ऑनलाइन क्लास के चक्कर में चली गई छात्र की जान, इंटरनेट नेटवर्क के लिए पहाड़ी पर चढ़कर पढ़ता था बच्चा

ऑनलाइन एजुकेशन की परिपाटी तो शुरू की गई लेकिन भारत जैसे देश, बड़ी संख्या में जहां के गांवों में बिजली और इंटरनेट की सुविधा कम है या बिल्कुल नहीं है, वहां ऑनलाइन एजुकेशन सबको पूरी तरह से सुलभ नहीं हो सका..

Update: 2021-08-20 05:41 GMT

(प्रतीकात्मक तस्वीर, सोशल मीडिया)

जनज्वार। कोरोनाकाल में लगे लंबे लॉकडाउन के दौरान देश की अर्थव्यवस्था तो बुरी तरह प्रभावित हुई ही, उद्योग-धंधों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों व हाट-बाजारों के लंबे समय तक बंद रहने के कारण लोगों की आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ा। स्कूल-कालेज भी लंबे समय तक बंद रहे व कई राज्यों में अब भी बंद हैं। हालांकि इस दौरान ऑनलाइन एजुकेशन की परिपाटी शुरू की गई लेकिन भारत जैसे देश, बड़ी संख्या में जहां के गांवों में बिजली और इंटरनेट की सुविधा कम है या बिल्कुल नहीं है, वहां ऑनलाइन एजुकेशन सबको सुलभ नहीं हो सकी। देश में बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा के नीचे बसर करते हैं, उनके लिए स्मार्टफोन या कंप्यूटर-लैपटॉप खरीदना भी एक दुष्कर कार्य सिद्ध हुआ। इसके अलावा गांवों और सुदूरवर्ती इलाकों में इंटरनेट नेटवर्क की कम उपलब्धता से भी बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा प्रभावित हुई। इस बीच उड़ीसा में नेटवर्क के चक्कर में एक बच्चे की जान चली गई है।

स्थानीय मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, उड़ीसा के रायगढ़ जिले में ऑनलाइन पढ़ाई के लिए नेटवर्क की खोज में पहाड़ी पर बैठकर ऑनलाइन क्लास कर रहे एक बच्चे की वहां से लुढ़क जाने के कारण मौत हो गई है। बताया जाता है कि वह बच्चा कटक के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ता था।

बच्चे के पिता के हवाले से मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि स्कूल बंद था और ऑनलाइन क्लासेज चल रहे थे। उनके गांव में नेटवर्क की दिक्कत है। इस कारण बच्चा पास की पहाड़ी पर चढ़कर क्लास करता था। मंगलवार की दोपहर में भी वह ऑनलाइन क्लास करने के लिए पहाड़ी पर गया था।

पिता ने कहा कि पहाड़ी के जिस पत्थर पर बैठकर वह क्लास करता था, मंगलवार को भी वह उसी पत्थर पर बैठा था लेकिन अचानक वह पत्थर लुढ़क गया और बच्चे की दायीं टांग पत्थर के नीचे दब गई। उसे और चोटें भी आईं। बुरी तरह से जख्मी होने के कारण बाद में उसकी मौत हो गई।

कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बावजूद स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई का काम ठप न हो जाए, इसके लिए ऑनलाइन क्लासों का सहारा तो लिया गया लेकिन हाल में हुए एक सर्वे ने बताया है कि ऑनलाइन टीचिंग के जरिए कोर्स पूरा करने की रस्मअदायगी भले कर दी गई हो, वास्तव में स्टूडेंट्स तक वह ज्ञान पहुंच नहीं पाया, जो अकादमिक सत्र के दौरान उन तक पहुंचाया जाना था।

एजुकेशन टेक्नलॉजी सॉल्यूशन प्रोवाइडर टीम लीज एडटेक के इस सर्वे में 75 विश्वविद्यालयों के 700 से अधिक छात्रों और ऑफिसरों को शामिल किया गया था। सर्वे में 85 फीसदी स्टूडेंट्स ने माना कि जो कुछ उन्हें सीखना था, ऑनलाइन पढ़ाई के जरिए वे बमुश्किल उसका आधा ही सीख पाए। यह बात और है कि क्लास के दौरान और परीक्षा से भी इसका पता नहीं चला। स्टूडेंट्स को नंबर अच्छे आए क्योंकि ऑनलाइन परीक्षा में किताबों और नोटबुकों की मदद लेना आसान था।

शिक्षकों के मुताबिक इन स्टूडेंट्स से बातचीत या सवाल-जवाब करने पर स्पष्ट हो जाता है कि उनकी समझ का स्तर वह नहीं है, जो होना चाहिए था। विश्वविद्यालयों के 88 फीसदी अधिकारियों ने यह भी कहा कि इस लर्निंग गैप की भरपाई करने में तीन साल से अधिक का वक्त लग सकता है।

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