Breaking GN Saibaba : DU प्रो. साईबाबा, हेम मिश्रा और प्रशांत राही समेत 6 लोग बाइज्जत बरी, माओवादियों से कथित सांठगांठ में ठहराए गए थे अपराधी

यूएपीए और देशद्रोह के आरोपों से जीएन साईबाबा और अन्य को बॉम्बे हाईकोर्ट ने पूरी तरह से बरी किया...

Update: 2022-10-14 06:13 GMT

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मुंबई न्यूज। गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत पांच साल से अधिक समय तक जेल में रहने के बाद बॉम्बे उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को कथित माओवादी लिंक और भारत सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयास के आरोप से बरी किया। गोकरकोंडा नागा साईबाबा अपने कथित माओवादी संबंधों के लिए 2017 से नागपुर की केंद्रीय जेल में बंद थे। उनके खिलाफ पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।

प्रोफेसर जी.एन. साईबाबा को DU ने किया बर्खास्त, पत्नी बोलीं झूठे आरोप लगाकर टारगेट कर रही सरकार

नागपुर खंडपीठ के न्यायमूर्ति रोहित देव और अनिल पानसरे की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है। गौरतलब है कि माओवादी होने और माओवादियों की मदद के नाम पर गिरफ्तार किये गये आरोपियों में से एक पांडु पोरा नरोटे की इस साल अगस्त में मौत हो चुकी है। महेश तिर्की, हेम मिश्रा, प्रशांत राही और विजय नान तिर्की इस मामले में अन्य आरोपी थे। कोर्ट ने शारीरिक विकलांग साईं बाबा की तत्काल रिहाई का आदेश जारी किया है।

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पांडु नरोटे की मौत के लिए जेल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगे थे। पुलिसकर्मियों की घोर लापरवाही के कारण पांडु की जेल में मौत हुयी थी, जबकि डीयू प्रोफेस साईं बाबा की पत्नी कई बार उनकी बीमारी को लेकर रिहाई की गुहार लगा चुकी थी, उनकी तबीयत भी जेल में लगातार खराब रही। इसीलिए कोर्ट द्वारा उन्हें तत्काल रिहा करने के आदेश दिये गये हैं। 

नागपुर की अंडा सेल में बंद प्रो. साईंबाबा की तबीयत नाजुक

शारीरिक रूप से विकलांग दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर साईंबाबा 2017 से नागपुर की केंद्रीय जेल में बंद थे, जबकि उनकी लगातार गंभीर होती हालत को देखते हुए अदालत से उन्हें रिहा करने की बार-बार अपील की गई थी। जीएन साईबाबा पोलियो ग्रस्त होने के चलते दोनों पैरों से विकलांग हैं। मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक वह 90 प्रतिशत विकलांग है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा साईंबाबा पर लगे आरोप मनगढ़ंत, सरकार करे तत्काल रिहा

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी कहा था कि जीएन साईबाबा पर जो आरोप हैं वे मनगढंत हैं और उनका मुकदमा अंतर्राष्ट्रीय अपराध मानकों के मुताबिक नहीं है।जी एन साईबाबा को 'गैरकानूनी गतिविधि', 'आतंकवादी गतिविधि' और 'आंतकवादी संगठन का एक सदस्य' के तौर पर षडयंत्र करने का आरोप​ लगाकर 7 मार्च 2017 को उम्रकैद की सजा सुना दी गई थी। यह सजा मुख्यतः प्राथमिक दस्तावेजों और वीडियो, जिसे कोर्ट ने साक्ष्य मान लिया, के आधार पर ही उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया(माओवादी) का सदस्य करार दे दिया। 

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प्रतिबंधित चरम वामपंथी संगठनों के साथ कथित संबंधों के लिए जीएन साईबाबा को 2014 में भी गिरफ्तार किया गया था मगर उन्हें जमानत दी गई थी। बाद में 2017 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) और इसके फ्रंटल संगठन, प्रतिबंधित रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (आरडीएफ) के साथ संबंधों के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। जीएन साईबाबा लगातार इनकार करते रहे कि उनका प्रतिबंधित संगठन से कोई लेना-देना नहीं है, उन पर यूएपीए की धारा 13, 18, 20, 38 और 39 और भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी के तहत आरोप जड़े गये थे। 

कौन हैं जीएन साईंबाबा

जीएन साईबाबा का जन्म आंध्रप्रदेश के एक गरीब परिवार में हुआ था। साईबाबा 90 प्रतिशत शारीरिक रूप से अक्षम हैं। साल 2003 में दिल्ली आने से पहले उनके पास व्हीलचेयर खरीदने के भी पैसे नहीं थे लेकिन पढ़ाई में हमेशा से काफी तेज थे। 9 मई 2014 में गिरफ्तार होने से पहले दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े रामलाल कॉलेज में अग्रेजी के प्रोफेसर थे। जीएन साईबाबा ने ऑल इंडिया पीपुल्स रेजिस्टेंस फोरम के एक कार्यकर्ता के रूप में कश्मीर और उत्तर पूर्व में मुक्ति आंदोलनों के समर्थन में दलित और आदिवासी अधिकारों के लिए प्रचार के लिए दो लाख किमी से अधिक यात्रा की थी।

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