Uttarakhand Elections 2022: झूठे आश्वासन दे वोट हड़पते हैं नेता, चंपावत के लोगों ने विकास कार्यों की खोली पोल

Uttarakhand Elections 2022: उत्तराखंड में विधानसभा के चुनाव के लिए 14 फरवरी को मतदान होने हैं, चुनाव से पहले जनज्वार राज्य के चंपावत जिसे के बनबसा गांव पहुंचा और लोगों से सरकार द्वारा किए विकास कार्यों के बारे में जानने की कोशिश की...

Update: 2022-01-23 13:20 GMT

Uttarakhand Elections 2022: 'तेरी गलियों में रखेंगे हम कदम आज के बाद....वादा रहा' बॉलीवुड का ये गीत हमारे देश के नेताओं पर एकदम सटीक बैठता है, क्योंकि, चुनाव खत्म होने के बाद जब वे जीत जाते हैं, तो उन्हें उनके क्षेत्र की जनता की कोई खबर ही नहीं रहती। न ही वे दोबारा उन इलाकों में कदम रखते है, जहां वो जनता से वोट देने की फरियाद करने जाते हैं। उतराखंड में विधानसभा चुनाव को अब महज कुछ दिन बचे हैं, ऐसे में जनज्वार के पत्रकार राज्य के सुदूर गांव-कस्बों में जनता की समस्याओं से आपको सीधे रू-ब-रू करवाने की कोशिश करते हैं। इसी कड़ी में हम पहुंचे चंपावत जिले के बनबसा गांव में।

बनबसा गांव में जाते ही हमें चार पांच लोग दिखे। हमनें इनमें से एक बुजुर्ग से बात की, तो उन्होंने बताया कि वे पूर्व सैनिक रहे हैं। वे बताते हैं कि, 'समय के हालात के हिसाब से इस गांव का जनजीवन आज भी बेहद पिछड़ा हुआ है। किसी सरकार ने आज तक इस क्षेत्र की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। नेता का जनता को झूठ की सागर में डूबोना है। विकास का आश्वासन सभी देते हैं, मगर करता कोई नहीं है।'

पेशे से किसान केशर सिंह बताते हैं, 'भाजपा सरकार केंद्र में अच्छा कर रही हैं, लेकिन राज्य में भाजपा सरकार के आने से जिस विकास की उम्मीद थी, वह नहीं हो पाई।' एक अन्य व्यक्ति बताते है कि सरकार ठीक काम कर रही है, लेकिन निचले स्तर पर जो प्रतिनिधि हैं, फिर चाहे वो प्रधान हो या विधायक, ये सभी गरीबों का हक मारते हैं। जब जनता अपने लिए आवाज उठाती है तो डरा धमका कर उनका मुंह बंद करा दिया जाता है।

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ग्राम सभा चंदनी में जनज्वार ने कुछ महिलाओं से बात की तो उन्होंने बताया कि, 'रास्ता कच्चा होने के कारण बारिश के दिनों में पानी भर जाता है। बच्चों को स्कूल आने जाने में सबसे ज्यादा दिक्कत आती है। कभी कभी घरों तक पानी आ जाता है। पिछले तीन सालों से यहां रहते हैं। शिकायत भी की थी। प्रतिनिधि आकर हाल देख जाते हैं, और 'बस हो जाएगा' कहकर आश्वासन देकर चले जाते हैं।'

आगे जब हम इस क्षेत्र में बढ़े तो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बना एक आवास दिखा। कहने को इस घरों में रहने वालों के सिर पर छत है। मगर घर की हालत कच्ची पक्की ही है। बात की तो पता चला कि घर के मुखिया का 10-15 दिन पहले की स्वर्गवास हो गया। विधवा महिला लक्ष्मी देवी की दो बेटियां हैं। महिला की बेटी पार्वती ने बताया कि, 'वह 10वीं कक्षा में पढ़ती है। पिता की बिमारी और पैसे की कमी के कारण उसने पढ़ाई छोड़ दिया। पिता के मौत के बाद घर में कमाने वाला कोई नहीं है।' सरकार की तरफ से इस परिवार को अबतक कोई मदद नहीं मिल पाई है।

ग्रामीण भूवन राम ने बताया कि 'बिमार रहते हैं। पत्नी घरों में झाड़ू पोछा का काम करती है, जिससे किसी तरह परिवार चल पाता है।' सरकार कैसा काम करती है इस सवाल पर वे बताते हैं, 'सरकार क्या काम करती है, कुछ पता नहीं चलता। हमें तो कुछ नहीं मिलता।' वहीं, एक स्कूली छात्रा ने बताया कि स्कूल में बच्चों को किसी भी चीज की जानकारी नहीं दी जाती है। पास के इलाकों में स्थित स्कूलों में टैबलेट की योजना आई थी, पर हमारे स्कूल में कोई जानकारी नहीं मिली। वहीं, छात्रा ने बताया कि उसे 11वीं के बाद स्कॉलरशिप भी नहीं मिली है।

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चंपावत के इस गांव में ऐसे कई घर है, जहां लोगों के पास रहने को पक्का घर तक नहीं है। जिन्होंने किसी तरह अपने पैसे से झोपड़ी खड़ी भी कर ली है, उन्हें अब यह कहकर लाभ नहीं दिया जा रहा है, कि घर तो बन चुका है। ऐसे में यहां की जनता क्षेत्र के प्रतिनिधि से त्रस्त हैं।

बता दें कि उत्तराखंड की पांचवीं विधानसभा के चुनाव के लिए 14 फरवरी को मतदान होने हैं। चुनाव की प्रक्रिया शुक्रवार यानी 21 जनवरी से नामांकन दाखिल करने के साथ शुरू हो चुकी है।

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