खोरी के लाखों लोग घर टूटने के बाद बेघर, अरावली की जमीन पर बने फार्महाउसों पर कब चलेगा बुल्डोजर?
एक लाख की आबादी वाले क्षेत्र खोरी जहां पर 10000 से ज्यादा परिवार अपने नन्हे—नन्हे आशियानों में रह रहे थे, आज खुले आसमान के नीचे, बरसती हुई बारिश में और कड़कड़ाती धूप में कोविड के इस दौर में जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं...
जनज्वार ब्यूरो। हरियाणा स्थित फरीदाबाद का खोरी गांव मीडिया की सुर्खियां बना हुआ है, कारण है वहां पर कोर्ट के आदेश से हजारों घरों को ढहाना और लाखों लोगों को बेघर करना। इसके खिलाफ तमाम राजनीतिक-सामाजिक संगठनों ने आवाज उठायी, मगर सबकी आवाज अनसुनी करते हुए कोर्ट का हथौड़ा चला और लाखों लोगों के आशियाने टूट गये। सबसे बड़ी बात कि इस मामले की रिपोर्टिंग करने से तक मीडिया को रोका गया।
इस मामले में एक बड़ी बात यह कि मजदूरों-गरीबों के घर तो ढहा दिये गये, मगर उन्हें पुनर्वास देने का काम नहीं किया गया। हालांकि अब कोर्ट ने आश्वासन दिया है कि पर्यावरण की दृष्टि से हानिकारक अमीरों के फार्म हाउस एवं एंक्रोचमेंट को भी खोरी से बेदखल किया जायेगा। ये कब होगा देखने वाली बात है।
गौरतलब है कि मजदूर आवाज संघर्ष समिति खोरी गांव द्वारा मजदूरों के आवास के मुद्दे पर पिछले कई वर्षों से जमीन से सुप्रीम कोर्ट एवं यूनाइटेड नेशन तक की लड़ाई लड़ी जा रही है। हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक की लड़ाई में खोरी गांव के मजदूर परिवारों ने नगर निगम कार्यालय, डीसी कार्यालय तो कभी जंतर मंतर पर जाकर अपना दुखड़ा सरकार को सुनाया, किंतु सुप्रीम कोर्ट भी टस का मस न हुआ।
मजदूरों के आवास के संघर्ष में एक बहुत बड़ा मोड़ 7 जुलाई 2021 को तब आया जब सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस खानविलकर ने खोरी गांव की बेदखली के आदेश जारी किए। उस आदेश के बाद नगर निगम ने लगभग 5000 से ज्यादा घरों को पिछले सप्ताह में धराशाई कर दिया। एक लाख की आबादी वाले क्षेत्र खोरी जहां पर 10000 से ज्यादा परिवार अपने नन्हे—नन्हे आशियानों में रह रहे थे, आज खुले आसमान के नीचे, बरसती हुई बारिश में और कड़कड़ाती धूप में इस वैश्विक महामारी के दौरान अपने जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं।
मजदूर आवास संघर्ष समिति खोरी गांव के कई कार्यकर्ताओं समेत ग्रामीणों को इस संघर्ष के दौरान झूठे मुकदमों में फंसाकर फरीदाबाद पुलिस द्वारा जेलों में डाल दिया गया तो कभी पुलिस संरक्षण में दो-दो चार-चार दिन तक बिना परिवार को बताए जबरन रखा गया। एक तरफ टूटे घर दूसरी तरफ बिलखता हुआ परिवार और तीसरी तरफ पुलिस अत्याचार चौथी तरफ रोजगार खो जाने एवं कोरोना की महामारी से अपनी जान बचाने के साथ आज एक रोटी के टुकड़े के लिए तरसता हुआ परिवार पुनर्वास की मांग कर रहा है, किंतु नगर निगम की ओर से जारी की गई पुनर्वास की नीति केवल एक ड्राफ्ट के रूप में फाइलों के फेर में दबी हुई है।
अब जब खोरी के मजदूर सड़कों पर हैं, उनके लिए पुनर्वास का लॉलीपॉप यानी मकान पाना भी बहुत आसान नहीं है। पुनर्वास की नीति में 2021 तक मजदूरों के पास उनके पहचान पत्र वोटर आईडी कार्ड, परिवार पहचान पत्र, बिजली के बिल में से किसी एक दस्तावेज का होना आवश्यक बताया गया है। साथ ही ₹17000 की पहली किस्त मजदूर द्वारा जमा कराई जाना एवं प्रतिमाह ₹2500 की राशि नगर निगम फरीदाबाद को जमा करवाना आवश्यक रूप से निहित किया गया है। यही नहीं, बल्कि बेदखल परिवार को अपना आवेदन प्रस्तुत करने के लिए नगर निगम के पास जाना पड़ेगा। पॉलिसी में कई प्रकार की कमियां निहित होने के कारण 8 दिन पूर्व मजदूर आवास संघर्ष समिति खोरी गांव के साथियों ने नगर निगम फरीदाबाद, प्रिंसिपल सेक्रेट्री हरियाणा सरकार एवं डिप्टी कमिश्नर फरीदाबाद को पत्र लिखकर पुनर्वास की नीति में संशोधन करने की गुहार भी लगाई थी, किंतु प्रशासन एवं नगर निगम ने इस और कोई भी ध्यान नहीं दिया।
खोरी गांव से उजाड़ने के बदले फ्लैट देने का सरकारी दावा बिल्कुल फर्जी : आंदोलनकारी
23 जुलाई 2021 को माननीय सुप्रीम कोर्ट में सरीना सरकार वर्सेस स्टेट ऑफ हरियाणा का मामला जो पहले से ही विचाराधीन है, किंतु अशोक कुमार वर्सेस स्टेट ऑफ हरियाणा, विनोद कुमार वर्सेस स्टेट ऑफ हरियाणा, रेखा वर्सेस स्टेट ऑफ हरियाणा भी मामले के रूप में दाखिल किए गए जिसकी सुनवाई आज सुप्रीम कोर्ट में की गई पर कुछ बात न बनी।
सरीना सरकार बनाम हरियाणा सरकार याचिका क्रम संख्या 301 के मामले में एवं अशोक कुमार वर्सेस स्टेट ऑफ हरियाणा के मामले में मजदूर आवाज संघर्ष समिति की ओर से यह मांग की गई कि पुनर्वास की योजना जो नगर निगम एवं हरियाणा सरकार की ओर से ड्राफ्ट के रूप में तैयार की गई है उसमें कई सारी कमियां है जिसमें सरकार को संशोधन करने की आवश्यकता है, साथ ही उस नीति को नोटिफाई करने की जरूरत है क्योंकि बिना नोटिफाई किए यह पुनर्वास की नीति मात्र कागज का एक टुकड़ा बन कर रह जाएगी और किसी को पुनर्वास नहीं मिलेगा।
इस मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने तत्काल खोरी गांव के सभी मजदूर परिवारों को पुनर्वास देने एवं पुनर्वास की नीति में बदलाव करने की मांग की।
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्वास के मुद्दे पर तत्काल ही याचिकाकर्ता सरीना सरकार को अपनी ओर से एक रिप्रेजेंटेशन हरियाणा सरकार एवं नगर निगम फरीदाबाद को देने के लिए कहा गया तथा नगर निगम फरीदाबाद को डायरेक्ट किया गया कि 1 सप्ताह के अंदर पुनर्वास की नीति में संशोधन कर उसे नोटिफाई किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेदखल किए गए परिवारों को भोजन एवं आश्रय की तत्काल सुविधा प्रशासन की तरफ से दी जानी चाहिए। फिलहाल बेदखली पर स्टे संबंधित कोई आदेश नहीं आया है। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा की गरीबों के घर टूटने पर कोर्ट कोई राहत नहीं दे रही, फिर फार्महाउस पर रोक कैसे है? किंतु सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की जमीन पर बने हुए फार्महाउस एवं किसी भी प्रकार के स्ट्रक्चर को भी छूट न देकर उसे तत्काल बेदखल करने के सख्त आदेश दिए हैं।
मजदूर आवाज संघर्ष समिति खोरी गांव के सदस्य निर्मल गोराना के मुताबिक, हरियाणा सरकार तत्काल ही मजदूरों को चिन्हित कर डबुआ कॉलोनी में बने हुए फ्लैट देकर राहत प्रदान कर सकती है, किंतु प्रशासन उन तमाम फ्लैट्स की मरम्मत तत्काल करवाए। मजदूर आवास संघर्ष समिति खोरी गांव की ओर से नगर निगम एवं हरियाणा सरकार को पुनर्वास की नीति में बदलाव हेतु एक और निवेदन प्रपत्र भेजा जाएगा और प्रयास रहेगा कि खोरी गांव के हर मजदूर परिवार को उचित सम्मानजनक पुनर्वास मिल सके।
बरसात और कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए नगर निगम को बेदखल परिवारों के प्रति संवेदनशीलता रखते हुए इन्हें ट्रांसिट कैंप तक पहुंचाने के लिए जन संगठनों का सहयोग लेने की आवश्यकता है। मजदूर आवाज संघर्ष समिति खोरी गांव इस प्रकार के सहयोग के लिए तैयार हैं।
मजदूर आवाज संघर्ष समिति खोरी गांव ने नगर निगम फरीदाबाद से निवेदन किया है कि बिना दस्तावेज के खोरी गांव में रहने वाले प्रत्येक मजदूर परिवार को भी घर आवंटित किए जाएं और इसमें किसी प्रकार का कोई भी दस्तावेज संबंधित कोई भी नियम व शर्तें न रखी जायें, केवल वह परिवार या उसका मुखिया खोरी गांव में रह रहा हो उसी आधार पर बेदखल परिवारों को निशुल्क पुनर्वास प्रदान किया जाए।