Fortified Rice Problem : झारखंड में फोर्टिफाइड चावल से बढ़ रही है थैलीसिमिया व सिकलसेल एनीमिया से पीड़ितों की संख्या
Fortified Rice Problem : पहले सूखे चावल को पीसकर आटा बनाया जाता है, फिर उसमें सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाए जाते हैं। उसके बाद पानी के साथ इन्हें सही तरीके से मिक्स किया जाता है। फिर मशीनों की मदद से सुखाकर इस मिश्रण को चावल का आकार दिया जाता है, इसे ही Fortified rice कर्नेल (FRK) कहा जाता है...
विशद कुमार की रिपोर्ट
Fortified Rice Problem : भारत में कुपोषण एक गंभीर समस्या है। 113 देशों के ग्लोबल फूड सिक्योरिटी इंडेक्स में भारत का नंबर 71 वां है। खाद्य मंत्रालय के मुताबिक देश में हर दूसरी महिला में खून की कमी है और हर तीसरा बच्चा कुपोषित है। भारत में कुपोषण की गंभीर समस्या को दूर करने के लिए सरकार ने एक महत्वाकांक्षी अभियान के तहत फोर्टिफाइड चावल (Fortified rice) का वितरण शुरू किया है। इसके तहत मिड डे मील और सरकारी राशन की दुकान पर फोर्टिफाइड राइस को बढ़ावा दिया जा रहा है।
क्या होता है फोर्टिफाइड चावल? इसे कैसे तैयार करते हैं?
पहले सूखे चावल को पीसकर आटा बनाया जाता है, फिर उसमें सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाए जाते हैं। उसके बाद पानी के साथ इन्हें सही तरीके से मिक्स किया जाता है। फिर मशीनों की मदद से सुखाकर इस मिश्रण को चावल का आकार दिया जाता है, इसे ही Fortified rice कर्नेल (FRK) कहा जाता है। चावलों को फोर्टिफाइड करने की गाइडलाइंस के मुताबिक एक किलो फोर्टिफाइड राइस (Fortified rice) में आयरन (28-42.5 मिलीग्राम), फॉलिक एसिड (75-125 माइक्रोग्राम), विटामिन बी12 (0.75-1.25 माइक्रोग्राम) होता है। इसके साथ ही FSSAI ने जिंक (10-15 मिलीग्राम), विटामिन ए (500-700 माइक्रोग्राम), विटामिन बी1 (1-1.5 एमजी) विटामिन बी2 (1.25-1.75 एमजी), विटामिन बी3 (12.3-20 एमजी) और विटामिन बी6 (1.5-2.5 एमजी) होनी ही चाहिए।
वहीं भारतीय खाद्य संरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के क़ानूनी नियमों और भारत सरकार के दिशा-निर्देशों का सरकार खुद ही उल्लंघन कर रही है। भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के तहत फोर्टिफाइड चावल के बोरों या पैकेटों में लेबल लगाना क़ानूनी बाध्यता है। थैलीसीमिया से पीड़ित लोग और सिकल सेल एनीमिया वाले व्यक्तियों को चेतावनी देते हुए आयरन फोर्टिफाइड भोजन के प्रत्येक पैकेज पर विवरण देना अनिवार्य है। लेकिन कुछ बोरों में चेतावनी अंग्रेजी में प्रिंटेड होते हैं तो कुछ हिंदी में। लेकिन इस सम्बन्ध में डीलरों को कोई जानकारी नहीं दी गई है और कुछ बोरों में तो चेतावनी प्रिंटेड ही नहीं होते हैं।
सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों, महिला और बाल विकास के अधिकारियों तथा स्वास्थ्य विभाग से जुड़े अधिकारियों को इस नए किस्म के खाद्यान्न के सम्बन्ध में बिल्कुल अंधेरे में रखा गया है। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि यदि स्कूल के मध्याह्न भोजन और आंगनबाड़ी के बच्चों के फोर्टिफाइड चावल के खाने से स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं हो जाती हैं तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? जाहिर सी बात है कोई अधिकारी इसकी जवाबदेही नहीं लेना चाहेगा, जो राज्य में आमतौर पर देखा जाता रहा है।
रांची के रिम्स के चिकित्सकों का मानना है कि कि राज्य में 60 से 70 हजार ऐसे पंजीकृत मामले हैं जो थैलीसिमिया व सिकलसेल एनीमिया से पीड़ित हैं। स्कूल आधारित स्क्रीनिंग से 10-20% स्क्रीनिंग के परिणाम पॉजिटिव हो रहे हैं। यह स्थिति तब है जब राज्य में जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ऐसे गंभीर बिमारियों के जांच की कोई माकूल व्यवस्था नहीं है। इतनी बड़ी आबादी को सरकारें फोर्टिफाइड चावल खिलाकर उनके स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रही हैं। ये तमाम बातें एक फैक्ट फैन्डिंग में रिपाेर्ट में उभरकर सामने आई हैं।
क्या है थैलीसिमिया?
थैलेसीमिया एक जेनेटिक डिजीज है, जो पेरेंट्स के जरिए बच्चे में आता है। यदि दोनों पेरेंट्स थैलेसीमिया के कैरियर होते हैं, तो बच्चे में यह थैलेसीमिया बीमारी हो सकती है। यदि माता-पिता में से कोई एक कैरियर होगा, तो बच्चा भी कैरियर होगा, लेकिन उसमें थैलेसीमिया डिजीज नहीं होगी। इस बीमारी में खून ठीक से नहीं बन पाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि हीमोग्लोबिन बनने का जो जेनेटिक कोड होता है, उसमें कुछ समस्या आ जाती है। मुख्य रूप से कोड में डिफेक्ट होता है। कैरियर वह होता है, जिसके जीन में थैलेसीमिया के संकेत या प्रवृत्ति पाई जाती है। कैरियर को थैलेसीमिया माइनर भी कहते हैं। कैरियर वाले बच्चे इस पर काबू पा सकते हैं। थैलेसीमिया कैरियर वाले लोग आमतौर पर स्वस्थ होते हैं और एनीमिया भी माइल्ड होता है। अगर खास टेस्ट ना कराया जाए, तो व्यक्ति को पता भी नहीं चलेगा कि वो थैलेसीमिया कैरियर है।
क्या है सिकलसेल एनीमिया?
सिकलसेन एनीमिया एक अनुवांशिक रक्त विकार है। यह असमान्य हीमोग्लोबिन अर्थात लाल रक्त कोशिकाओं के भीतर आॅक्सीजन ले जाने वाले प्रोटीन के कारण होने वाली रक्त की एक अनुवांशिक विकार है। असामान्य हीमोग्लोबिन की वजह से लाल रक्त कोशिकाएं सिकल के आकार की हो जाती हैं। उनकी आॅक्सीजन ले जाने की क्षमता और रक्त प्रवाह की मात्रा को कम करता है। ऐसे मरीजों को हर माह हीमोग्लोबिन की जांच करनी पड़ती है, कभी-कभी सप्ताह में भी इस बीमारी के अनुरूप जांच करानी पड़ती है।
फैक्ट फैन्डिंग टीम ने झारखंड के जमशेदपुर के एमजीएम अस्पताल में पूर्वी सिंहभूम के चाकुलिया के बोडामचट्टी गांव के क्रमश: 12 और 7 साल के दो भाईयों से मुलाकात की थी। उन दोनों नौनिहालों को रक्त विकार सबंधी अनुवांशिक बीमारी है, जिन्हें एक नियत अन्तराल में खून चढ़ाया जाता रहा है। उनके माता-पिता ने बताया कि हाल के दिनों में बच्चों को साप्ताहिक रक्त चढ़ाना पड़ रहा है। जबकि यह अन्तराल पहले लगभग एक माह हुआ करता था। परिवार इतना गरीब हैं कि उनके समक्ष पीडीएस चावल के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है।
बता दें कि उक्त मामला बोडामचट्टी गांव के विश्वनाथ सोरेन, पत्नी मैनो सोरेन और बेटी मधु सोरेन की है। 12 वर्षीय बोकाई सोरेन और 7 वर्षीय मधु सोरेन को रक्त विकार सम्बन्धी अनुवांशिक बीमारियाँ हैं। पहले इन दोनों बच्चों को 1 महीने के अन्तराल में खून चढ़ाना पड़ता था। लेकिन फोर्टीफाईड चावल जो जनवरी 2022 से पी० डी० एस० डीलर के माध्यम से दिया जा रहा है। उसके लगातार सेवन से अब दोनों बच्चों को साप्ताहिक खून चढ़ाना पड़ रहा है। दोनों को क्रमश: 3 और 2 यूनिट खून चढ़ाना पड़ता है। 1 यूनिट खून की कीमत 450 रुपये है। रक्त चढ़ाने का काम सिर्फ जमशेदपुर में होता है जो बोडामचट्टी से काफी दूर है और बहुत खर्चीला है।
भोजन का अधिकार अभियान और झारखण्ड सीएसओ फोरम द्वारा आयोजित एक कार्यशाला में प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के आयुक्त के पूर्व राज्य सलाहकार सदस्य बलराम ने बताया कि झारखण्ड में खाद्य सुरक्षा योजनाओं में फोर्टीफिकेशन चावल का अलोकतांत्रिक तरीके से वितरण मानव स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से गंभीर चिंता का विषय है। सरकारें पूंजीपतियों के दबाव में आकर पूरे झारखण्ड के पी0 डी0 एस0 दुकानों, मध्याहन भोजन एवं आंगनबाड़ी में फोर्टीफिकेशन चावल वितरण कर लोगों के खाद्य विविधता में अनावश्यक हस्तक्षेप कर रही है।
प्रतिभागीगणों के बीच विगत 8 से 11 मई तक झारखण्ड में फोर्टिफाइड चावल से लाभुकों की प्रतिक्रिया एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता पर किये गए फैक्ट फैन्डिंग प्रतिवेदन का राज्य स्तर साझाकरण किया गया। जिसमें पाया गया कि गांव में इस चावल को लोग प्लास्टिक चावल के तौर पर चर्चा करने लगे हैं। सरकार की कितनी अनैतिक कदम है कि लोगों को ऐसे चावल के बारे कोई पूर्व जानकारी नहीं दी गई और उनके खाने की थाली तक गुपचुप तरीके से पहुंचाई जा रही है। जिन परिवारों ने भी पीडीएस चावल का अनजाने में सेवन किया, उनको स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कतें यथा उबकाई आना, अपच होना, पेट में जलन, पतला दस्त जैसी बीमारियां उभरकर सामने आ रही हैं।
कार्यशाला में प्रतिभागियों ने एक स्वर में मांग रखी कि सरकार हर हाल में अनैतिक तौर पर वितरण किये जा रहे फोर्टीफाईड चावल को बंद करे। खाद्य सुरक्षा कानून में वर्णित मोटे अनाजों के साथ ही खाद्य तेल और दाल शामिल किये जाएं। मध्याह्न भोजन एवं आंगनबाड़ी में साप्ताहिक 6 दिन अंडे दिए जाएं। कार्यशाला में कहा गया कि कुपोषण को प्राकृतिक तरीकों से ही दूर किया जा सकता है कृत्रिम तरीके से नहीं।