अस्पताल में बेटे की हो गई मौत, 24 घंटे तक अस्पताल के गेट पर भटकती रही मां, नहीं मिला शव
अस्पताल प्रबंधन कोरोना जांच रिपोर्ट देखे बगैर शव को नहीं देना चाहता था, उससे भी हैरान करने वाली बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम की नैनीताल प्रशासन को कोई जानकारी नहीं है....
प्रतीकात्मक तस्वीर
हल्द्वानी। उत्तराखंड के हल्द्वानी में इंसानियत को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है। दरअसल यहां एक मां अपने मृत बेटे के चेहरे को देखने के लिए अस्पताल के गेट पर इधर से उधर भटकती रही लेकिन एसटीएच प्रबन्धन का दिल नहीं पसीजा। मां को मृत बेटे से चौबीस घंटे तक दूर रखा गया। खबरों के मुताबिक अस्पताल प्रबंधन को मां के दुख दर्द से ज्यादा अपनी कागजी कार्रवाई की चिंता रही।
अस्पताल प्रबंधन कोरोना जांच रिपोर्ट देखे बगैर शव को नहीं देना चाहता था। उससे भी हैरान करने वाली बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम की नैनीताल प्रशासन को कोई जानकारी नहीं है।
चंपावत के खर्ककार्की के 33 वर्षीय सुरेश कुमार 33 वर्षीय नैनीताल टीआरसी में तैनात थे। डायबिटीज से ग्रसित सुरेश की गुरूवार की शाम तबियत बिगड़ी। पत्नी आशा पति को एसटीएच ले आई, रात 11 बजे सुरेश ने दम तोड़ दिया।
सूचना पाकर शुक्रवार की दोपहर मां लक्ष्मी देव चंपावत से हल्द्वानी आ गई लेकिन बेटे के दर्शन नहीं हुए। शनिवार की शाम कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आने पर परिजनों को शव सौंपा गया।
एसटीएच के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अरूण जोशी ने कहा, कोरोना के संदिग्ध मरीज के मामले में जांच रिपोर्ट से पहले शव परिजनों को देना संभव नहीं होता है।
इस घटना के बाद प्रदेश की स्थितियों पर चिंता जाहिर करते हुए उत्तराखंड के पत्रकार राजीव पांडेय अपने फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं, 'चिपको आंदोलन, नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन, उत्तराखंड आंदोलन। इसमें पहले दो आंदोलनों के बारे में मैंने पढ़ा है। तीसरा आंदोलन मेरी स्मृति में आज भी जिंदा है। ये उदाहरण मात्र हैं। मेरी नजर में उत्तराखंड आंदोलनों का प्रदेश है।'
वह आगे लिखते हैं, 'यहां गुरिल्ला आंदोलन पिछले 15 या बीस साल से अनवरत चल रहा है लेकिन कोई सुधलेवा नहीं है क्योंकि अफसरशाही यहां घुन की तरह लगी हुई है। यहां हर मोर्चे पर लोग आंदोलन में डटे हुए हैं। सड़क के लिए आंदोलन, पानी के लिए आंदोलन, बिलजी के लिए आंदोलन, डॉक्टर के लिए आंदोलन, शिक्षक के लिए आंदोलन।'
'लिखता रहूंगा तो इंटरनेट में स्पेश की कमी नहीं होती की धारणा खत्म हो जाएगी। पूरा गूगल भर जाएगा। इतने मजबूत उदाहरणों के बावजूद आज मेरे प्रदेश में अफसरशाही के आगे जनता कराह रही है। हमारे कमजोर जनप्रतिनिधियों के कारण आज जनता के पैसे पर पलने वाले अफसर पहाड़ियों को अपनी जूती पर रखते हैं।'
'लोकतंत्र की समझ रखने वालों के लिए पिछले 15 दिन के भीतर सामने आए तीन उदाहरण चिंता की बड़ी तस्वीर खींचते हैं। तीनों खबरें अखबारों से हैं। ऊधमसिंह नगर के जिलाधिकारी किच्छा के चुने हुए विधायक से ये कहने की हिमाकत करते हैं कि आपकी यादाश्ता कमजोर है? इसके बावजूद इतनी मजबूत सरकार नतमस्तक है। नैनीताल के जिलाधिकारी प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के प्रतिनिधि मंडल को अपने दफ्तर में बुलाकर मिलने से मना कर देते हैं। उनसे मिलने के लिए धरना देना पड़ता है लेकिन कोई उनका कुछ नहीं कर सकता।'
उन्होंने आगे लिखा, 'प्रदेश में मुख्यमंत्री के बाद दूसरे हैवी वेट नेता मदन कौशिक की बुलाई बैठक में केवल दो अफसर पहुंचते हैं। इसके बावजूद सुपर बहुमत वाली भाजपा सरकार चुप रहती है। पहाड़ पुत्र श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस और खुद को पहाड़ का हितैषी बताने वाले उक्रांद (उत्तराखंड क्रांति दल) के स्थापना दिवस ने बरबस ही इतना सोचने को मजबूर कर दिया।'