Janjwar Exclusive: बनारस-कलकत्ता अंतर्देशीय जलमार्ग पर आवागमन ठप्प, ₹ 5,369 करोड़ की परियोजना पर घास चर रहीं हैं भैंस
Janjwar Exclusive: बनारस से कलकत्ता (पश्चिम बंगाल) को जाने वाले अंतर्देशीय जलमार्ग से जलयानों का आवागमन ठप्प होने से अफसरों के होश उड़ गए हैं. न सिर्फ वाराणसी में रेत के बड़े-बड़े टीले बल्कि जमानिया की गंगा में मिले करीब 14 किमी पत्थर-बोल्डर से एक्सपर्ट और इंजीनियर सहम गए हैं।
उपेंद्र प्रताप की रिपोर्ट
Janjwar Exclusive: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले साल 2018 में ₹ 5,369.18 की लागत वाली केंद्रीय जलमार्ग विकास प्रोजेक्ट के तहत वाराणसी बंदरगाह का उद्धाटन किया था। तब यह मुनादी बड़ी जोर शोर से कराई गई थी कि बनारस में बंदरगाह के बन जाने से बनारस और आस-पास के जनपदों का चतुर्दिक विकास होगा। इस बंदरगाह के खुले तीन साल से अधिक का वक्त गुजर गया। जनता के करोड़ों रुपए फूंकने के बाद भी बंदरगाह के जर्जर भवन, लावारिश पड़े फायर फायटिंग सिस्टम, बर्बाद हो रही चौकिया व बंदरगाह एरिया में घास चरती भैंस इस बात की गवाह है कि सिर्फ सरकार और परियोजना के अधिकारी जनता की आंखों में धूल झोंकने का काम कर रहे हैं।
बल्कि आसपास के लोगों को यह याद भी नहीं है कि बीते कई महीनों से अब तक कोई मालवाहक जहाज आया हो या यहां से माल लोडकर बंगाल या अन्य स्थानों के लिए निकला हो। अब तो बंदरगाह में उगी घासों को भैंसे चरती हैं और थककर घंटों पसर कर आराम भी फरमाती हैं। बनारस से कलकत्ता (पश्चिम बंगाल) को जाने वाले अंतर्देशीय जलमार्ग से जलयानों का आवागमन ठप्प होने से अफसरों के होश उड़ गए हैं। न सिर्फ वाराणसी में रेत के बड़े-बड़े टीले बल्कि जमानिया की गंगा में मिले करीब 14 किमी पत्थर-बोल्डर से एक्सपर्ट और इंजीनियर सहम गए हैं। गंगा में रेत और बोल्डर के बीच जहाज के प्रोपलर नहीं चल पाएंगे और जबरी करना किसी आत्महत्या सरीखा कदम साबित हो सकता है। लिहाजा, आनन-फानन में अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण ने पत्थर तोड़ने और रेत हटाने यानी ड्रेजिंग कराने के लिए टेंडर जारी कर दिया है। इसके पहले भी कई मर्तबा ड्रेजिंग का काम कराया गया था। अब एक बार फिर गंगा में रेत के टीलों ने डेरा डाल दिया है।
12 नवंबर 2018 को बंदरगाह के उद्घाटन के अवसर पर 'हर हर महादेव' के उद्घोष के साथ अपना भाषण शुरू करने वाले मोदी ने कहा कि ''देश अब सिर्फ विकास की राजनीति चाहता है। जनता अपने फैसले विकास देखकर ही करती है। वोट बैंक की राजनीति देखकर नहीं करती। ''मोदी ने मल्टी-मॉडल टर्मिनल का विस्तार से जिक्र करते हुए कहा कि आजादी के बाद यह पहला अवसर है जब हम अपने नदी मार्ग को कारोबार के लिये इतने व्यापक स्तर पर इस्तेमाल करने में सक्षम हुए हैं। काशीवासी साक्षी हैं कि चार साल पहले जब मैंने बनारस और हल्दिया को जलमार्ग से जोड़ने की बात कही थी तो किस तरह इसका मजाक उड़ाया गया था, लेकिन थोड़ी देर पहले टर्मिनल पर कोलकाता से आये कंटेनर जहाज ने आलोचना करने वालों को खुद ही जवाब दे दिया।' वो अलग बात है कि लोगों को कारगर रूप से धान की भूसी लेकर गए कार्गो शिप के बाद कोई अन्य मालवाहक जहाजों के आने-जाने का विवरण याद नहीं है।
बनारस लोकसभा सीट से मोदी को चुनाव में कड़ी टक्कर देने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व विधायक अजय राय केंद्र सरकार पर जनता की गाढ़ी कमाई को मूर्खतापूर्ण कामों पर खर्च का आरोप लगाते हुए कहते हैं कि "बनारस से कलकत्ता तक छोटी नदियों में जहाज परिवहन का कोई सरोकार नहीं है। समंदर होता हो तो बात कुछ हद तक ठीक रहता, लेकिन गंगा और सहायक नदियों के भरोसे, जिनके वर्षभर पानी ही नहीं रहता है। इसमें सैकड़ों टन क्षमता के माल वाहक जहाज कैसे चलाये जा सकते है? केंद्र सरकार सीधे तौर पर जनता और अन्य मदों से मिलने वाले पैसे को बिना सोचे-समझे खर्च कर रही है, जिसका हासिल शून्य है। अभी देख लीजिये बनारस में ही गंगा में कई स्थानों पर रेत के टीले उभर गए है। इसमें कैसे जहाज आएंगे। दूसरी बात पोर्ट के उद्घाटन के कई साल बीत गए है, कितने शिप आये और बनारस से कितना माल बाहर भेजा गया है। पोर्ट को माल ढोने और उतार-चढ़ाव कितना मुनाफा हुआ है। इसका विवरण जारी क्यों नहीं किया जा रहा है ? यह बंदरगाह शुरू से ही सवालों के घेरे में रहा है। इसका हश्र भी सभी जानते हैं -एक दिन कबाड़ बन जाएगा और फेल होती इस योजना को बंद कर दिया जाएगा ?" प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2018 में बनारस के राल्हूपुर बंदरगाह का शुभारंभ किया था। नाममात्र के मालढुलाई के बाद अब पीएम मोदी के एक और ड्रीम प्रोजेक्ट पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
बनारस की गंगा में बीचो-बीच उभर रहे रेत के टीले को देख हर कोई हतप्रभ है। वहीं, गाजीपुर से जमानिया तक की गंगा में मिले 14 किलोमीटर पत्थर के बोल्डर से जलमार्ग परियोजना अधिकारियों के होश उड़ गए हैं। बनारस से कलकत्ता (पश्चिम बंगाल) को जाने वाले अंतर्देशीय जलमार्ग से जलयानों का आवागमन ठप्प होने से व्यापारी भी माथा पीट रहे हैं व व्यापार भंवर में फंस गया है। ट्रेन और रोड ट्रांसपोर्ट से माल मंगाने में इनकी कमाई पर बट्टा लग रहा है। काबिल-ए-गौर है कि गर्मी बढ़ने के साथ गंगा का जलस्तर घटने से कई स्थानों पर रेत के टीले उभर आए हैं। न सिर्फ वाराणसी-गाजीपुर सीमा से सटे चंद्रावती के समीप रेत के टीले ताक रहे, बल्कि जमानिया की गंगा में मिले करीब 14 किमी पत्थर-बोल्डर से एक्सपर्ट और इंजीनियर सहम गए हैं।
गंगा में रेत और बोल्डर के बीच जहाज के प्रोपलर नहीं चल पाएंगे और जबरी करना किसी आत्महत्या सरीखा कदम साबित हो सकता है। लिहाजा, आनन-फानन में अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण ने पत्थर तोड़ने और रेत हटाने यानी ड्रेजिंग कराने के लिए टेंडर जारी कर दिया है। इसके पहले भी कई मर्तबा ड्रेजिंग का काम कराया गया था। साल 2018- 19 में पटना से लेकर कैथी तक ड्रेजिंग कराया गया था। अब एक बार फिर गंगा में रेत के टीलों डेरा डाल दिया है। इधर, बंदरगाह परिसर में भैंसें-गाय और अन्य मवेशी घास चर रहे है। कोई नाकेबंदी और माल की सुरक्षा के इंतजाम नहीं दिखते हैं। बंदरगाह का बोर्ड भी जंगली झाड़ियों में छुप गया है। नाकेबंदी के लिए बनाई गई चौकिया लावारिश और फटेहाल हो गई हैं। यहां बना भवन का बेस दरक गया है और अग्निशमन यंत्र सड़कर कबाड़ में तब्दील हो चुका है। बंदरगाह के नाम पर सिर्फ दो बड़ी लोड-अनलोड की मशीने धूल फांक रही हैं।
गडकरी ने दिखाए थे सब्जबाग
लखनऊ के एक कार्यक्रम में भारत के केंद्रीय परिवहन, राजमार्ग और शिपिंग यातायात मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि वाराणसी और हल्दिया (कोलकाता) के बीच गंगा नदी में बहुत जल्द ही जहाज चलने जा रहे हैं. इससे किराया सबसे सस्ता होगा, ताकि आम लोग भी सफर कर सकेंगे। किराया 15 से 20 पैसे प्रति किलोमीटर पड़ेगा।
-अभी ट्रेन से सफर करने में करीब एक रुपए प्रति किमी और सड़क मार्ग से डेढ़ रुपए प्रति किमी का खर्च आता है। गंगा होगी स्वच्छ, मिलेगा रोजगार। साथ ही यह भी दावा किया था कि वाराणसी से लेकर हल्दिया तक वाटरड्राफ्ट बनाए जा रहे हैं। इससे गंगा में हमेशा कम से कम 3 मीटर पानी रहेगा। गडकरी के दावे के कुछ ही साल गुजरे थे कि पत्थर के बोल्डर और रेत के टीलों ने प्रधानमंत्री मोदी के उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
टीले आम बात, डॉल्फिन पर भी आफत
गंगा नदी में मिड अप्रैल से ही रेत के टीले उभरना शुरू हो गए हैैं। तेजी से वाटर लेवल भी खिसकता जा रहा है। गंगा जल और ग्राउंड वाटर के अंधाधुंध दोहन से वैज्ञानिक और नदी प्रेमी प्राकृतिक संसाधनों के अस्तित्व को लेकर चिंतित हैैं। इस बदलाव के कारण गंगा के इकोसिस्टम के साथ राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन पर संकट गहरा गया है। सीवीसी के आंकड़ों में फिलवक्त गंगा का जलस्तर 57.15 मीटर है। इसमें भी अस्सी से लेकर कैथी तक गंगा के जल की डेप्थ हरेक स्पाट पर एक समान नहीं है। यही कारण है कि अस्सी से राजघाट के बीच गंगा में अब डॉल्फिन की अठखेलियां नहीं दिखती हैं। बीएचयू के साइंटिस्ट प्रो बीडी त्रिपाठी 'जनज्वार' को बताते हैं कि हाल के दशक में गंगा तंत्र और इसके जल क्वालिटी का स्तर गिरता ही जा रहा है। तमाम प्रयासों के बाद भी जो सुधार होने चाहिए थे, वह नहीं हो पाए हैं। गंगा बेसिन के अबाध प्रवाह के लिए पानी छोड़ा जाए। साथ ही गंगा जल के इस्तेमाल के लिए जल्द ही पॉलिसी बनाई जाए।
गंगा में कम पानी जिम्मेदार बांध
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा था बांध देश के आधुनिक मंदिर हैं, लेकिन बांधों परियोजनाओं को विकास के साथ पर्यावरण का ख्याल रखना होगा। इधर परियोजना अधिकारी नियमों को ताक पर रखकर हिमालय से सर-सराती मैदानों में उतरती गंगा को दर्जनों से अधिक बड़े बांधों में कैद कर लिया है। इससे न सिर्फ गंगा का अनवरत प्रवाह निम्नस्तर पर चला गया है, बल्कि समूचे गंगा के इकोसिस्टम पर सवाल खड़े हो गए हैं। समय-समय कई पर्यावरण संस्थाओं ने आंदोलन किये, लेकिन नतीजा सिफर रहा। हाल के दशक में गंगा का का जलस्तर घटने से कई पर्यावरण से जुड़ी घटनाएं खतरे का अलार्म बजा रहीं हैं। इसी परेशानी की एक कड़ी है - बनारस और गाजीपुर की गंगा में रेत और बोल्डर मिलना। बहरहाल, डेवलप कंट्री की तरह देश में गंगा जल के पब्लिकली और प्राइवेट इस्तेमाल के लिए अभी तक पॉलिसी नहीं बन सकी है। इस वजह से जलकल, नागरिक, सैकड़ों लिफ्ट कैनाल, इंडस्ट्रियल इस्तेमाल, डैम, बैराज, हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट समेत कई आवश्यकताओं के लिहाजा से बेरोकटोक क्षमता से अधिक मात्रा में गंगा से पानी निकालने का क्रम बदस्तूर जारी है। इससे गंगा का जलस्तर गिरता जा रहा है। इसका सीधा असर गंगा के जलीय जीवों पर देखने को मिल रहा है।
सिर्फ ड्रेजिंग से बन पाएगी बात ?
बनारस से हल्दिया तक गंगा में जल परिवहन में तेजी लाने के लिए 1390 किलोमीटर लंबे जलमार्ग को हल्दिया से फरक्का, फरक्का से बाढ़ और बाढ़ से रामनगर तक तीन भागों में बांटकर ड्रेजिंग होना है। इसके पहले भी साल 2018 से 2019 तक पटना से लेकर कैथी तक कई बार ड्रेजिंग कराई गई थी, लेकिन उसमें भी बार-बार बालू भर जाता है। गर्मी पड़ने के साथ वाराणसी गाजीपुर सीमा से सटे चंद्रावती के पास गंगा नदी में जलस्तर कम हो गया है. बनारस से हल्दिया तक जलयान को रफ्तार भरने में गाजीपुर से जमानिया तक गंगा में पड़ने वाले पत्थर भी रोड़ा अटका रहे हैं। गाजीपुर से जमानिया के बीच करीब 14 किलोमीटर पत्थर को तोड़ने के लिए भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण टेंडर करने के साथ वाराणसी से हल्दिया तक ड्रेजिंग कराने के लिए विचार किया जा रहा है। इससे गंगा में 45 मीटर चौड़ा और 2.2 मीटर गहरा ड्रेजिंग कर चैनल बनाना है। गंगा में पानी का जलस्तर नहीं बढ़ने तथा जलयान के आवागमन ठप होने की संभावना जताई जा रही है। सर्वे के मुताबिक बाढ़ के दौरान हर साल 54 मिलियन टन सिल्ट गंगा में आती है। इसमें से 80 फ़ीसदी सिल्ट तो समंदर में चली जाती है, जबकि 20 फ़ीसदी में नदियों की तलहटी में जमी रह जाती है। इससे नदी की गहराई कम हो जाती है और जलस्तर भी सिकुड़ जाता है।
20 फरवरी 2021 को धान की भूसी लेकर हल्दिया के लिए निकला था जहाज
वाराणसी के रामनगर के राल्हुपुर में लाल बहादुर शास्त्री जलपोत से 40 टन धान की भूसी को कोलकाता के लिए 20 फरवरी 2021 को पहला जलपोत निकला था। यह जलपोत इलाहाबाद, मुगलसराय, बक्सर, बलिया, आरा, पटना, मोकामा, मुंगेर, भागलपुर, साहिबगंज, फरक्का, पाकुड़ होते हुए जल मार्ग से कोलकाता पहुंचा। गंगा चैनल पर चलाए गए इस जलमार्ग में चार मल्टी मॉडल टर्मिनल बनाए गए था। जिनमें वाराणसी साहिबगंज गाजीपुर और हल्दिया टर्मिनल शामिल है। तब अफसरों ने दावा किया था- इस जल मार्ग पर 1500 से 2000 मेट्रिक टन क्षमता वाले जहाजों को चलाने के लिए कैपिटल ड्रेजिंग के जरिए 45 मीटर चौड़ा गंगा चैनल तैयार किया गया है। सड़क, रेल और हवाई मार्ग की तुलना में जल मार्ग से माल बुकिंग करने का किराया काफी कम है। इस कारण सरकार इस जलमार्ग को और अधिक विकसित कर राजस्व वृद्धि की संभावनाओं को मजबूती प्रदान करने का प्रयास कर रही है। आईएफबी एग्रो इंडस्ट्रीज के प्रतिनिधि राकेश कुमार ने बताया कि धान की भूसी को जल मार्ग से कोलकाता भेजने में 2.70 रुपए प्रति किलोग्राम के भाड़े का भुगतान करना पड़ा है।
करीब 38 एकड़ में फैला बंदरगाह
भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण की ओर से करीब 38 एकड़ में टर्मिनल बनाया गया है। शेष जमीन के लिए जिला प्रशासन के जरिए प्राधिकरण प्रयासरत है। जमीन नहीं मिलने से प्रस्तावित काम आगे नहीं बढ़ पा रहे। अभी यहां सुविधाओं का टोटा है। कंटेनर आने जाने तक के लिए रास्ता नहीं है। ऐसे में माल को तय स्थान तक पहुंचाने में कठिनाई हो रही है। लाल बहादुर शास्त्री जलपोत से आइएफबी एग्रो इंडस्ट्रीज लिमिटेड की लगभग 40 टन धान की भूसी बंदरगाह से कोलकाता के लिए भेजी गई थी। चार माह बीतने के बाद भी बंदरगाह पर न तो कोई कार्गो आया और न ही कोई कार्गो यहां से रवाना किया गया। व्यापारियों की माने तो बंदरगाह से ट्रांसपोर्टिंग सस्ता है लेकिन जानकारी मिलेगी तभी व्यापारी वर्ग बंदरगाह से जुड़ेगा।
बंदरगाह के वजूद को लेकर उठते रहे हैं सवाल
बनारस में बंदरगाह के उदघाटन के ठीक चार महीने बाद यानी 16 जुलाई 2021 को कांग्रेस कमेटी के सदस्य राल्हूपुर बंदरगाह रामनगर पर ज़बरदस्त प्रदर्शन करने पहुँच गए थे। प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे पार्टी के पूर्व प्रदेश सचिव ओमप्रकाश ओझा ने कहा था कि मोदी जी ने इसके उद्घाटन के नाम पर जनता को ठगा है। यह जब से खुला है बस शोपीस बनकर रह गया है। ओमप्रकाश ओझा ने कहा की 'यह सरकार सिर्फ जनता से झूठ बोलती है, जिस बंदरगाह का उदघाटन काशी के सांसद व देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था ,आज वह बन्द पड़ा है। बंदरगाह की जोर-शोर से मार्केटिंग हुई। बड़े बड़े प्रचार हुए लेकिन मौजूदा स्थिति यह है की बंदरगाह बन्द पड़ा है। सौगात के नाम पर मोदी जी ने काशी को ठगा है। सिर्फ और सिर्फ खोटी नियत खोखला विकास काशी में हुआ है। हम कांग्रेसी इस जनविरोधी सरकार का पुरजोर विरोध करते है। साथ ही सरकार से मांग करते है की तत्काल प्रभाव से बंदरगाह चालू किया जाए।
क्या कहते हैं व्यापारी
आर्थिक और सामयिक समझ रखने वाले बनारस के वैभव त्रिपाठी कहते हैं कि ' बंदरगाह शुरू ही नहीं हो सका है. बनारस की गंगा में चलने वाले क्रूज ही इनके नजरिये में मालवाहक जहाज है. क्रूज से मल्लाहों का बड़ा नुकसान हुआ है. जलमार्ग की परिकल्पना और अटल जी की नदी जोड़ों अभियान ये दोनों वाहियात किस्म के प्रोजेक्ट हैं. इनका जन सरोकार से कोई वास्ता नहीं है. जो माल हल्दिया से बनारस या इलाहबाद एक हफ्ते-दस दिन में लाएंगे। इसी माल को ट्रेन और सड़क माध्यम में एक-दो दिन में इलाहबाद या बनारस सस्ते दर पर पहुँचाया जा सकता है. किस व्यापारी के पास इतना समय है कि वह अपने माल के लिए दस दिन का इंतज़ार करेगा। इस दस दिन में माल की वैल्यू क्या होगी ? सभी जानते हैं। बेशक शुरूआती दिनों में कुछ कस्टमर जलमार्ग के लिए मिल सकते हैं, लेकिन फ्यूचर में इस योजना को फेल होना है. क्योंकि यह हकीकत से परे की चीज है. बंदरगाह निर्माण खुला लूट का साधन है. भ्रष्टाचार चरम पर है.'"
रामनगर इंडस्ट्रीयल एसोसिएशन के महामंत्री राकेश जायसवाल बताते हैं कि 'सटीक जानकारी न मिलने के कारण व्यापारी बंदरगाह से जुड़ नहीं पा रहे हैं। बंदरगाह तक जाने वाला रास्ते को ब्लाक कर दिया गया है। जब सूचना ही नहीं मिलेगी तो ट्रांसपोर्टिंग का काम कैसे किया जाएगा। उद्यमियों की सुविधा के लिए तो बंदरगाह बना दिया गया लेकिन अभी कई सुविधाएं यहां नहीं है। व्यापारियों को भाड़े पर सब्सिडी भी नहीं मिलती है। कंटेनर के आने जाने तक की सुविधा नहीं है।' राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आइआइए व संरक्षक रामनगर इंडस्ट्रीयल एसोसिएशन के आरके चौधरी ने जलमार्ग से व्यापार के पक्षधर हैं। वे कहते हैं कि 'बंदरगाह से माल की बुकिंग की जिम्मेदारी शिपिंग कार्पोरेशन कोलकाता की एजेंसी को दी गई है। जलमार्ग से व्यापार करना काफी सस्ता है फिर भी उद्यमी जलमार्ग से व्यापार करने से दूर है। व्यापारियों से संपर्क कर बंदरगाह से व्यापार करने के लाभ को बताया जाएगा।'
सवाल सुनकर फोन काट दिया बंदरगाह का लापरवाह अधिकारी
मीडिया रिपोर्ट में जहाज-जलमार्ग परियोजना के नोडल अधिकारी राजेश कुमार ने बताया कि है कि मुख्यालय से जल परिवहन में आ रहे अवरोध को दूर करने के लिए प्रयास जारी है। ड्रेजिंग के लिए टेंडर जारी किए गए हैं। जून में इसकी प्रक्रिया पूरी कर काम शुरू कराने की तैयारी है। जल्द ही एक बार फिर से राष्ट्रीय जलमार्ग में जहाज माल ढो सकेंगे।' बहरहाल, अपोजिशन के लोगों का आरोप है कि बनारस बंदरगाह परियोजना लूट-खसोट और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है। इस प्रोजेक्ट में कोई पारदर्शिता नहीं दिख रही है. इस प्रोजेक्ट के सन्दर्भ जानकारी लेने बाबत भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के मकबूल आलम रोड स्थित कार्यालय में संपर्क किया गया तो परियोजना के नोडल अधिकारी राजेश कुमार अनुपस्थित मिले। इतना ही नहीं कई बार फोन पर सवाल सुनने के बाद जवाब देना मुनासिब ही नहीं समझा। साथ ही फोन भी नहीं उठाया।