कानपुर : 4000 लाइसेंस पर चल रहीं महज 600 दुकानें, चकरपुर मंडी में सब कुछ ठीक नहीं
फल व सब्जी मंडी में टोटल 4000 लाइसेंस हैं, विपरीत इसके दुकाने महज 600 ही हैं, मंडी समिति के पास जो 34 एकड़ जमीन खाली पड़ी हुई है, इसपर और दुकाने बनाकर आवंटित की जा सकती हैं....
मनीष दुबे की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो/कानपुर। साल 2008 में कानपुर के किदवई नगर से फल एवं सब्जी मंडी को शहर से 20 किलोमीटर दूर चकरपुर में बसाया गया था। यहां फल की मंडी अलग तो सब्जी की आढ़तिया अलग लगती हैं। किसानों के आंदोलन का भी कुछ मिला जुला असर यहां नजर आ रहा है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या जो व्यापारियों की है वह है मंडी शुल्क वसूली किये जाने की।
मंडी के अंदर पहुंचकर 'जनज्वार संवाददाता' ने सबसे पहले जाकर मंडी समिति के पदाधिकारियों से मुलाकात की। यहां के मंडी समिति प्रभारी अमरीश सिंह जिन्हें चीकू के उपनाम से जाना जाता है। अमरीश ने हमसे कहा कि यहां किसानों के आंदोलन का कहीं कोई असर नहीं है, सब कुछ एकदम ठीक चल रहा है। तो हमने पूछा कि 'ठीक मतलब क्या रामराज्य चल रहा है?' जिसपर अमरीश सिंह ने जवाब दिया कि 'जी रामराज्य ही चल रहा है।'
मंडी समिति के मेंबर के रामराज्य बताने वाला जवाब हमे कुछ हजम नहीं हुआ, जिसके चलते हम मंडी के अंदर दाखिल हुए। यहां की आलू मंडी में कुछ आढ़ती बैठे हुए थे। उनसे पूछने पर पता चला कि यहां ठीक तो है, पर सब कुछ ठीक नहीं। इस दोहरे वार्तालाप का कारण पूछने पर बताया गया कि किसान आंदोलन का बिल्कुल असर है। हालांकि अधिक असर फल मंडी पर है, सब्जी की मंडी पर असर कम है।
इसका मुख्य कारण ये है कि उत्तर प्रदेश में अधिकतर जो किसान है वह सब्जी इत्यादि ही उगाता है। आलू, मटर, टमाटर या अन्य जो सब्जियां होती हैं वो यहां बहुलता में बोई और उगाई जाती हैं। फलों में यहां आम और अमरूद ही उगाए जाते हैं, बाकी फल बाहर से आयात किये जाते हैं, जिसमे किसान आंदोलन और धरने से आवक पर असर हुआ है।
चकरपुर व्यापार मंडल के अध्यक्ष पंकज कुशवाहा ने 'जनज्वार' से बात करते हुए बताया कि मंडी में लगने वाले शुल्क की जो भिन्नता है वह एक समान होनी चाहिए। मसलन मंडी के अंदर के शुल्क में और बाहर के शुल्क में व्यापारियों और आढ़तियों से एक समान शुल्क लगना चाहिए। यह बात आंदोलन पर बैठे किसानों के एजेंडे में भी है।
इसके लिए हम लोगों ने पीछे 3 दिनों तक मंडी बन्द करके प्रदर्शन भी किया जिसके बाद मुख्यमंत्री ने 1 प्रतिशत मंडी शुल्क माफ किया है, लेकिन इस भर से काम नहीं चलेगा। सीएम से हम आपके माध्यम से आग्रह करते हैं कि अंदर और बाहर एक समान शुल्क की सुविधा कराएं तभी एक राज्य और एक शुल्क का सपना साकार हो सकेगा।
इसके अलावा पंकज कुशवाहा ने हमे एक और मुख्य समस्या बताई वो ये की मंडी के अंदर एक एक आदमी ने चार-चार लाइसेंस ले रखे हैं। कुल मिलाकर फल व सब्जी मंडी में टोटल 4000 लाइसेंस हैं, विपरीत इसके दुकाने महज 600 ही हैं। मंडी समिति के पास जो 34 एकड़ जमीन खाली पड़ी हुई है, इसपर और दुकाने बनाकर आवंटित की जा सकती हैं। इससे व्यापारियों को और राहत मिलेगी।
व्यापार मंडल के महामंत्री जितेंद्र शाक्य ने 'जनज्वार' से बात करते हुए कहा कि मंडी समिति वाले तो सब अच्छा अच्छा ही बताएंगे। उन्हें मतलब ही क्या है बजके टैक्स वसूलने के। हमने पूछा कि 'क्या वसूले जाने वाले टैक्स से कुछ अतिरिक्त भी देना पड़ता है?' तो जितेंद्र ने जवाब दिया कि 'भैया हर धंधे में कुछ ना कुछ ऊपर नीचे होना देखना ही पड़ता है।'
'अब आप देखिये जो छोटा व्यापारी है वह कितना भंडारण कर पायेगा। लेकिन वहीं जो व्यापारी 4-6-8 हजार करोड़ की पूंजी वाला है वह कितना भंडारण करेगा। जबकि किसी भी चीज का अधिक भंडारण करना जायज नहीं है। भंडारण कर लेने के बाद जो बड़ा व्यापारी होगा अपने मुताबिक बाजार के रेट, चीजों के दाम तय करके बेचेगा।
अडानी अम्बानी जो भंडारण कर रहे हैं वह छोटे व्यापारियों के साथ अन्याय करने जैसा है, जिनका किसान विरोध कर रहे हैं। इतने भंडारण से छोटा व्यापारी तो खत्म हो जाएगा ना।' आगे जितेंद्र शाक्य ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के बारे में भी बताया कि 'ये जो चलन में आ रहा है इससे किसानों का नाश होगा। मान लीजिए किसी पूंजीपति ने एक किसान से कॉन्ट्रैक्ट कर फसल लगवाई।'
'कॉन्ट्रैक्ट तय समय का होगा। बाद में पूंजीपति किसान से कॉन्ट्रैक्ट तोड़ दे तो नुकसान किसका हुआ। किसान की तो मरनी हो जाएगी। कल को किसान आत्महत्या करने लगेगा, हालांकि आज भी करता है पर आने वाले समय मे सिलसिला बढ़ सकता है। और सरकार अगर ध्यान नहीं देगी तो ये मंडियां और मंडियों के छोटे व्यापारी समाप्त होने की कगार पर पहुंच जाएंगे।'