाई खलीफा का परिवार डेकोरेशन का काम करते रहे हैं। सामान लाना, ले जाना आदि की जिम्मेदारी सिद्दीक भाई बायड़ परिवार के जिम्मे होता है। यह परिवार ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय से जुड़ा है, इसलिए सारा ट्रांसपोर्टेशन वही संभालते हैं।
लाइट डेकोरेशन में सारे लोगों के साथ रसीद जमादार परिवार अपना योगदान देता है और अन्य कामों के लिए मेमन परिवार हमेशा की तरह खड़े रहता है। यह नवरात्रि और भी कई मुस्लिम परिवारों के साथ मिलकर मनाई जाती है। जब माता की आरती होती है तब भी सारे मुस्लिम परिवार हिंदुओं के साथ मिलकर आराधना करते हैं। जब गरबा होता है तब भी मुस्लिम बालिकाएं हर्ष और उल्लास के साथ गरबा खेलती नजर आती हैं।
देखा जाये तो गुजरात की यह अदभुत नवरात्रि कट्टरपंथी ताकतों के मुंह पर तमाचे की तरह है। यहां हिंदू मुस्लिम साथ मिलकर पिछले 49 सालों से नवरात्रि उत्सव मना रहे हैं, ना सिर्फ नवरात्रि उत्सव बल्कि गणपति उत्सव और जन्माष्टमी भी हिंदू मुस्लिम साथ मिलकर मनाते हैं। इस क्षेत्र के हिंदुओं की दीवाली कभी मुस्लिमों के बिना नहीं मनाई जाती और मुस्लिमों की ईद भी हिंदुओं के बिना अधूरी रहती है। इस समय देश में हिंदू-मुस्लिम का जो जहर लोगों के दिमाग में बोया जा रहा है, उस जहर का एक अंश भी फिलहाल इस नवरात्रि में नहीं दिख रहा है।
हिंदू समाज के रामलाल भाई कहते हैं, देश में चाहे जितनी सांप्रदायिकता फैली हो, मगर हमारे यहां हिंदू मुस्लिम मिलकर रहते हैं। हम एक दूसरे के त्योहारों को उल्लास से मनाते हैं। सांप्रदायिक ताकतों के मुुह पर हमारी नवरात्रि एक तमाचे की तरह है।'
इस नवरात्रि के आयोजन में पिछले 42 सालों से एवाई भट्टी सक्रिय हैं। वह कीबोर्ड प्लेयर हैं और अपनी मधुर धुनों से लोगों को झूमने पर मजबूर कर देते हैं, जबकि तलत तारवानी जिनका इस साल निधन हुआ है, उन्होंने भी 42 साल नोबत ;नगाड़ाद्ध बजाकर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। अपनी जिंदगी के कुल 58 बसंत में से तलत तारवानी ने 42 साल इस नवरात्रि में ढोल और नोबत ; नगाड़ाद्ध बजाकर सेवायें दीं। आबिद हुसैन भी पिछले कई सालों से ढोल बजाकर लोगों को गरबा और डांडिया खिला रहे हैं।
नवरात्रियों में अली भाई धोबी, अब्दुल्ला धोबी और रमजान धोबी और उनका पूरा परिवार 45 साल से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इनके साथ गनी भाई मेमन, रफीक भाई मेमन, अमन मेमन भी सारे कार्यकर्ताओं के साथ उत्सव में शामिल होते हैं और सारे कार्य करते हैं। नवरात्रि पंडाल में राशिद खान पठान, रजाक भाई जमादार और उनके परिवार जनों की तरफ से चित्र व पेंटिंग बनाकर मां नव दुर्गा के पंडाल को आकर्षित बनाया जाता है। हालांकि हिंदू मुस्लिम एकता का यह सौहार्दपूर्ण वातावरण तब भी भुज में कायम रहा, जबकि गोधरा कांड की आग में पूरा गुजरात जल रहा था। तब भी यहां के हिंदुओं ने मुस्लिम परिवारों को कई कई दिनों तक अपने घरों में रखा था।
चूंकि यह नवरात्रि सांप्रदायिकता के जहर से अछूती है, इसलिए यहां के मुस्लिमों के दिलोदिमाग में किसी तरह का कोई डर-भय नजर नहीं आता। मुस्लिम परिवार दिल खोलकर डांडिया में झूमते नजर आते हैं। उम्मीद है कि आने वाले सालों में भी यह क्षेत्र सांप्रदायिक झगड़ों से दूर रहकर इसी तरह मिसाल बना रहेगा। हालांकि ये डर भी है कि कल को साध्वी प्रज्ञा जैसी कोई कट्टरपंथी यहां के माहौल को बिगाड़कर वैमनस्य पैदा कर दें और हिंदू मुस्लिमों के प्यार की मिसाल यह पर्व सांप्रदायिक हो जायें।