Crime Against Tribal Women : आदिवासी महिलाओं के लिए खाप पंचायत है 'मोड़े होड़', गैंगरेप का फैसला भी करते हैं पंच

Crime Against Tribal Women : झारखंड के सुदूर आदिवासी इलाकों में एक कुप्रथा के तहत आदिवादी महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों का फैसला पंचायत द्वारा ही कर लिया जाता है और उन्हें थाने नहीं पहुंचने पहुंचने ही नहीं दिया जाता है...

Update: 2022-05-06 11:15 GMT

Crime Against Tribal Women : आदिवासी महिलाओं के लिए खाप पंचायत है 'मोड़े होड़', गैंगरेप का फैसला भी करते हैं पंच

Crime Against Tribal Women : झारखंड (Jharkhand) में आदिवासी समाज में महिलाओं के साथ अपराध की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती है। महिलाओं के साथ हुए अपराधों और उनके न्याय को लेकर झारखंड के स्थानीय पंचायत (मोड़े होड़) पर हमेशा से सवाल खड़े होते रहे हैं। आरोप लगते रहे हैं कि वह महिलाओं के साथ हुए अपराधों की खबरें थाने या कोर्ट पहुंचने नहीं देते है, बल्कि उस मामले को स्थनीय पंचायत (मोड़े होड़) में ही सुलझा लिया जाता है। इस मुद्दे पर समाजसेवी रजनी मुर्मू (Rajni Murmu) लंबे समय से मुखर रही हैं।

रजनी मुर्मू ने अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा है कि 'आदिवासी महिलाओं के मामले कोर्ट और थानों में कम दर्ज हो रहे हैं। इसका अर्थ ये नहीं है कि आदिवासी महिलाओं के साथ अपराध कम होते हैं, बल्कि इसका अर्थ ये है कि मोड़े होड़ थानों तक औरतों को आने ही नहीं देता है। गैंग रेप जैसे जघन्य अपराध का फैसला भी खुद ही कर देता है।

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बता दें कि मोड़े का मतलब पांच और होड़ का मतलब जन यानी पंचजन (पंचायत) होता है। झारखंड के सुदूर आदिवासी इलाकों में एक कुप्रथा के तहत आदिवादी महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों का फैसला पंचायत द्वारा ही कर लिया जाता है और उन्हें थाने नहीं पहुंचने पहुंचने ही नहीं दिया जाता है। रजनी मुर्मू के इस पोस्ट के बाद से माहौल गर्म हो गया है। इस मुद्दे पर समाजसेवी रजनी मुर्मू ने जनज्वार मीडिया से बात की। 

रजनी मुर्मू बताती हैं कि कस्टमरी लॉ (प्रथागत कानून) के आधार पर आदिवासी समाज स्वशासन चलाते हैं। संविधान बनने से पहले पंचायत में ही सभी मामले सुलझाए जाते थे लेकिन अब संविधान बनने के बाद और कानून व्यवस्था आने के बाद भी पंचायत ही सभी प्रकार के मामले सुलझाती है। वो थाने या कोर्ट जाना पसंद नहीं करते हैं क्योंकि उनको लगता है कि उनकी परंपरा को ओवरटेक किया जा रहा है। महिलाओं के साथ हो रहे सभी अपराध के मामले पंचायत में सुलझाने की कोशिश की जाती है, पर अधिकतर मामलों में यह न्यायसंगत नहीं होता है। यहां तक कि गैंगरेप का मामला भी पंचायत में जुर्माना लगाकर सुलझा दिया जाता है।

यदि कोई लड़की इससे ऊपर उठकर थाने या कोर्ट जाती है तो पहले तो उसे चेतावनी दी जाती है, धमकाया जाता है फिर उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है। किसी भी एक्टिविटी में उस लड़की का साथ नहीं दिया जाता है। तलाक भी पंचायत में ही दिलवाया जाता है। जो तलाक पंचायत में करवाए जाते हैं, उन मामलों में महिला को उसके या उसके बच्चों के भरण-पोषण के लिए कोई भत्ता नहीं मिलता है, बस चुपचाप तलाक करा दिया जाता है।

महिलाओं के साथ सजा के तौर पर की जाती है मारपीट

समाज सेवी रजनी मुर्मू ने बताया कि आदिवासी समाज में जब एक विवाहित महिला का संबंध अन्य पुरुष के साथ पाया जाता है तो उस महिला के साथ बेरहमी से मारपीट की जाती है, इसके बाद जुर्माने में बड़ी रकम वसूल कर छोड़ा जाता है। साथ ही उस महिला को डुगडुगी बजाकर (आदिवासी वाद्य) गांव और टोला में घुमाया जाता है। यदि किसी आरोपी के पास जुर्माना भरने की हैसियत नहीं है या किसी कारणवश पर जुर्माने की रकम नहीं चुका पाते है तो उनके साथ मारपीट कर उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है।

रजनी मुर्मू ने बताया कि अभी हाल ही में 2 मामले सामने आए हैं। एक मामला झारखंड के दुमका का है। यहां पर आदिवासी समाज की महिला को सजा के तौर पर निर्वस्त्र कर पूरे गांव में घुमाया गया। मामला यह था कि महिला का अन्य पुरुष के साथ संबंध था। महिला के पति और दोस्तों ने महिला को पकड़ कर उसके साथ मारपीट की। महिला को निर्वस्त्र कर 5 टोला और मेन रोड पर घुमाया गया। पंचायत बुलाई गई। पंचायत में लड़की के साथ पकड़े गए लड़के पर 3 लाख का जुर्माना लगाया गया। जिसके बाद 50 हजार रुपए में मामला सुलझाया गया।

पुलिस भी मोड़े होड़ के सामने मजबूर

इस मामले में लड़की के साथ जो भी हुआ, वह पुलिस के सामने ही किया गया। जिस समय महिला के साथ बर्बरता की जा रही थी, उस समय पुलिस मौजूद थी और पुलिस पंचायत से विनती कर रही थी कि लड़की को छोड़ दो। जिसके बाद पुलिस के कहने पर ही 50,000 जुर्माने के बाद ही मामले को शांत किया गया और पुलिस ने लड़की को रेस्क्यू किया। पुलिस आदिवासी समाज के सामने इसलिए मजबूर है क्योंकि पुलिस के अंदर डर है कि यदि आदिवासियों ने अपना डुगडुगी बजा दिया तो थाने में आग लगा दी जाएगी। यदि पुलिस आदिवासियों के मामले में दखल देती है तो आदिवासी समाज गुस्से में पुलिस के साथ मारपीट करता है और थाने में आग लगा देता है। इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं।

रजनी मुर्मू ने कहा कि पुलिस बहाना बनाकर इस मामले से दूरी बनाए हुए है। पुलिस चाहती तो सभी पंचायत कर रहे हैं लड़कों को हिरासत में ले सकती थी क्योंकि पुलिस के पास सारे सबूत मौजूद हैं। लड़की के साथ हो रही बर्बरता का वीडियो भी बनाया गया है। वह सबूत भी पुलिस के पास मौजूद है, बावजूद इसके पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। जब पुलिस से इस मामले के बारे में पूछा जाता है तो वह कहती है कि एफआईआर दर्ज कर ली गई है, आगे जांच की जाएगी। पुलिस ने केस नंबर भी बताया लेकिन जब उसे नेट पर खोजते हैं तो ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं दिखाई देता है।

ऐसा ही दूसरा मामला झारखंड के गोड्डा के पोरैयाहाट का है। यहां महिला के कॉन्स्टेबल पति ने महिला को छोड़कर दूसरी शादी की। जिसके बाद पहली पत्नी ने मेंटेनेंस का केस दर्ज किया। फिर पति और उसके दोस्तों ने महिला को गलत तरीके से फंसा कर पंचायत में खड़ा कर दिया। महिला का एक लड़के से बात करते हुए वीडियो बनाया और नाजायज संबंध का आरोप लगाते हुए लड़की के साथ मारपीट की। साथ ही पंचायत में ही पति ने एक दस्तावेज पर साइन लिए कि अब वह अपने पति पर केस नहीं करेगी क्योंकि वह खुद गलत है और इस दस्तावेज को कोर्ट में सबमिट किया गया। साथ ही लड़के से 50 हजार का जुर्माना भी वसूला गया है। जब इस मामले में महिला ने थाने में शिकायत की तो पहले थानेदार ने शिकायत दर्ज करने से इंकार कर दिया, उनका कहना था कि आदिवासी समाज में तो पंचायत की प्रथा है, यह उनका आपसी मामला है। रजनी मुर्मू के बात करने के बाद थाने में मामला दर्ज किया गया लेकिन इस मामले के बारे में जब थाने में फोन करके पूछा जाता है तो वहां फोन नहीं उठाते हैं।

सामाजिक अभियान से महिलाएं हो रही जागरूक

रजनी मुर्मू का कहना है कि जो भी सामाजिक अभियान चलाए जाते हैं, उसका असर महिलाओं पर हो रहा है। महिलाएं जागरूक हो रही हैं। महिलाओं को यह समझ आ रहा है कि उन पर अत्याचार हुआ है और उन्हें इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए, जबकि पहले महिलाओं को भी समझा दिया जाता था कि उनकी गलती है और वह भी अपनी गलती मानकर चुप हो जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। महिलाएं खुद खड़ी हो रही हैं। इसके साथ ही कुछ पुरुष वर्ग भी है, जो इस बात को समझ कर अपने सामने गलत होता देख आवाज उठाते हैं।

(सामाजिक कार्यकर्ता नी मुर्मू की जनज्वार के लिए साक्षी से बातचीत पर आधारित आलेख)

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