AN Sinha Institute controversy : जहां गांधी करीब 3 महीने रहे वहीं नहीं मिल रही गांधी पर कार्यक्रम करने की इजाजत
AN Sinha Institute controversy : आज यह मकान उपेक्षित और गुमनाम पड़ा है, कुछ साल पहले तक तो यह जर्जर हो चला था...
पुष्यमित्र की टिप्पणी
AN Sinha Institute controversy जनज्वार। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की अपने देश में ऐसी प्रतिष्ठा रही है कि वे जिस भी जगह एक रात ठहरे वहां लोगों ने उनका स्मारक बना दिया। उस इलाके के लोगों के लिए वह तीर्थ बन गया। मगर बिहार (Bihar) की राजधानी पटना में एक जगह ऐसी भी है, जो बापू के लिए तीन महीने का ठिकाना था, मगर वहां कोई दिया जलाने वाला भी नहीं। यह जगह किसी दूरदराज के इलाके में नहीं पटना के हृदय में स्थित गांधी मैदान से कुछ कदम की दूरी पर एएन सिंहा इंस्टीट्यूट के परिसर में है। मगर शहर के ज्यादातर लोगों को उस जगह के बारे में पता नहीं। आम दिनों को तो छोड़ दिया जाये, गांधी की जयंती और पुण्यतिथि के अवसर पर भी कोई वहां फूल माला लेकर नहीं पहुंचता। वह जगह वैसे ही वीरान पड़ी रहती है।
अगर आप एएन सिंहा इंस्टीट्यूट (AN Sinha Institute) गये होंगे तो बाईं तरफ कोने में शायद आपकी नजर एक बोर्ड पर पड़ी हो, जिस पर गांधी शिविर (Gandhi Shivir) लिखा है। वह बोर्ड इस तरह लगा है कि अमूमन वह किसी का ध्यान अपनी तरफ नहीं खींचता। पर अगर आपके पास वक्त होगा और गांधी के नाम को लेकर आपमें रुचि होगी तो शायद आप चंद कदम की दूरी तय कर वहां चले जायेंगे। वहां आपको पुरानी शैली का एक छोटा सा मकान दिखेगा। जिसकी दीवारों पर काई उग आयी है और जिसके दरवाजों पर ताला लगा है। वहां एक और बोर्ड लगा मिलेगा, जिस पर लिखा है कि 5 मार्च, 1947 को महात्मा गांधी यहां अपने शिष्यों के साथ बिहार दंगों के बाद शांति मिशन के सिलसिले में आये थे। वे यहां 24 मई, 1947 तक ठहरे। मगर इस जगह की कहानी इतनी सी नहीं है।
1946-47 में जब आजादी (Freedom) की घड़ी बिल्कुल नजदीक आ गयी थी, तब देश के बंटवारे की जिद पर अड़ी मुस्लिम लीग पार्टी (Muslim League Party) ने डायरेक्ट एक्शन डे मनाया था। इसके बाद बंगाल की राजधानी कोलकाता में भीषण दंगे हुए, बाद में अक्तूबर में नोआखली में उससे भी जघऩ्य मारकाट हुई। जिसमें हजारों लोग मारे गये, महिलाओं की इज्जत लूटी गयी, जबरन लोगों का धर्म परिवर्तन कराया गया। वह इलाका मुस्लिम बाहुल्य था औऱ राज्य में सरकार भी मुस्लिम लीग की थी, सो वहां हिंदुओं पर दंगों (Riots) की मार पड़ी। उसकी प्रतिक्रिया में बिहार में भी अक्तूबर-नवंबर महीने में दंगा हुआ। आजादी के ऐन पहले देश में मची मारकाट और फैले सांप्रदायिक तनाव ने महात्मा गांधी को बेचैन कर दिया। वे पहले अक्तूबर में नोआखली गये, वहां चार महीने तक पीस मिशन चला कर, मार्च में बिहार आये।
दोनों जगह उन्होंने गांवों की यात्रा की, सांप्रदायिक हिंसा करने वालों को पश्चाताप करने और अल्पसंख्यकों के मन में ताकत भरने का काम किया। बिहार में अपने प्रवास के दौरान उन्होंने पटना, मसौढ़ी और जहानाबाद के कई गांवों का दौरा किया। वे जब-जब पटना में रहे रोज शाम उन्होंने वर्तमान गांधी मैदान में प्रार्थना सभा की। जिसमें दोनों धर्मों के एक लाख से अधिक लोग रोज पहुंचते थे। इसी वजह से उस मैदान का नाम गांधी मैदान पड़ा। पटना में रहते हुए उन्होंने दंगे के दोषियों को अपना अपराध कबूलने और अल्पसंख्यकों को ताकत देकर उन्हें अपने गांव में फिर से बसाने की जिम्मेदारी दी।
उनकी अपील का काफी असर हुआ। उन्हें कई दफा लोगों ने गुमनाम चिट्ठियां भेज कर अपना अपराध कबूल किया। लोगों ने गांधी जी को सांप्रदायिकता से लड़ने के लिए खूब चंदा दिया। महिलाएं अपने जेवर तक चंदे में दे दिया करती थीं। गांधी मैदान इसका गवाह है। इस अभियान में उनका साथ देने खान अब्दुल गफ्फार खान जैसे नेता पटना आये थे। आजाद हिंद फौज के कर्नल शाहनवाज ने भी मसौढ़ी के एक गांव में रहकर लोगों के बीच अमन फैलाने का अभियान चलाया। गांधी कहते थे, मैं आपको अहिंसा का कर्नल बनाना चाहता हूं। कर्नल शाहनवाज ने यह साबित कर दिखाया।
इस बीच तत्कालीन वायसराय माउंटबेटेन (Mountbaiten) के बुलावे पर उन्हें दिल्ली जाना पड़ता था। आजादी के वक्त चल रही राजनीति ने उन्हें बिहार में स्थिर नहीं रहने दिया। मगर वे बिहार को अपने प्रयोग का केंद्र बनाना चाहते थे। वे कहते थे कि बिहार के चंपारण ने मुझे पहचान दी है, इस बार मैं बिहार में सदभावना का ऐसा प्रयोग करना चाहता हूं, जिससे पूरे देश में अमन-चैन फैल सके। पटना में रहते हुए ही उनकी पोती मनु गांधी अपेंडिसाइटिस से पीड़ित हुई और प्राकृतिक चिकित्सा के प्रेमी गांधी को मजबूर पीएमसीएच में मनु का आपरेशन करवाना पड़ा। इसके बाद 24 मई को वे दिल्ली चले गये।
बिहार में गांधी का यह आखिरी प्रवास चंपारण सत्याग्रह (Champaran Satyagreh) से कम महत्वपूर्ण नहीं है। उन्होंने धर्म के नाम पर लड़ने वाले दो कौम के लोगों के दिल को प्रेम से भरने का अभियान यहां चलाया था और इसमें उन्हें काफी सफलता भी मिली। इस पूरी अवधि में वे उसी गांधी शिविर में रहे, जिसकी चर्चा मैंने की है। यह संभवतः बिहार की ऐसी इकलौती जगह रही होगी, जहां गांधी तीन महीने तक रहे। उनका प्रवास 81 दिन का था, बीच में वे दिल्ली, जहानाबाद, मसौढ़ी आदि जगहों पर जाते रहे, मगर कम से कम 54 रातें तो उन्होंने इस मकान में जरूर गुजारीं।
मगर आज यह मकान उपेक्षित और गुमनाम पड़ा है। कुछ साल पहले तक तो यह जर्जर हो चला था। कुछ लोगों द्वारा अभियान चलाने पर सरकार ने इसका जीर्णोद्धार तो करा दिया, मगर फिर इसे वह भूल गयी। यहां लोगों के आने का सिलसिला नहीं शुरू हुआ। इसे गांधीवादी तीर्थ की तरह विकसित नहीं किया गया। इस घर में कोई रोशनी करने वाला भी नहीं। जिस एएन सिंहा इंस्टीट्यूट में यह है, वहां के लोग भी उधर झांकने नहीं जाते। दो अक्तूबर और 30 जनवरी के दिन भी नहीं, जब पूरा देश गांधी की जयंती और पुण्यतिथि मना रहा होता है।
अगर यह जगह किसी और राज्य में होती तो इसे एक संग्रहालय में बदल दिया गया होता। इसके बारे में ढंग से बताया जाता तो पटना आने वाला हर व्यक्ति यहां आकर इसे देखता और गांधी के पीस मिशन को याद करता। काश यह सब होता तो यह जगह बिहार को प्रतिष्ठा भी देती और नियमित आय भी।
(गांधी जयंती पर पत्रकार पुष्यमित्र एक कार्यक्रम करना चाहते थे, लेकिन AN Sinha Institute ने इजाजत नहीं दी। उसी अनुभव और बर्ताव को उन्होंने आप सबसे शेयर किया है।)