मुरादाबाद में अखिलेश यादव के कार्यक्रम में पत्रकारों की हुई पिटाई का ये है इनसाइड सच, पढ़िए पूरा मामला

वीडियो में साफ दिख रहा है कि इन जब पत्रकारों के लिए की गई प्रेस कांफ्रेंस समाप्त हो गई तो न्यूज़ 18 का तथाकथित पत्रकार सुरक्षा घेरा तोड़कर न सिर्फ अखिलेश यादव के पास गया, बल्कि उसने सुरक्षाकर्मियों से बदसलूकी भी की...

Update: 2021-03-12 10:30 GMT

जनज्वार, मुरादाबाद। पूर्व मुख्यमंत्री और सपा मुखिया अखिलेश यादव की मुरादाबाद में प्रेस-कॉन्फ्रेंस के बाद हुए बवाल में पत्रकारों की पिटाई की बात कही जा रही है। भक्त शिरोमणि की गद्दी पाने को लालायित टीवी और अखबारों ने इस रिपोर्ट को तमाम एंगल से सजाया है और अपने अपने मुताबिक मालिक को खुस रखने करने का भरसक प्रयास किया है।

इस बीच 'जनज्वार' ने जब पूरे मामले की पड़ताल की तो मसला कुछ अलग दिखा। हमने कल से वायरल हो रहे कई वीडियो फुटेज देखी, जिसमें अखिलेश यादव की प्रेस-कॉन्फ्रेंस से लेकर लास्ट तक कि फुटेज शामिल थीं। इन वीडिओज़ में एक तथ्य जो पुख्ता होता है वह यह कि जब पत्रकारों के लिए की गई प्रेस कांफ्रेंस समाप्त हो गई तो न्यूज़ 18 का तथाकथित पत्रकार सुरक्षा घेरा तोड़कर न सिर्फ अखिलेश यादव के पास गया, बल्कि उसने सुरक्षाकर्मियों से बदसलूकी भी की।

सपा की तरफ से तमाम नेता इसका विरोध करते हुए कह रहे हैं, एक व्यक्ति जो सूबे का पूर्व मुख्यमंत्री रहा है, उसे जेड श्रेणी की सिक्योरिटी आखिर क्या देखने के लिए मिली है। जाहिर है सिक्योरिटी जिसकी सुरक्षा में लगी है उसका बचाव भी करेगी। गोदी मीडिया के पत्रकार को ये हक किसने दिया कि माइक मुंह मे घुसेड़े, और नेता का कुर्ता खींचे। यह सवाल है उसके लिए जो जैसा वहां हुआ।

इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार विनोद कापड़ी लिखते हैं, 'अखिलेश यादव के कार्यक्रम में ये जो नीली शर्ट और चश्मे वाला " पत्रकार" घायल दिख रहा है, उसे घायल होने से पहले ठीक पहले इस वीडियो के 27वें सेकेंड में भी देखा जाना चाहिए कि वो इंटरव्यू लेने के नाम पर क्या कर रहा था??'

इस मामले में आसिफ कुरेशी लिखते हैं कि 'अगर आप पत्रकार के भेष में उनसे बदतमीजी करेंगे, उनका कुर्ता खींचने की कोशिश करेंगे, उनके चेहरेपरमाइक मारने की कोशिश करेंगे तो उनके लाखों करोड़ों चाहने वाले कार्यकर्ता ये #हरगिज़बरदास्तनही_करेंगे.. और एक-एक कार्यकर्ता उनके लिए जान दे सकता है।

अभी उत्तर प्रदेश मे हो आज केवल धकियाये गये हो रगड़ दिये जाओगे अगर बाज नही आये। ममता या केजरीवाल मत समझना, पत्रकार पत्रकरिता करते अच्छा लगता है नेतागिरी नहीं।'

धर्मेंद्र यादव लिखते हैं कि 'मुरादाबाद में जब अखिलेश यादव ने पत्रकारों से कहा कि कभी भाजपा से भी सवाल पूछ लिया करो, महंगाई के बारे में, रोजगार के बारे में, पत्रकारों पर हमले के बारे में, अपराधों के बारे में तब एक पत्रकार के मुंह से निकल ही पड़ा- सरकार से सवाल करना विपक्ष का काम है, हमारा काम नहीं। विपक्ष का काम मीडिया नहीं करेगी। हमारा काम विपक्ष से सवाल करना ही है। फिर..धुम धुम धड़म धड़ैया रे हुआ तो ठीक ही हुआ!!

आधा यानी करीब 37 सेकंड का भी वीडियो भी देख लेंगे तो ज्ञान मिल जाएगा।'

कुछ ऐसा ही मामला प्रियंका गांधी के साथ भी हुआ था, जब वह यूपी के दौरे पर थीं। जिसके लिए धर्मेंद्र यादव लिखते हैं कि 'मीडिया सुरक्षा घेरे को तोड़कर और जबरदस्ती सवाल नहीं पूछ सकता। बेशक वो छापता रह सकता है कि ये नेता जवाब नहीं देता। सुरक्षा गार्ड दिए ही इसलिए जाते हैं कि कोई हमला करता दिखे तो उसे कूट दें। बाकी, जबरन सवाल करने और मुंह में माइक ठूंसने की हिमाकत कोई फलाने ढिकाने के साथ करे!!'

सपा एक सवाल और उठा रही है कि मीडिया का एक धड़ा जो बेहद नौकरीपरस्त है और मालिक के इशारे पर काम काट चला रहा है। ऊपरी आदेशों के बाद इनका काम विपक्ष के नेता को टारगेट करना भी हो रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार विष्णु प्रताप सिंह 'जनज्वार' से बात करते हुए कहते हैं कि 'जैसे मीडिया का एक धड़ा सरकार परस्त है वैसे ही तमाम रिपोर्टर मालिक परस्त होते हैं जो अपने मालिक के मालिकों को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार दिख रहे हैं।'

अब से थोड़ी देर पहले सपा मुखिया अखिलेश यादव की तरफ से भी बयान दिया गया है, जिसमें उन्होंने कहा कि 'कल की घटना में कई पत्रकार मौजूद थे। पीसी समाप्त हो चुकी थी। सभी पत्रकारों में एक दो पत्रकार पता नहीं कहां से आये और बदसलूकी कर रहे थे। सभी नहीं एक दो थे। यह पत्रकार पूरे माहौल को खराब करने पर तुले हुए थे। सुरक्षाकर्मियों तक से बदतमीजी की गई, जिसके बाद हाथापाई तक कि नौबत आ गई।'

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