झारखंड : कोल ब्लॉक को निजी हाथों में देने की मोदी सरकार की क्या है मजबूरी?
मोदी सरकार की कोयला खनन में निजी कंपनियों को प्रवेश दिलाने की कोशिशों पर झारखंड ने आपत्ति जताई है। छत्तीसगढ ने भी कुछ कोल ब्लाॅकों का आवंटन करने को कहा है....
जनज्वार, रांची। खनिज संपदा की दृष्टि से देश के सर्वाधिक धनी राज्यों में शामिल झारखंड में कोयला खनन में निजी व विदेशी कंपनियों के प्रवेश का मामला गर्म है। 18 जून को केंद्र की मोदी सरकार ने निजी कंपनियों के लिए काॅमर्शियल माइनिंग करने हेतु ऑनलाइन ऑक्शन की प्रक्रिया शुरू की और उसके अगले दिन 19 जून को झारखंड सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। केंद्र का दावा है कि इससे विकास की रफ्तार तेज होगी और एनर्जी जरूरतों को पूरा किया जाएगा तो झारखंड सरकार का कहना है कि हमें इसके लिए विश्वास में नहीं लिया गया है और हमारे पुराने अनुभव अच्छे नहीं हैं। पिछले छह साल में कोल ब्लाॅक नीलामी की प्रक्रिया में केंद्र को अपेक्षित सफलता नहीं मिली है और मौजूदा आवंटन प्रक्रिया को लेकर भी आशंकाएं हैं। इसके बावजूद केंद्र ने यह नई पहल की है, जिसका राजनीतिक व सिविल सोसाइटी दोनों स्तरों पर विरोध हो रहा है।
दरअसल, झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने नीतिगत रूप से कोयला खनन में निजी कंपनियों के प्रवेश का सैद्धांतिक रूप से समर्थन किया है। इसके लिए मुख्यमंत्री सोरेन ने 10 जून को कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी को एक पत्र लिखा है जिसमें इस मोदी सरकार के फैसले को ऐतिहासिक व मजबूत कदम बताया गया। मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में आकर्षक नीतियों के बावजूद पर्याप्त निवेश जुटा पाने का उल्लेख किया था। हालांकि उन्होंने पत्र में केंद्र से छह से नौ महीने तक कोल ब्लाॅक नीलामी की प्रक्रिया टालने का आग्रह किया था। इसकी वजह कोरोना संकट बताई थी, जिससे निवेशक भी आर्थिक दिक्कत में हैं और विदेशी निवेशक आ भी नहीं सकते।
Although we welcome @CoalMinistry decision to open up India's coal sector to commercial mining, we strongly demand moratorium period of 6-9 months on the auction process to ensure a equitable sustainable mineral based development in Jharkhand. Enclo my letter to @JoshiPralhad'ji pic.twitter.com/kyuttdWXX4
— Hemant Soren (घर में रहें - सुरक्षित रहें) (@HemantSorenJMM) June 12, 2020
झारखंड जनाधिकार महासभा के सदस्य भारत भूषण चैधरी इस मामले में कहते हैं कि ऑक्शन में अपने हितों की पूर्ति नहीं होता देख राज्य सरकार कोर्ट में गई है और वास्तविक रूप में वह इसके समर्थन में ही है। वे कहते हैं मुख्यमंत्री तो केवल नीलामी प्रक्रिया को छह से नौ महीने टालने की बात कह रहे हैं।
मोदी सरकार जिन 41 कोल ब्लाॅक का आवंटन करना चाह रही है, उनमें झारखंड, ओडिशा व छत्तीसगढ तीनों राज्य के नौ-नौ कोल ब्लाॅक यानी कुल 27 हैं, 11 मध्यप्रदेश के और तीन महाराष्ट्र के हैं। कोयला खनन व उसके लिए आधारभूत संरचना के विकास पर 50 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाने का लक्ष्य है। मोदी सरकार का यह कदम उसके आत्मनिर्भर भारत के एलान का हिस्सा है।
सरयू ने कहा, सर्वदलीय बैठक बुलाएं मुख्यमंत्री
विभिन्न जरूरी मुद्दों पर बेहद मुखरता से अपनी बात रखने वाले निर्दलीय विधायक सरयू राय ने हेमंत सरकार के कोर्ट जाने के फैसले की प्रशंसा की है। उन्होंने कहा है कि इस दलगत रूप से नहीं बल्कि राज्य के हित से जोड़ कर देखना चाहिए। सरयू राय ने मुख्यमंत्री सोरेन को यह भी सलाह दी है कि वे इस मामले में एक सर्वदलीय बैठक बुलाएं और सभी दलों से बात करें। उन्होंने कहा है कि यह राज्य की राजस्व में हिस्सेदारी से लेकर पर्यावरण व मुआवजा तक का मामला है और 2013 में केंद्र सरकार ने जो मुआवजे के लिए जो नीति बनायी थी उसका पालन होना चाहिए। सरयू राय का का कहना है कि राज्य के लोगों को उचित मुआवजा मिलना चाहिए। वहीं, भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि हेमंत सरकार नैसर्गिक संसाधनों में लूट खसोट के लिए केंद्र के फैसले का विरोध कर रही है।
उधर, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र के फैसला का विरोध करते हुए यह कहा है कि अबतक जिन इलाकों में माइनिंग हुई वहां सर्वे किया जाना चाहिए। यह आकलन होना चाहिए कि वहां के स्थानीय लोगों को इसका कितना लाभ मिल पाया। हेमंत ने कहा है कि हमने पहले ही केंद्र को नीलामी को टालने को कहा लेकिन बहुत हड़बड़ी दिखाई गई और केंद्र ने पारदर्शिता अपनाने या राज्य के फायदे का कोई भरोसा नहीं दिलाया।
.@HemantSorenJMM सरकार द्वारा कोल ब्लॉक नीलामी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देना राज्यहित में सही कदम है. पर्यावरण पर इसके प्रतिकुल प्रभाव की समीक्षा और इस आलोक में राज्य के भूमि क़ानूनों की उपयोगिता तथा मुआवज़ा के संदर्भ में स्थिति स्पष्ट होनी चाहिये. pic.twitter.com/DYRiL2ow1N
— Saryu Roy (@roysaryu) June 21, 2020
जन आंदोलन खड़ा करेगी महासभा
उधर, झारखंड जनाधिकार महासभा ने एक बयान जारी कर कहा है कि केंद्र सरकार का यह फैसला उसके घोर पूंजीवादी चेहरे को बेनकाब करता है। महासभा ने कहा है कि इसके खिलाफ आंदोलन करेगी और लोगों को संगठित करेगी। महासभा ने इस बात पर चिंता जतायी है कि झारखंड सरकार ने केंद्र के फैसले का समर्थन किया है। हालांकि राज्य ने छह या नौ महीने के लिए इसे स्थगित करने की बात कही है जो दर्शाता है कि पूरी तरह से वह इस निर्णय का समर्थन नहीं करती है।
इस मामले में झारखंड जनाधिकार महासभा के भारत भूषण चौधरी ने जनज्वार से बातचीत में कहा कि हमारा छह-सात दशक के खनन का अनुभव है कि इसका लाभ उस जगह को लोगों को नहीं मिलता है, जहां खनन कार्य होता है। इससे प्रदूषण होता है, विस्थापन होता है। उनका कहना है कि खनन के लिए अधिग्रहण की प्रक्रिया उस तरह की नहीं है जिस तरह हाइवे, एयरपोर्ट व अन्य निर्माण कार्याें के लिए होती है, जिसमें लोगों को जमीन लिए जाने के बदले अच्छा मुआवजा मिलता है। माइनिंग में तो स्थानीय समुदाय विस्थापित भी हो जाती है और उनकी खेतीबाड़ी भी खत्म हो जाती है। कल मिलाकर उनकी दुर्गति होती है।
भारत भूषण चौधरी के अनुसार, वन इलाके जहां खनन होता है, आदिवासी रहते हैं और नुकसान उसी समुदाय को झेलना होता है। उनकी वन आधारित आजीविका होती है. झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ और आंध्रप्रदेश में इसी वजह से लोगों में गुस्सा है। वे कहते हैं कि माइनिंग होनी ही नहीं चाहिए और अगर ऐसा लिमिटेड पब्लिक सेक्टर की कंपनियों से होता है तो कम से कम उस पर पब्लिक का नियंत्रण तो है।
चौधरी के अनुसार, ऐसी कंपनियों का स्थानीय समुदाय के साथ अच्छा व्यवहार होता है और उनके पास एक दीर्घकालिक नजरिया होता है। फिर यूं ही किसी कंपनी को खनन का काम दे दिया जाए जिनके पास इस काम का निजी अनुभव नहीं है, उनके पास दीर्घकालिक नजरिया काम को लेकर नहीं है, तो इससे दिक्कत पहले से और बढेगी। पहले से ऐसे क्षेत्रों में नासूर बने हुए हैं।
वे कहते हैं कि लाॅकडाउन के कारण 70 प्रतिशत ऊर्जा उत्पादन हो रहा है, कोयला का उठाव मात्र 30 प्रतिशत हो रहा है, फिर ये निजी सेक्टर को खनन का काम क्यों दे रहे हैं। इसका कोई उद्देश्य नहीं दिखता।
भारत भूषण यह भी कहते हैं केंद्र सरकार ने यह फैसला एकतरफा ले लिया है। उसने न तो संसदीय समिति में इस पर बात की, न जो इसके स्टेक होल्डर हैं या संबंधित कम्युनिटी है, उनसे बात की।
भारत भूषण इस मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बयानों से असहमति प्रकट करते हैं और कहते हैं कि वे इसके खिलाफ नहीं हैं बल्कि सहमति व विश्वास में न लेने जैसी बात कह रहे हैं। वे अपने संगठन के कोर्ट जाने से इनकार करते हैं। उनका कहना है कि हम इस मामले को लेकर कोर्ट नहीं जाएंगे और हम जन आंदोलन खड़ा करने की ओर का रुख करेंगे। जिन इलाकों में कोयला खनन का मंजूरी दी जानी है, वहां की ग्रामसभाओं से इसके खिलाफ प्रस्ताव पारित करवा कर भेजेंगे। छत्तीसगढ में इसी तरह से लड़ाई लड़ी गई है।
प्रधानमंत्री ने 18 जून को नीलामी प्रक्रिया की शुरुआत के वक्त क्या कहा था
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 जून को कोयला क्षेत्र में निजी कंपनियों को प्रवेश के लिए निविदा प्रक्रिया शुरू करते वक्त कहा था हमारा यह फैसला दिखाता है कि हम संकट को अवसर में बदलने के लिए कितना गंभीर हैं, कितना कमिटेड हैं। आज हम सिर्फ कामर्शियल कोल माइनिंग का ऑक्शन ही नहीं शुरू कर रहे हैं, बल्कि कोयला सेक्टर को दशकों के लाॅकडाउन से बाहर निकाल रहे हैं। उन्होंने कहा था कि भारत कोल रिजर्व के हिसाब से दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक व दूसरा सबसे बड़ा आयातक भी है।
प्रधानमंत्री के अनुसार, कोल सेक्टर में हो रहे रीफॉर्म, इस सेक्टर में हो रहा निवेश, लोगों के जीवन को विशेषकर गरीब व आदिवासी भाई-बहनों के जीवन को आसान बनाने में बड़ी भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा था कि कोयला क्षेत्र से जुड़े ये सुधार पूर्वी व मध्य भारत के हमारे हमारे आदिवासी क्षेत्र में विकास का पिलर बनाने का बहुत बड़ा जरिया है। उन्होंने कहा कि था कि देश के 16 आकांक्षी जिले ऐसे हैं जहां कोयले के बड़े-बड़े भंडार हैं, लेकिन इनका लाभ वहां के लोगों को उतना नहीं हुआ, जितना होना चाहिए था। यहां से बड़ी संख्या में हमारे साथी दूर, बड़े शहरों में रोजगार के लिए विस्थापित होते हैं। उन्होंने कोयला निकालते से लेकर उसकी ढुलाई तक में आधुनिक तकनीक का उपयोग करने की भी बात कही थी। उन्होंने इस दौरान पर्यावरण हितों का ध्यान रखने का भी भरोसा दिलाया था।
कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इस संबंध में ट्वीट कर कहा था कि अपने मन के अनुकूल ओपन कास्ट व अंडर ग्राउंड कोयला खदान चुनने का विकल्प कंपनियों को मिलेगा। 41 में 26 ब्लाॅक ओपन कास्ट वाले हैं, सात अंडरग्राउंड हैं और आठ ओपनकास्ट व अंडरग्राउंड दोनों प्रकार के हैं। झारखंड के जिन नौ कोयला ब्लाॅकों की नीलामी इसके तहत की जानी है, उनके नाम हैं : ब्रह्मडीहा, चकला, चितरपुर, चोरीटांड तिलैया, नार्थ ढाडू, गोंदलपाड़ा, राजहारा नार्थ सेंट्रल एंड इस्टर्न, उरमा पहारीटोला। आप नीचे पीडीएफ लिंक में सारे कोल ब्लाॅक के नाम देख सकते हैं।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ में जिन नौ कोल ब्लाॅकों की नीलामी होनी है, उनमें तीन हसदेव अरण्य क्षेत्र में पड़ते हैं जो पर्यावरणीय दृष्टिकोण से एक संरक्षित क्षेत्र है। छत्तीसगढ के वन व पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अकबर ने इस संबंध में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखा कर कहा है कि हाथियों के लिए सुरक्षित क्षेत्र में आने वाले कोल ब्लाॅकों को भारत सरकार के कोल ब्लाॅक नीलामी प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जाए।