कोरोना लड़कियों के लिए बना आपातकाल, 2 करोड़ बच्चियां होंगी माध्यमिक शिक्षा छोड़ने को मजबूर
यूनेस्को का आकलन है कि दुनिया की अगर सभी बालिकाएं कम से कम 12 वर्षों तक शिक्षा ग्रहण करें तो अर्थव्यवस्था का विस्तार 30 खरब डॉलर अधिक होगा, दुनिया अधिक स्वस्थ्य भी होगी। मगर इस ओर किसी देश का ध्यान नहीं है
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
इस सप्ताह संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा आयोजित की जानी है, जिसमें कोविड 19 के साथ साथ अन्य समस्याओं की चर्चा की जानी है। इससे पहले नोबेल पुरस्कार प्राप्त मलाला युसफ्जई ने दुनिया भर के नेताओं को संबोधित करते हुए बालिकाओं की शिक्षा पर ध्यान खींचने का प्रयास किया है।
उनके अनुसार कोविड 19 से केवल जनस्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर ही प्रभाव नहीं पड़ा है, बल्कि शिक्षा के आपातकाल का दौर आ गया है। हरेक महामारी और आपदा वैसे तो सबको प्रभावित करती है, पर सबसे अधिक प्रभाव महिलाओं और बालिकाओं पर पड़ता है, और यह असर शिक्षा के क्षेत्र में भी है। गरीब तबके पर ऐसा असर सबसे अधिक होता है। कोविड 19 के कारण प्रभावित होने वाली शिक्षा का असर अनेक वर्षों तक रहेगा।
वर्ष 2014-2015 के दौरान एबोला महामारी के विस्तार के समय सिएरा लियॉन, गिनी और लाइबेरिया में बहुत सारी बालिकाओं ने अपनी शिक्षा बीच में ही छोड़ दी थी। ऐसी ही स्थिति कोविड 19 के दौर की समाप्ति पर भी होने वाली है। मलाला फण्ड का आकलन है कि कोविड 19 का दौर ख़त्म होने तक लगभग 2 करोड़ बालिकाएं अपनी माध्यमिक शिक्षा को छोड़ देंगीं – ये वो बालिकाएं हैं जिनका नामांकन माध्यमिक विद्यालयों में है।
इस दौर में 45 करोड़ बालिकाएं ऐसी हैं जिनका किसी विद्यालय में नामांकन नहीं है, कोविड 19 के दौर के पहले ऐसी बालिकाओं की संख्या लगभग 13 करोड़ थी। यूनेस्को का आकलन है कि शिक्षा में सरकारों द्वारा जितना खर्च किया जाना चाहिए, सरकारें उसकी तुलना में प्रतिवर्ष 200 अरब डॉलर कम खर्च कर रही हैं।
शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाओं को अर्थशास्त्री पूरी व्यवस्था पर बोझ समझते हैं, इसलिए गरीब देशों में शिक्षा पर बहुत कम खर्च किया जाता है। दूसरी तरफ यूनेस्को का आकलन है कि दुनिया की अगर सभी बालिकाएं कम से कम 12 वर्षों तक शिक्षा ग्रहण करें तो अर्थव्यवस्था का विस्तार 30 खरब डॉलर अधिक होगा, दुनिया अधिक स्वस्थ्य भी होगी। मगर इस ओर किसी देश का ध्यान नहीं है, क्योंकि बाजार को ही अर्थव्यवस्था मान लिया गया है और भारत समेत तमाम बड़े देश शिक्षा को भी बाजार के हवाले कर चुके हैं।
कोविड 19 के दौर में ऑनलाइन शिक्षा का प्रचालन शुरू हो गया और इसने सामान्य समाज में भी अमीर और गरीब के साथ शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के बीच गहरी खाई खींच दी। इसके लिए स्मार्टफोन या लैपटॉप की जरूरत थी और इन्टरनेट कनेक्शन की भी। यह सब शहरी क्षेत्र में अमीर और मध्यम वर्ग के परिवार में सहज उपलब्ध रहते हैं, पर गरीबों के पास नहीं। इस कारण गरीबों का एक बड़ा तबका, विशेष तौर पर बालिकाएं, शिक्षा से मरहूम होता जा रहा है।
शिक्षा से दूर होते ही बालिकाओं को पूरी तरीके से घर के काम में लगा दिया जाता है, या फिर कच्ची उम्र में की शादी कर दी जाती है। कोविड 19 के दौर में हमारे देश में भी बाल विवाह की परंपरा फिर से शुरू हो गई।
मलाला युसफ्जई ने गरीब देशों से आग्रह किया है कि शिक्षा पर निवेश बढायें और कोविड 19 के बाद एक बार फिर से शिक्षा का सशक्त इंफ्रास्ट्रक्चर विक्सित करें और यह भी सुनिश्चित करें कि कोई भी बालिका शिक्षा से वंचित नहीं रहे। जब सबको शिक्षा मिलेगी तभी सामाजिक विकास होगा और फिर स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दे पर कम निवेश से अच्छे परिणाम मिलेंगें।