प्रोफेसर जी.एन. साईबाबा को DU ने किया बर्खास्त, पत्नी बोलीं झूठे आरोप लगाकर टारगेट कर रही सरकार
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जनज्वार डेस्क। मानवाधिकार कार्यकर्ता व प्रोफेसर जी.एन.साईंबाबा बीते कुछ सालों से जेल में हैं। 54 वर्षीय साईंबाबा शारीरिक रूप से 90 प्रतिशत विकलांग हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग समेत तमाम मानवाधिकार संगठन व कार्यकर्ता उनकी रिहाई की समय-समय पर मांग करते रहे हैं लेकिन उन्हें रिहा नहीं किया गया। बीते साल जब उनकी माता का निधन हुआ तो उन्होंने 45 दिन की मेडिकल बेल की मांग की थी लेकिन 28 जुलाई 2020 को उनकी याचिका को बॉम्बे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। अब खबर यह है कि साईंबाबा को प्रोफेसर के पद से आधिकारिक तौर पर निष्कासित कर दिया गया है।
प्रोफेसर जी.एन.साईंबाबा को माओवादी से संबंध के आरोप में साल 2017 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। साईंबाबा ने साल 2003 में बतौर इंग्लिश प्रोफेसर कॉलेज को जॉइन किया था। साल 2014 में निलंबन के बाद महाराष्ट्र पुलिस ने प्रोफेसर को कथित माओवादियों के साथ संबंध के चलते गिरफ्तार किया था। अब खबर है कि उनकी पत्नी वसंथा और बेटी मंजिरा को कॉलेज की ओर से 1 अप्रैल 2021 को एक लेटर मिला जिसमें उनके पति पद से हटाने की बात कही गई है।
वसंथा कुमारी (53 वर्षीय) बताती हैं कि बिना किसी सबूत के साईंबाबा को उम्रकैद की सजा सुना दी गई। सरकार सिर्फ उन्हें टारगेट कर रही है। सारे आरोप झूठे हैं। जिनकी सोच सरकार से नहीं मिलती है तो उनको माओवादी कहते हैं या उन्हें आतंकवादी घोषित कर दिया जाता है। भारत में जितने भी आदिवासी गांव हैं वहां पर लोगों को मारा जाता है। वहां के युवाओं को पीटा जाता है, उनके गांव तक को जला दिया जाता है। कॉरपोरेट को फायदा दिलवाने के लिए वहां के लोगों को परेशान किया जाता है। मेरे पति भी मानवधिकार कार्यकर्ता हैं और इन मुद्दों पर बोलते हैं इसीलिए उन्हें फंसाया जा रहा है।
साल 2014 में पहली बार साईबाबा को गिरफ्तार किया गया था जिसके बाद साल 2015 में खराब तबीयत के चलते उन्हें 6 महीने के लिए जमानत दे दी गई और 6 महीने बाद फिर उन्हें जेल भेज दिया गया। वसंथा बताती हैं कि 5 साल की उम्र में ही साईबाबा पोलियो से ग्रसित हो गए थे। कमर से नीचे उनके पैर काम नही करते हैं। वो बिना सहारे के न खड़े हो सकते हैं और न ही चल सकते हैं। उनको हमेशा व्हील चेयर की जरुरत पड़ती है। अब सोचिए कि जो इंसान ढंग से खड़ा तक नहीं हो सकता है वो माओवादियों के साथ मिलकर क्या करेंगे। सरकार को बिलकुल भी अक्ल नहीं है क्या... वसंथा आगे बताती हैं कि हम हैदराबाद से ताल्लुक रखते हैं लेकिन लगभग 20 सालों से दिल्ली में ही रह रहे हैं तो कैसे साईबाबा का महाराष्ट्र के माओवादियों से लेना-देना होगा।
साईंबाबा की पत्नी वसंथा ने जनज्वार से कहा कि मार्च 2020 से लेकर अभी तक (1 साल हो गया है) मैं उनसे नहीं मिली हूं। कोरोना के चलते हमारी मुलाकात पर रोक लगा दी गई। मुझे नहीं पता कि वो कैसे हैं। दिल्ली स्थित राम नाथ कॉलेज की तरफ से भी मेरे पति का टर्मिनेट लेटर आ गया है। जिसमें लिखा गया है कि उनकी सेवाएं 31 मार्च, 2021 से समाप्त की जा रही हैं और वेतन उनके सेविंग अकाउंट में डाल दिया जाएगा।
'एकमात्र यही लाइन पूरे लैटर में लिखी हुई थी इसके अलावा टर्मिनेट करने का कोई कारण नहीं बताया गया है। जीएन साईबाबा की सजा के खिलाफ मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में अपील दायर की गई है, जो फिलहाल लंबित पड़ी है उसके बावजूद भी कॉलेज का यह रवैया काफी परेशान करने वाला है। मैं हाउस वाइफ हूं और मेरी एक बेटी मंजिरा जो अभी एम.फिल. कर रही है। हमें नही पता कि हम आगे क्या करेंगे और कैसे करेंगे। इस उम्र में मुझे जॉब मिलना भी मुश्किल है। मैं फिर कह रही हूं कि टारगेट करके हमें फंसाया जा रहा है।
वह आगे कहती हैं कि 'मुझे याद है कि कैसे लोकसभा चुनावों के दौरान प्रज्ञा ठाकुर के नाम को लेकर बवाल हुआ था। कैसे लोग भाजपा से उनको टिकट देने पर सवाल कर रहे थे। प्रज्ञा सिंह ठाकुर मध्यप्रदेश के भोपाल - सीहोर लोकसभा क्षेत्र की सांसद हैं। मालेगांव ब्लास्ट की मुख्य आरोपी तक को भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया था उनपर भी कई संगीन आरोप हैं बावजूद आज देश की नेता है।'
क्या था मामला
जी.एन. साईंबाबा को महाराष्ट्र पुलिस ने मई, 2014 में गिरफ्तार किया था। उनपर प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) समेत पुप्पाल्ला लक्ष्मण राव ऊर्फ गनपति से संबंध रखने का आरोप था। उन्हें और पांच अन्य लोगों को गैरकानूनी गतिविधियां अधिनियम 1967 की धारा 13,18,20,38 और आएपीसी 120बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत गढ़चिरौली सेशन कोर्ट ने लेफ्ट विंग एक्स्ट्रीमिस्ट ऑर्गेनाइजेशन से संबंध रखने और भारत के खिलाफ "युद्ध छेड़ने" के लिए दोषी ठहराया था। सभी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
UAPA की यह धाराएं आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने, गैरकानूनी गतिविधियों को प्रोत्साहन या उनका सुझाव देने, आतंकी समूहों के साथ संबंध रखने और आतंकी समूहों के लिए मदद इकट्ठा करने से संबंधित हैं। शुक्रवार को डीयू टीचर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट राजिब रे ने यूनिवर्सिटी के इस कदम की आलोचना की।
उन्होंने कहा कि मामले में अपील दायर की गई है, जिसका अभी अंतिम निर्णय आना बाकी है। इसलिए कॉलेज और यूनिवर्सिटी प्रशासन को यह कदम नहीं उठाना चाहिए था। वहीं साईंबाबा के परिवार का कहना है कि यह फैसला उन्हें मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने और यातना देने के साथ-साथ डराने के लिए उठाया गया है।