Ground Report : बाढ़ की तबाही झेलने को मजबूर बिहार में इस बार 41 प्रतिशत से भी कम बारिश, पलायन के डर के साथ आत्महत्या को मजबूर
Ground Report : सरकार हमें फसल क्षतिपूर्ति के रूप में अनुदान दे पाती तो हमें इतना नहीं सोचना पड़ता, हमारे इलाके की जांच करवाने के बाद हम लोगों के क्षेत्र को सूखा प्रभावित घोषित किया जाए, अगर सरकार हमें कोई मदद नहीं देगी तो जो हालात बन रहे हैं ऐसे में हम लोग भुखमरी के शिकार हो जायेंगे....
शिवहर से राहुल तिवारी की रिपोर्ट
'हम लोग कम पढ़े लिखे लोग हैं। कोरोना के बाद तो वैसे ही कंपनी, फैक्ट्री वाले लोग मजदूरों को निकाल रहे हैं तो हम लोगों के पास खेती के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है। अब जब फसलें ही सूख रही हैं तो हम अपना गुजारा कैसे करेंगे, इसीलिए हमारा सरकार से आग्रह किया कि हमें अनुदान के रूप में मदद की जाये, नहीं तो हम लोग मौत का रास्ता अपनाने को मजबूर होंगे।' ये पीड़ा है बिहार के शिवहर जनपद के छोटी आय वाले किसान अमरनाथ की, जहां लोग बरसात के मौसम में सूखे की मार झेल रहे हैं।'
देश के अधिकतर भागों में एक तरफ बारिश और बाढ़ से लोग परेशान हैं तो वहीं बिहार में बारिश की एक.एक बूंद के लिए लोग तरस रहे हैं। यहां पर बारिश का आलम यह है कि किसानों को धान की रोपनी करने के लिए पंप सेट से पानी पटवन करना पड़ रहा है। इसके बावजूद अभी भी बिहार में मात्र 48 प्रतिशत ही धान की रोपनी हो पाई है। जहां पर रोपनी हुई भी है, उस खेत में धान पीले पड़ रहे हैं। वहां पानी नहीं पटाया गया तो वह धान भी खराब हो जाएगा। हालांकि अब मौसम विभाग ने अंदेशा जताया है कि जल्द ही बिहार में बारिश होगी।
ज्यादा बारिश हालांकि बिहार के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है, मगर इस बार बारिश न होने से यहां के किसान पूरी तरह से परेशान हैं। हर साल इस मौसम में उत्तर बिहार के लगभग सभी जिले बाढ़ और बारिश के पानी से तबाह रहते हैं, मगर इस बार का आलम यह है कि खेत में अभी भी सूखे की दरारें साफ देखी जा सकती हैं और बहुत सारे खेतों में रोपनी भी नहीं हो पाई है। जहां रोपनी हुई भी है, वहां बारिश के पानी के बगैर धान की फसल बर्बाद हो रही है। यहां के किसान कहते हैं यही हालत रही तो हम भूखों मर जायेंगे, नीतीश सरकार के लिए हमारी भुखमरी कोई सवाल ही नहीं है।
बिहार के शिवहर जिले के किसान रमाकांत सिंह कहते हैं, 'सरकार हमें फसल क्षतिपूर्ति के रूप में अनुदान दे पाती तो हमें इतना नहीं सोचना पड़ता। हमारे इलाके की जांच करवाने के बाद हम लोगों के क्षेत्र को सूखा प्रभावित घोषित किया जाए, ताकि सरकार से हमलोग को कोई मदद मिल सके। अगर सरकार हमें कोई मदद नहीं देगी तो जो हालात बन रहे हैं ऐसे में हम लोग भुखमरी के शिकार हो जायेंगे। हम सड़क पर आ जाएंगे।
केंद्र की मोदी और राज्य की नीतीश सरकार तक रमाकांत अपनी बात पहुंचाना चाहते हैं। कहते हैं, 'इस बार हम लोगों के खेत में पानी नहीं होने की वजह से हम लोग पंप से धान की रोपाई कर रहे हैं और हम लोग छोटे किसान होने की वजह आय का कोई दूसरा स्रोत भी नहीं है। किसान को अगर सरकार कुछ मदद नहीं करती है तो हम लोग सड़क पर आने के लिए मजबूर हो जाएंगे।'
बिहार में कम बारिश का मामला लोकसभा में भी उठा
बिहार के पाटलिपुत्र से सांसद रामकृपाल यादव शुक्रवार 5 अगस्त को बिहार में कम बारिश का मामला लोकसभा में भी उठाया। उन्होंने सरकार से अपील करते हुए कहा कि केंद्र की मोदी सरकार एक टीम भेजकर जांच करवाये और बिहार को सूखा प्रदेश घोषित करे। जलवायु परिवर्तन का दुष्परिणाम बिहार बिहार भुगत रहा है। 29 जुलाई तक बिहार में 484.4 मिली मीटर बारिश की तुलना में मात्र 287.4 मिली मीटर बारिश हुई है। इसके अनुसार 41 प्रतिशत बारिश कम हुई है। बिहार के 90 प्रतिशत से अधिक किसान सूखे से प्रभावित हुए हैं।
उत्तर बिहार के सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर और मोतिहारी जैसे जिलों में अकाल जैसे हालात
उत्तर बिहार के सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर और मोतिहारी जैसा जिले जो लगभग हर साल बाढ की त्रासदी झेलते हैं, इस मौसम में इन जिलों में पूरी तरह बाढ़ और बारिश का पानी भरा होता था, आज का आलम यह है कि यहां पर खेतों में दरार पड़ चुकी है। यहां की जो मिट्टी है वह उजली पड़ी है।
शिवहर के किसान अमरनाथ सिंह कहते हैं, 'हम लोगों के घरों में आय का मुख्य साधन कृषि है, अगर हम लोग खेती नहीं करेंगे तो खाएंगे क्या? हमारे परिवार का भरण-पोषण इसी खेती से होता है। सरकार से निवेदन करते हुए अमरनाथ कहते हैं, हम लोगों को अनुदान की राशि दी जाये और हमारे इलाके को सूखाग्रस्त घोषित किया जाए, नहीं तो हम लोग पूरे परिवार के साथ आत्महत्या करने को मजबूर होंगे।
अमरनाथ अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहते हैं, हम लोग कम पढ़े लिखे लोग हैं। कोरोना के बाद तो वैसे ही कंपनी, फैक्ट्री वाले लोग मजदूरों को निकाल रहे हैं तो हम लोगों के पास खेती के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है। इसीलिए हमारा सरकार से आग्रह किया कि हमें अनुदान के रूप में मदद की जाये, नहीं तो हम लोग मौत का रास्ता अपनाने को मजबूर होंगे।
बिहार सरकार डीजल पर दे रही अनुदान
बिहार सरकार ने किसानों को डीजल पर अनुदान देने की घोषणा की है, जिससे उनको थोड़ी राहत मिले। किसानों का कहना है कि यह राहत हमारी समस्या के समाधान के लिए काफी नहीं है। सरकार को धान की फसल बर्बाद होने की स्थिति में एक वैकल्पिक खेती का रास्ता तैयार करना होगा और हम लोगों की मदद करनी होगी। कम पढ़े लिखे होने की वजह से लोगों को डीजल अनुदान लेने में भी समस्या हो रही है। जानकारी के अभाव में लोग इधर उधर भटक रहे हैं।
खेती चौपट होने से किसानों में पलायन का डर
किसान श्यामसुंदर तिवारी कहते हैं, हम लोगों की जो स्थिति है यह अगर बनी रहती है तो हम लोग कोरोना के बाद फिर से बाहर जाने के लिए मजबूर होंगे, क्योंकि हम लोग छोटे किसान हैं और हमारे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है। इतने पढ़े लिखे भी नहीं हैं कि कंपनी फैक्ट्री में हमें अच्छा काम मिल पायेगा।
जहां सूखे की मार झेल रहे किसान अपनी तमाम तकलीफें बताते हैं, वहीं बिहार सरकार कहती है कि हम बिहार से पलायन को रोकने में काफी हद तक कामयाब हुए हैं। अभी जो अकाल की स्थिति बनी हुई है, निश्चित तौर पर बिहार से मजदूर या छोटे छोटे किसान दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे महानगरों में मजदूरी करने के लिए बाध्य होंगे। और यहां से बड़े पैमाने पर पलायन होगा।
लखनदेई, बागमती और गंडक जैसी नदियों में अभी भी मार्च-अप्रैल की तरह पानी
हर साल अगस्त का महीना बिहार के लिए एक बाढ़ की त्रासदी लेकर आता था, लेकिन इस बार यह अगस्त किसानों के लिए अकाल बनकर आया है। यहां की नदियां अभी भी मार्च-अप्रैल की तरह बह रही है। अभी जिन नदियों में उफान रहना चाहिए, उनमें सिर्फ कहने भर को पानी है। इसका मुख्य कारण है वर्षापात का कम होना। उत्तर बिहार की लखनदेई, बागमती और गंडक जैसी नदियां अभी पानी के लिए तरस रही हैं।