कोर्ट ने उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए बने किराया कानून को ठहराया असंवैधानिक, निशंक-खंडूड़ी-कोश्यारी को चुकाना होगा पूरा किराया

पहले भी हाईकोर्ट ने सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों से बाज़ार भाव से किराया वसूलने का आदेश दिया था, लेकिन सरकार ने इसकी काट के लिए कानून बना दिया था....

Update: 2020-06-10 09:49 GMT

जनज्वार, देहरादून। उत्तराखंड हाईकोर्ट से राज्य की त्रिवेंद्र रावत सरकार को बड़ा झटका लगा है। पूर्व मुख्यमंत्रियों को किराए और अन्य सुविधाओं में छूट देने के लिए बनाए गए कानून को नैनीताल हाईकोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया है।

अब सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों निशंक, कोश्यारी, खंडूड़ी को बाज़ार भाव से किराया और अन्य सुविधाओं का पैसा देना होगा। इससे पहले 23 मार्च को इस मामले में सुनवाई पूरी कर चीफ जस्टिस की कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुरक्षित रखा था। इससे पहले भी हाईकोर्ट ने सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों से बाज़ार भाव से किराया वसूलने का आदेश दिया था, लेकिन सरकार ने इसकी काट के लिए कानून बना दिया था। सरकार के कानून बनाने को रुलक संस्था ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों को राज्य सरकार की ओर से बंगला, गाड़ी समेत कई सुविधाएं मिलती थीं। रूलक संस्था के अवधेश कौशल इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके बाद सभी हाईकोर्ट के आदेश पर पूर्व मुख्यमंत्रियों ने ये सुविधाएं वापस कर दी थीं। याचिका में जिस अवधि तक पूर्व मुख्यमंत्रियों ने सुविधाओं का इस्तेमाल किया है उनका किराया और अन्य भुगतान उन्हीं से वसूलने की मांग भी की गई थी।

हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने 3 मई, 2019 को जारी आदेश में कहा था कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगले, गाड़ी आदि सभी सुविधाओं का किराया बाज़ार भाव से देना होगा। हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि 6 महीने के दौरान सभी पैसा जमा करें और अगर ऐसा नहीं करते हैं तो सरकार को इनके खिलाफ वसूली की कार्रवाई शुरू करनी होगी।

दो पूर्व मुख्यमंत्रियों भगत सिंह कोश्यारी और विजय बहुगुणा ने हाईकोर्ट के इस आदेश को चुनौती भी दी, लेकिन यह खारिज हो गई। इसके बाद राज्य सरकार के लिए लगभग बाध्य हो गया था कि कोश्यारी और बहुगुणा के अलावा रमेश पोखरियाल निशंक और मेजर जनरल (रिटायर्ड) बीसी खंडूड़ी से बकाया वसूले। एक और बकायेदार पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी का केस की सुनवाई के दौरान ही निधन हो गया था।

इस मामले की ख़ास बात यह है कि सभी पूर्व मुख्यमंत्री बीजेपी से हैं और शायद इसीलिए कोर्ट से धक्का लगने के बाद सरकार ने इन्हें राहत देने के लिए अध्यादेश लाने का फ़ैसला किया।कैबिनेट ने फ़ैसला किया कि पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगलों, गाड़ी के किराए का भुगतान सरकार करेगी और उन्हें सभी सुविधाएं पहले की तरह मुफ्त दी जाती रहेंगी। 5 सितम्बर, 2019 को इस अध्यादेश पर राज्यपाल के मुहर लगने के साथ ही हाईकोर्ट का फ़ैसला निष्प्रभावी हो गया था।

रूलक संस्था की ओर से अवधेश कौशल ने इस अध्यादेश को असंवैधानिक बताते हुए हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इसी तरह का मामला यूपी सरकार में भी सामने आया था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने नए कानून को रद्द कर दिया था।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था कि राज्य सरकार जो एक्ट लेकर आई है, वो असंवैधानिक है और हाईकोर्ट के आदेश को ओवररूल करने के लिए ही लाया गया है।याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट में कहा है कि सरकार का यह एक्ट आर्टिकल 14 समानता के अधिकार के खिलाफ है।

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