Varanasi Hospitals Ground Report: PM मोदी की काशी में जिला व मंडलीय अस्पताल में पचास फीसदी पद खाली, सांसत में मरीजों की जान!
Varanasi Hospitals Ground Report: वाराणसी जिला या मंडलीय अस्पताल की चौखट तक रोजाना पहुंचने वाले हजारों की तादात में पेशेंट। इसमें भी सैकड़ों को यह कहकर रेफर कर दिया जाता है कि फला रोग का इलाज यहां नहीं हो सकता है। आपको बीएचयू जाना पड़ेगा, क्योंकि यहां उस विभाग का कोई डॉक्टर ही नहीं है।
उपेंद्र प्रताप की रिपोर्ट
Varanasi Hospitals Ground Report: कोई भी जब बीमार हो जाता है तो उसे फौरन दवा व इलाज की शख्त जरूरत पड़ती है। इसे इंसान की बुनियादी सुविधाओं में गिना जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में रोजाना दो हजार लोग सिर्फ दो अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंचते हैं। यह दो हजार बीमार लोग इस बात की तस्दीक करते हैं कि या तो उन्हें अपने नजदीकी सरकारी अस्पताल या गैर सरकारी अस्पतालों में पूरा इलाज नहीं मिल पाया है, या फिर इनकी बीमारी आगे बढ़ चुकी है। ये लोग वाराणसी जिला अस्पताल और कबीरचौरा स्थित मंडलीय अस्पताल का मजबूरी में रूख करते हैं। इन दोनों अस्पतालों में हकीकत से सामना होते ही उनके मन में उदासी छा जाती है और दिमाग में कौंध जाती है बिजलियां। मुद्दे की बात यह कि वाराणसी जिला अस्पताल और कबीरचौरा के मंडलीय अस्पताल में मेडिकल स्टाफ, डॉक्टर, स्पेशलिस्ट डॉक्टर व कर्मचारियों के पचास फीसदी पद खाली हैं। स्मार्ट सिटी बनारस में लोगबाग आज भी वही पुराना तकिया-कलाम दुहरा देते हैं- सरकारी अस्पताल से कवन उम्मीद करल जा सकेला ?
वाराणसी नजपद की जनसंख्या यूआईडीएआई 2020 के आंकड़ों के अनुसार 41 लाख से अधिक हो चुकी है। जिले में मरीजों की बोझ से जिला अस्पताल की स्वास्थ्य सेवा चरमरा रही है। वहीं, करीब तीन करोड़ से अधिक पूर्वांचल व बिहार के नागरिकों को इमरजेंसी और आधुनिक चिकित्सा सेवा देने वाले कबीरचौरा का मंडलीय हॉस्टिपल की भी दुर्दशा सरेआम हो गई है। इन सबके बीच परेशानी यदि कोई झेलता है तो वह है इलाज की उम्मदी लिए जिला या मंडलीय अस्पताल की चौखट तक रोजाना पहुंचने वाले हजारों की तादात में पेशेंट। इसमें भी सैकड़ों को यह कहकर रेफर कर दिया जाता है कि फला रोग का इलाज यहां नहीं हो सकता है, आपको बीएचयू जाना पड़ेगा, क्योंकि यहां उस विभाग का कोई डॉक्टर ही नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में एमरजेंसी का लाभ उठाकर प्राइवेट अस्पतालों संचालक चांदी कूटने में लगे हुए हैं। जबकि सरकार और जिला प्रशासन का दावा यह है कि बनारस में सीवर से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं को स्मार्ट किया जा चुका है। भले ही सरकारी अस्पताल में डॉक्टर कम संसाधन और बेड खाली नहीं होने का हवाला देकर अपने माथे का बोझ हल्का कर लेते हैं।
सीन-1 जिला अस्पताल वाराणसी
सोमवार को जिला अस्पताल के खुलते हर कमरे में, केविन में, काउंटर पर, व्हील चेयर, स्ट्रेचर स्टोर और पूरे अस्पताल परिसर में मरीजों व लोगों की चहल-कदमी की आवाज शोर में तब्दील हो जाती है। जिला अस्पताल के मेन गेट से प्रवेश करते ही हर तरफ मरीज और तीमारदार डॉक्टर को दिखने के लिए थैले में पर्ची, रिपोर्ट और दवा लिए दिखते हैं. बिल्डिंग के गेट पर ही जमीन पर बैठे मिले पांडेयपुर गांव से आए कन्हैया पटेल। कन्हैया की बहु भी जमीन पर ही बैठी थी। उसका बच्चा पास में ही घुम रहा था। पूछने पर महिला ने बताया कि उसका कोई सम्बन्धी अंदर पर्ची कटाने गया है। उसके गए हुए आधे घंटे बीत गए हैं। कन्हैया को जांघ और कमर में परेशानी है। वह बड़ी मुश्किल से ही चल पा रहे हैं। दिनों दिन तबियत बिगड़ती ही जा रही है। जैसे-तैसे पर्ची लेकर कन्हैया के तीमारदार डॉक्टर को दिखने पहुंचे हो डॉक्टर का केबिन खाली। यहां भी लाइन में लगकर इंतजार के बाद ये लोग दूसरे कक्ष में डॉक्टर को दिखाने चले गए।
सीन-2 बाहर की दवा क्यों ?
पास के ही गांव से जिला अस्पताल में दवा लेने पहुंचे बबलू पाठक ने बताया कि पीलिया होने पर डॉक्टर जांच कर दवा लिखी है। अस्पताल के काउंटर पर सिर्फ दो ही दवा मिली है, शेष मेडिसिन खरीदने के लिए बाहर मेडिकल स्टोर पर जाना है. जबकि, डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने सरकारी अस्पतालों को कड़ी हिदायत दे रखी है कि डॉक्टर बाहर की दवा नहीं लिखेंगे। सोनतालाब के नारायण भी परेशान होते दिखे। वाराणसी जिला अस्पताल के सीएमओ ऑफिस द्वारा प्राप्त आंकड़ों के अनुसार जिला अस्पताल में प्रतिदिन 750 ओपीडी पेशेंट आते हैं। गुणाभाग किया जाए तो जिला अस्पताल का एक डॉक्टर एक दिन में देखता है औसतन सवा सौ मरीज। वहीं, कबीरचौरा मंडलीय अस्पताल में प्रतिदिन 1300 पेशेंट परामर्श और इलाज के लिए आते हैं। यहां एक डॉक्टर देखते हैं औसतन 90 मरीज। इसमें भी कुछ जटिल रोग जैसे न्यूरो, हार्ट, माइंड, स्पाइन, कार्डियो समेत अन्य दर्जन भर रोगों के चिकित्सकों की कमी के चलते रोजाना सैकड़ों पेशेंट को बीएचयू या अन्य अस्पतालों को यह कह कर रेफर कर दिया जाता है कि हमारे पास संसाधन नहीं है। यहीं से शुरू होती है, इलाज के नाम पर खुली लूट।
सीन-3 मंडलीय अस्पताल कबीरचौरा
रविवार को मंडलीय अस्पताल में भी मरीजों और तीमारदारों की बाढ़ सी उमड़ पड़ी है. सभी पर्ची कटाने के बाद इलाज व परामर्श के लिए भागदौड़ कर रहे थे. वाराणसी की चर्चित घटना का जिक्र यहां मौजूं हो जाता है... 19 अप्रैल को मंडलीय हॉस्पिटल में रविवार रात करीब 12.30 बजे हूकुलगंज का रहने वाला मोहन गुप्ता 21 वर्षीय बीमार बेटे अर्जुन को बेहोशी की हालत में ठेले पर लेकर पहुंचा। इमरजेंसी में तैनात डॉक्टर मरीज के पास पहुंचा। मोहन के हाथ एक पर्ची थी, जिस पर डॉक्टर की नजर पड़ी और बोला यह क्या है। जैसे ही मोहन ने वह पर्ची दिखाई तो डाक्टर ने बिना इलाज के ही उसे बीएचयू जाने की बात कहकर वापस कर दिया। पिता ने इलाज करने की मिन्नतें की, लेकिन डाक्टर का दिल नहीं पसीजा। इसके बाद लाचार और बेबस पिता अपने बेटे को फिर उसी ट्राली पर लेकर मंडलीय हास्पिटल से घर चल दिया। इमरजेंसी में इलाज नहीं मिलने पर लाचार पिता अपने बेटे को बेहोशी की हालत में फिर ठेले से लेकर घर जाने लगा। इतने में हॉस्पिटल से लौट रहे एक रिपोर्टर की नजर उस पर पड़ी और उसके हस्तक्षेप से उसको इलाज मिल सका।
कबीरचौरा मंडलीय अस्पताल में रिक्त पदों का विवरण
पद स्वीकृत वर्तमान
- प्रमुख अधीक्षक 01 01
- फिजीशियन 02 00
- न्यूरो फिजीशियन 01 00
- कार्डियोलॉजिस्ट 02 01
- नेफ्रोलॉजिस्ट 01 00
- सर्जन 03 02
- आर्थो सर्जन 04 04
- बाल रोग विशेषज्ञ 03 03
- चर्म रोग 01 01
- ईएनटी सर्जन 02 00
- पैथोलॉजिस्ट 02 02
- नेत्र सर्जन 03 00
- एस्थेनेटिस्ट 03 01
- डेंटिस्ट सर्जन 02 02
- सोनोलॉजिस्ट 02 00
जिला अस्पताल वाराणसी में रिक्त पदों का विवरण
पद स्वीकृत वर्तमान
- मुख्य अधीक्षक 01 01
- चिकित्सा अधीक्षक 01 01
- फिजीशियन 02 02
- यूरो फिजिशियन 01 00
- कार्डियोलॉजिस्ट 02 01
- ब्रेस्ट फिजिशियन 02 01
- सर्जन 04 02
- प्लास्टिक सर्जन 01 00
- ऑर्थो सर्जन 04 03
- बाल रोग विशेषज्ञ 02 01
- ईएनटी सर्जन 02 01
- पैथोलॉजिस्ट 02 01
- एनेस्थेटिस्ट 05 02
- ईएमओ 07 04
- चर्म रोग 01 00
कटघरे में खड़ा शासन का रवैया
जन अधिकार पार्टी वाराणसी के युवा जिलाध्यक्ष बबलू मौर्य सवाल उठाते हुए "जनज्वार" से कहते हैं कि 'पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में दो बड़े अस्पतालों की हालत खस्ता है और इनमें लगभग पचास फीसदी डॉक्टर\स्पेशल डॉटर्स स्टाफ के पद सालों से खाली हैं। जो डॉक्टर तैनात हैं, इनमें से कई वीवीआईपी\वीआईपी मूवमेंट में ही उलझे रहते हैं। लिहाजा, जैसे-तैसे स्मार्ट शहर वाराणसी की स्वास्थ्य सेवा चल रही है। कभी-कभार जिम्मेदार या स्वास्थ्य मंत्री आते हैं और वे खुद ही कार चलाकर अस्पतालों की हकीकत जानने पहुंचते हैं। लापरवाही मिलने पर डॉक्टर और कर्मचारियों पर गाज भी गिराते हैं, लेकिन हकीकत ये हैं कि जब दोनों अस्पतालों में पचास फीसदी डॉक्टर्स के पद ही खाली हैं तो इनके जगह मरीजों का इलाज कौन करेगा ? इतना ही नहीं कई बार अस्पताल प्रबंधन द्वारा पत्र लिखकर डॉक्टरों की मांग की गई, लेकिन आखिर किन वजहों से जिम्मेदार खामोश हैं ? जनता के स्वास्थ्य के प्रति शासन का उदासीन रवैया कटघरे में खड़ा मालूम पड़ता है।'
इनाम के बाद भी बदहाल
पत्रकार राजीव कुमार सिंह बताते हैं कि 'बनारस के सरकारी अस्पतालों में मरीजों का सबसे अधिक दबाव है। इस वजह से डाक्टरों व नर्सों पर मरीजों का लोड बढ़ा है। विडंबना यह है कि 50 फीसदी डाक्टर व कर्मचारियों की कमी के कारण मरीजों को पर्याप्त व्यवस्था नहीं मिल पाती है। इसके चलते मरीज इलाज के लिए निजी चिकित्सालय में जाने को मजबूर हैं, जहां उनका जमकर आर्थिक शोषण किया जाता है। मंडलीय अस्पताल कबीरचौरा हो या जिला चिकित्सालय, दोनों अस्पतालों में अव्यवस्थाएं देखने को मिलती हैं। कारण डाक्टरों व स्टाफ की कमी और मरीजों का बढ़ता दबाव है। एक डाक्टर सौ से अधिक पेशेंट देख रहे हैैं। यह नजारा कमोबेश हर सरकारी अस्पताल के हर डिपार्टमेंट का है। जबकि, शहर के डीडीयू और मंडलीय अस्पताल को हर साल कायाकल्प अवार्ड से नवाजा जाता है, लेकिन यहां सुविधाओं के अभाव में मरीज परेशान रहते हैं।'
स्पेशलिस्ट के बगैर हो रहा इलाज
जिला अस्पताल में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की भी कमी देखने को मिलती है, जिन्हें इस गर्मी में उनके कमरों में एसी तक की सुविधाएं नहीं दी जाती है। बताया जाता है कि लगभग सात साल पहले गवर्नमेंट पॉलिसी के तहत एक सुपर स्पेशलिस्ट आए थे, लेकिन कुछ ही दिन बाद चले गए। मसलन, अस्पताल में कुछ विभाग ऐसे हैं, जिनमें सुपर स्पेशलिस्ट की जरूरत होती है। इनमें न्यूरो, कार्डियो, यूरोलॉजिस्ट, प्लास्टिक सर्जन व अन्य कुछ विभाग शामिल हैं, लेकिन न तो जिला अस्पताल में हैैं और न ही मंडलीय अस्पताल में सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं। मंडलीय अस्पताल में भी डॉक्टरों के साथ-साथ कर्मचारियों की कमी भी देखी गई है। अस्पताल में कर्मचारियों की कमी के चलते आए दिन यहां मरीजों को परेशानी होती है। खासतौर से रात्रि सेवा में तो कर्मचारियों के नदारद होने से मरीजों को खामियाजा भुगतना पड़ता है।
वीआईपी डयूटी में बनी मुसीबत
चिकित्सकों व पैरा मेडिकल स्टाफ की कमी के चलते दूरदराज से आने वाले मरीजों को जहां परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं पीएम का संसदीय क्षेत्र होने के कारण आए दिन चिकित्सकों व पैरामेडिकल स्टाफ की ड्यूटी आने वाले वीआईपी की सेवा में लगा दिए जाने के कारण स्थिति और भी विकट हो जा रही है। मंडलीय अस्पताल और पंडित दीनदयाल अस्पताल से अधिकतर डॉक्टरों को वीआईपी के आने पर जाना ही पड़ता है।
मौसमी बीमारी के मरीज बढ़े
बारिश होने के बाद बढ़ी उमस के बीच मरीजों की अस्पतालों में 20 फीसद से अधिक भीड़ बढ़ गई है। उल्टी-दस्त, डायरिया व चर्म रोग के ज्यादा मरीज अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। शिवप्रसाद गुप्त मंडलीय अस्पताल, जिला अस्पताल के साथ ही पीएचसी व सीएचसी में मरीजों की कतारें लगी हैैं। मंडलीय अस्पताल में सामान्य दिनों में 1100-1200 मरीज पहुंचते हैं लेकिन यह आंकड़ा 1400 पहुंच गया। उल्टी-दस्त व डायरिया के बढ़े मरीजों से तीनों इमरजेंसी भर गई। वहीं, सात नंबर का मेल वार्ड व बच्चा वार्ड भी मरीजों से फुल है। उधर, डीडीयू अस्पताल में सामान्य दिनों में 500 से 600 मरीज पहुंचते हैं लेकिन यहां भी सामान्य दिनों की अपेक्षा करीब 200 मरीज ज्यादा पहुंच रहे हैं।
ये हैैं औसत आंकड़े
- -जिला अस्पताल में प्रतिदिन 700 ओपीडी
- -एक डॉक्टर देखते हैं औसतन सवा सौ मरीज
- -कबीरचौरा मंडलीय अस्पताल में प्रतिदिन 1200 मरीज
- -एक डॉक्टर देखते हैं औसतन 80 से 90 मरीज
क्या कहते हैं जिम्मेदार
जिला अस्पताल के सीएमएस डॉ आरके यादव ने बताया कि 'हमारे बेड के मुकाबले कर्मचारियों की कमी जरूर है, लेकिन समय-समय पर शासन को पत्र लिखा जाता है। जो भी कमी है उसे शासन से मिली जानकारी के मुताबिक जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा।' मंडलीय अस्पताल के एसआईसी डॉ हरिचरण सिंह ने स्वीकार करते हुए कहा कि 'हमारे पास डॉक्टरों की कमी है, लेकिन जल्द ही पूरा कर दिया जाएगा। वहीं कर्मचारियों की जानकारी मुझे प्रशासन से मंगवाना पड़ेगा, अभी कर्मचारियों की जानकारी मेरे पास नहीं है।'
काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं कि 'स्मार्ट एक शब्द है। इसे किसी शहर के माथे पर चस्पा कर देंगे तो वह शहर स्मार्ट हो नहीं जाएगा। इसके लिए सड़क, सीवर , शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, सुरक्षा, रोटी और मकान आदि बुनियादी सुविधाओं का होना जरूरी है। बनारस कत्तई स्मार्ट नहीं है। बनारस के अस्पतालों में साल-दर-साल खाली पदों की संख्या इजाफा होता जा रहा है। सरकार और निजी धंधे वालों की दुरभि संधि है. इसके तहत उपेक्षित हालत में छोड़ दिए गए हैं सरकारी अस्पताल। देश के बजट में हेल्थ सेक्टर को जारी किए जाने वाले धन में कटौती की जा रही है. यह शोध का विषय है। लोगों का गुस्सा फुट न पड़े, इसलिए मंत्री और अफसर कभी-कभार दौरे कर जाते हैं।'
कबीरचौरा अस्पताल में ओपन हो दो अतिरिक्त पर्ची काउंटर: बहादुर आदमी पार्टी
बहादुर आदमी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेन्द्र गांधी कुशवाहा एवं उपाध्यक्ष अनिल शुक्ला ने यूपी सरकार और सीएमओ वाराणसी से शिव प्रसाद गुप्त मंडलीय अस्पताल कबीरचौरा में पर्ची काउंटर पर अत्यधिक भीड़ देखते हुए दो अतिरिक्त पर्ची काउंटर खोलने का (एक महिलाओं के लिए एवं एक पुरुषों के लिए) मांग पत्र लिखकर किया है। कबीरचौरा अस्पताल में मरीजों को पर्ची बनवाने के लिए दो ही काउंटर उपलब्ध है, जिसमें से एक महिलाओं के लिए एवं एक पुरुषों के लिए है जबकि प्रतिदिन मंडलीय अस्पताल में अत्यधिक मरीज ओपीडी में केवल बनारस ही नहीं बल्कि चंदौली, गाजीपुर, भदोही, मिर्जापुर सहित आसपास के जिलों के भी इलाज कराने के लिए आते हैं। जिसकी वजह से पर्ची काउंटर पर निरंतर भीड़ लगी रहती है। मरीजों एवं उनके परिजनों को अपनी बारी आने के लिए घंटो इंतजार करना पड़ता है। इस वजह से कई मरीजों की तबियत और ज्यादा खराब हों जाती है या चिलचिलाती धूप में कई मरीज गर्मी-उमस और चक्कर की वजह से बेहोश हों जाते हैं ।