ट्रेन के आगे जान देने वाले युवाओं ने कहा, नौकरी लगेगी नहीं तो जी कर क्या करेंगे
आत्महत्या से पहले चारों दोस्तों ने उसे ट्रैक पर बुलाकर कहा था कि- हमारी नौकरी नहीं लग रही, हम तो मरेंगे, तू बता क्या करना चाहता है..और फिर चारों युवक ट्रेन के आगे कूद गए...
सुशील मानव की रिपोर्ट
“नौकरी लगेगी नहीं तो जी कर क्या करेंगे” गहरी निराशा में लिपटे ये शब्द बेरोजगारी की मार से टूट चुके उन चार युवाओं के हैं जिन्होंने आत्महत्या के लिए चलती ट्रेन के आगे छलांग लगा दी। ये वाक्य किसी फिल्म के डायलॉग नहीं जीवन के गहरी वेदना और हताशा से उपजे हैं।
उनके इस वाक्य में कितनी हताशा कितना निराशा कितना दुःख, कितनी पीड़ा निहित है, ये न तो मन की बात करने वाले सत्ताधारी महसूस सकते हैं। न ही इसे रात दिन हिंदू-मुस्लिम चिल्लाने वाले टीवी चैनलों के एंकर समझ सकते हैं।
ट्रेन के आगे छलांग लगाने वाले चार युवकों में से तीन की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि एक गंभीर घायल का जयपुर के एक अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है।
घटना अलवर शहर के शांतिकुंज स्थित एफसीआइ गोदाम की है। जोकि 20 नवंबर मंगलवार देर शाम घटित होती है। अलवर पुलिस की प्रारंभिक जांच-पड़ताल में भी नौकरी नहीं मिलने के तनाव के चलते युवकों द्वारा आत्महत्या करने की बात सामने आई है। वहीं घटना के चश्मदीद एक अन्य दोस्त के मुताबिक आत्महत्या से पहले चारों दोस्तों ने उसे ट्रैक पर बुलाकर कहा था कि- हमारी नौकरी नहीं लग रही, हम तो मरेंगे, तू बता क्या करना चाहता है..और फिर चारों युवक ट्रेन के आगे कूद गए।
बता दें कि रैणी के बहड़को कलां निवासी मनोज मीणा (24 वर्ष), बुचपुरी निवासी सत्यनारायण उर्फ डूटी मीणा (22 वर्ष), रैणी के बैरेर निवासी रितुराज उर्फ रिषी मीणा (17 वर्ष), टोडाभीम (करौली) के खेड़ी मेघा निवासी अभिषेक मीणा (22 वर्ष) अलवर में रहकर प्रतिस्पर्धात्मक प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे थे। रितुराज उर्फ ऋषि अलवर के एक निजी कॉलेज में बीए प्रथम वर्ष का छात्र था। जबकि हादसे में गंभीर घायल अभिषेक 12वीं पास है और रेलवे की तैयारी कर रहा है।
हादसे का चश्मदीद गवाह राहुल मीणा निवासी राजगढ़, काली पहाड़ी के मुताबिक- 20 नवंबर मंगलवार की शाम करीब 6:30 बजे सत्यनारायण ने उसे फोन कर एफसीआइ गोदाम के पास बुलाया। वहां सत्यनारायण, मनोज, अभिषेक, रितुराज और संतोष रेलवे पटरियों पर बैठकर धूम्रपान कर रहे थे। वह भी उनके धूम्रपान करने लगा। इसी दौरान हंसी मजाक करते हुए सत्यनारायण उससे बोला कि अब जीने से मन भर गया है। हम सब तो मरेंगे, तू भी मरना चाहता है तो बता...नौकरी लगेगी नहीं और खेतों में काम हमसे होगा नहीं तो जी कर क्या करेंगे, दूसरों को तकलीफ ही देंगे।
इस पर वह सत्यनारायण से बोला कि मैं क्यों मरूं, अगर मैं मर गया तो मेरे घरवाले मर जाएंगे। उसने सत्यनारायण को कहा कि भाई सुबह से कुछ नहीं खाया है कमरे पर चलकर खाना खाएंगे। तो सत्यनारायण बोला कि अपने पास एटीएम और पैसे हैं, आधे घंटे रुक होटल पर खाना खाएंगे। फिर सभी दूसरे ट्रैक पर जाकर बैठ गए। फिर सत्यनारायण ने कहा कि मरना है सभी अपने घरों पर तो बात कर लो। फिर चारों इधर-उधर फोन मिलाकर बात करने लग गए। इतने में सामने से जयपुर-चंडीगढ़ ट्रेन आई और अचानक चारों ने ट्रेन के आगे छलांग लगा दी। अलवर पुलिस को घटना की सूचना रात 11.30 पर मिली।
हाल ही में इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (ILO) ने रोजगार पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपर्टे के मुताबिक भारत में बेरोजगारी का स्तर पिछले साल तुलना में इस साल एक स्तर ऊपर बढ़ गया है। जहाँ साल 2017 में भारत में 1 करोड़ 83 लाख लोग बेरोजगार थे वहीं अब यानी साल 2018 में बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 1 करोड़ 86 लाख पहुँच गई है।
जबकि भारत सरकार की रोजगार 2016 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल 11 करोड़ 70 लाख बेरोजगार थे, जिनमें से 1 करोड़ 30 लाख खुले तौर पर, 5 करोड़ 20 लाख प्रच्छन्न बेरोजगारी और वहीं 5 करोड़ 20 लाख ऐसी महिलाएं शामिल थीं, जो काम नहीं करती थीं। इन आंकड़ों को इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के दौरान अर्थशास्त्री मोहन गुरुस्वामी ने शेयर करते हुए बताया कि भारत में 1.3 बिलियन कुल आबादी में से 11 करोड़ 70 लाख लोगों को आज भी नौकरी नहीं मिली है।
खत्म हो रही हैं नौकरियाँ
अब अगर श्रम ब्यूरो की रिपोर्ट पर भी एक नजर डाली जाए तो आंकड़ों के अनुसार भारत दुनिया के सबसे ज्यादा बेरोजगारों वाला देश बन चुका है। रिपोर्ट के अनुसार भारत की लगभग 11 फीसदी आबादी यानि 12 करोड़ लोग बेराजगार हैं। रिपोर्ट बताता है कि हर रोज 550 नौकरियां खत्म हो रही हैं जबकि साल 2015 में सिर्फ 1 लाख 35 हजार लोगों को ही नौकरी मिली है।
वहीं श्रम रोजगार की रिपोर्ट कहती है कि स्वरोजगार के मौके घटे हैं, और नौकरियां कम हुई हैं। वहीं संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन की रिपोर्ट में बताया गया था कि साल 2018 में भारत में बेरोजगारी का स्तर बढ़ सकता है।साल 2017 के शुरुआती 4 महीनों को लेकर CMIE (भारतीय अर्थव्यवस्था पर निगरानी रखने वाली संस्था) ने एक सर्वे किया था। सर्वे में पाया गया था कि जनवरी से अप्रैल के बीच में करीबन 15 लाख लोगों ने नौकरी गंवाई है और बेरोजगारी का स्तर बढ़ा है। ध्यान दें कि साल 2016 के नवंबर दिसंबर में देश में नोटबंदी योजना लागू की गई थी।
बावजूद इन सबके सरकार के पास देश भर के बेरोजगारों का कोई सही व सटीक आँकड़ा नहीं है। न ही बेरोजगारों की इतनी बड़ी आबादी को लेकर सरकार के पास कोई मंत्रालय या सरकारी संस्था है। जो सिर्फ बेरोजगारों पर काम करे। जब आपके पास बेरोजगारों का सही आँकड़ा ही नहीं है तो क्या खाक आप बेरोजगारी और रोजगार की बात करेंगे। और क्या खाक बेरोजगारी से निजात दिलाने का रोडमैप तैयार करेंगे।
कल चार युवक मरे हैं पता नहीं उनकी मौत को शोर 7 लोक कल्याण मार्ग तक पहुँचा या नहीं, पर हाँ चश्मदीद गवाहों के बयान के आधार पर पहली बार ये अखबार की खबर बनी है जिसमें युवकों द्वारा किए गए आत्महत्या की वजह बेरोजगारी बताई गई है। वर्ना प्रशासन और मीडिया इन आत्महत्याओं को भी प्यार में धोखा और बेवफाई, मानसिक बीमारी या डिप्रेसन के कारण की गई आत्महत्या बताकर निपटा देती।