एमएसपी से आधी कीमत पर बिक रही हैं फसलें और जावड़ेकर का दावा है कि मोदी जी डेढ गुनी कीमतें दे रहे हैं
किसानों को फसलों की लागत की डेढ गुनी कीमत देने के मोदी सरकार के दावे की पोल भाजपा के प्रदेश स्तरीय नेता ही उन राज्यों में खोल रहे हैं, जहां उनकी पार्टी विपक्ष में है...
जनज्वार। किसानों के भारत बंद के बीच मोदी सरकार ने इस मुद्दे पर एक बार फिर अपना बचाव किया है और दावा किया है कि उनकी सरकार किसानों को लागत मूल्य से डेढ गुणा कीमत दे रही है। जबकि हकीकत यह है कि इस सीजन में किसानों को मुख्य फसलें धान व मक्का एमएसपी से आधी कीमत पर बिक रही हैं। दिलचस्प बात यह है कि जिन राज्यों में भाजपा सरकार में नहीं है और विपक्षी पार्टियां सरकार में हैं, वहां खुद उसके प्रदेश स्तरीय नेता यह बात कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए झारखंड जैसे प्रदेश में धान की एमएसपी 1950 रुपये के बजाय उसके 1100 रुपये क्विंटल पर बिकने को लेकर भाजपा नेताओं ने राज्य भर में आंदोलन चलाया है। इसको लेकर पुतले भी फूंके गए और राज्य की सत्ताधारी पार्टी झामुमो-कांग्रेस से लेकर कृषि मंत्री व खाद्य आपूर्ति मंत्री तक को घेरा गया। बिहार जैसा राज्य जहां एपीएमसी अधिनियम यानी एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग एक्ट लागू नहीं है, वहां विभिन्न फसलें आधी कीमत तक पर बिकने की नौबत है। जनज्वार ने बिहार चुनाव के दौरान इस संबंध में किसानों से बातचीत पर खबरें भी कवर कीं। ऐसे में प्रकाश जावड़ेकर के दावे आधारहीन हैं।
प्रकाश जावड़ेकर ने मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों को वापस लेने को लेकर 15 दिनों से जारी आंदोलन पर विपक्ष के रवैये को मोदी सरकार ने पाखंड बताया है। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि विपक्ष द्वारा कृषि कानूनों को वापस लेने की बात कहना उनका पाखंड है। उन्होंने कहा कि जब वे सत्ता में थे जब उन्होंने अनुबंध कृषि अधिनियम पारित किया था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में इन कानूनों की शुरुआत का उल्लेख किया है।
प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि किसानों ने लागत से अतिरिक्त मूल्य की मांग की है, हम उन्हें लागत से 50 प्रतिशत ऊपर दे रहे हैं। कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में उनके लिए कभी कोई ऐसी पेशकश नहीं की। इसे देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं।
अब भाजपा यह दावा कर सकती है कि कृषि राज्य का विषय है और राज्य में एमएसपी सुनिश्चि करना उसकी जिम्मेवारी है। लेकिन, जब मोदी सरकार ने संसद के मानसून सत्र में तीन कृषि विधेयकों को पारित किया था तब विपक्षी दलों और गैर एनडीए शासित राज्यों ने यह कह कर ही विरोध किया था कि यह राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण है और केंद्र सरकार ऐसा कानून नहीं पारित कर सकती है।
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