बागेश्वर में चीटियों के काटने से 3 साल के मासूम की दर्दनाक मौत, मोबाइल नेटवर्क के अभाव में वक्त पर नहीं पहुँची 108 सेवा

Bageshwar News: उत्तराखंड के पहाड़ पर जिंदगी खुद एक पहाड़ है। कभी गांव तक सड़क न होना तो कभी नेटवर्क (Mobile Network) न होना, यहां की जिंदगी पर भारी पड़ता आया है। ऐसा ही एक नया मामला बागेश्वर जिले के इस दुर्गम गांव का है, जहां एक मासूम बच्चे की इलाज के अभाव में केवल इसलिए मौत हो गई....

Update: 2022-11-12 08:53 GMT

चीटियों के काटने से 3 साल के मासूम की दर्दनाक मौत, मोबाइल नेटवर्क के अभाव में वक्त पर नहीं पहुँची 108 सेवा

Bageshwar News: उत्तराखंड के पहाड़ पर जिंदगी खुद एक पहाड़ है। कभी गांव तक सड़क न होना तो कभी नेटवर्क (Mobile Network) न होना, यहां की जिंदगी पर भारी पड़ता आया है। ऐसा ही एक नया मामला बागेश्वर जिले के इस दुर्गम गांव का है, जहां एक मासूम बच्चे की इलाज के अभाव में केवल इसलिए मौत हो गई कि गांव में मोबाइल नेटवर्क प्रॉपर न होने के कारण एंबुलेंस समय पर नहीं मिल सकी। इस बच्चे को उस समय लाल चींटियों ने काट लिया था जब वह अपने भाई के साथ घर के आंगन में खेल रहा था।

घटना बागेश्वर (Bageshwar) जिले के कपकोट ब्लॉक स्थित पौंसारी गांव की है। जहां भूपेश राम के दो बच्चे प्रियांशु (5) और सागर (3) घर के आंगन में खेल रहे थे। तभी अचानक छोटी लाल चींटियों ने दोनों भाइयों पर हमला कर दिया। जहरीली चींटियों के काटने से दोनों बच्चों जहर के प्रभाव से तड़पने लगे। गांव में स्वास्थ्य सुविधाएं मौजूद न होने की वजह से बच्चों के परिजनो ने 108 सचल स्वास्थ्य सेवा से संपर्क करने की कोशिश की। लेकिन मोबाइल का नेटवर्क प्रॉपर न होने की वजह से काफी देर तक उनका संपर्क 108 से नहीं हो सका।

बाद में बमुश्किल किसी तरह 108 से संपर्क हुआ तो एंबुलेंस की मदद से बच्चों को आनन फ़ानन में जिला अस्पताल ले जाया गया। जहां इलाज के दौरान तीन वर्षीय सागर की शरीर में चींटियों का जहर फैलने से मौत हो गई। जबकि बड़े भाई प्रियांशु को जिला अस्पताल में इलाज के बाद छुटटी दे दी गई।

घटना को लेकर ग्रामीणों ने बताया कि गांव में फोन नेटवर्क नहीं होने के कारण वे 108 एम्ब्युलेंस सेवा या दूसरे वाहनों से संपर्क नहीं कर सके। बच्चों को बागेश्वर के अस्पताल ले जाने में बहुत देर हो गई थी। छोटे बेटे के शरीर में जहर फैलने से उसकी दर्दनाक मौत हो गई। परिजन महेश राम ने कहा कि गांव में नेटवर्क होता तो समय से बच्चे को अस्पताल पहुंचाया दिया जाता और अनहोनी टल जाती। ग्रामीणों ने प्रभावित परिवार को मुआवजा दिए जाने की भी मांग की है।

जिला अस्पताल के चिकित्सक डॉ. राहुल मिश्रा का भी यही कहना है कि यदि बच्चे को समय से अस्पताल लाया जाता तो बच्चे की जान बच सकती थी। समय से अस्पताल न पहुंचना बच्चे के जीवन के लिए घातक हुआ।

यहां बता दे कि पहाड़ में पाई जाने वाली लाल रंग की रेड फायर को बुलेट चींटी के नाम से जाना जाता है। बेहद खतरनाक रेड फायर चींटी काफी जहरीली मानी जाती है। इन चींटियों के काटने पर तत्काल इलाज न मिला तो जान जा सकती है। छोटे बच्चों के लिए यह खास तौर पर घातक होती है। हालांकि जिले में इससे पहले चींटियों के काटने से हुई मौत कोई मामला देखने को नहीं मिला था। बागेश्वर जिले में चींटियों के काटने से मौत का यह पहला मामला बताया गया है। एसीएमओ डॉ. हरीश पोखरिया के मुताबिक अब तक जिले में चींटियों के काटने से मौत का मामला संज्ञान में नहीं है।

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