दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी ने एक भी उत्तराखंडी को नहीं दिया टिकट

Update: 2020-01-22 04:54 GMT

उत्तराखंडियों को टिकट बंटवारे में सबसे ज़्यादा उपेक्षा का सामना आम आदमी पार्टी से करना पड़ा है, जबकि भारतीय जनता पार्टी ने पटपड़गंज से उत्तराखंडी रवि नेगी और करावल नगर से पूर्व विधायक मोहन सिंह बिष्ट को टिकट दिया है, कांग्रेस ने पटपड़गंज से उत्तराखंडी लक्ष्मण रावत को बनाया है अपना उम्मीदवार...

वरिष्ठ पत्रकार पीयूष पंत का विश्लेषण

दिल्ली की आबादी में बड़ी हिस्सेदारी उत्तराखंड से आये लोगों की है। ये प्रवासी उत्तराखंडी पूरब से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक पूरी दिल्ली में फैले हैं। एक अनुमान के अनुसार उत्तराखंड के लगभग 40 लाख लोग दिल्ली के विभिन्न इलाकों में रहते हैं। बड़ी तादाद में होने के चलते ही ये लोग किसी भी चुनाव को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं, फिर भी राजनीतिक दल हैं कि इन्हें टिकट देने में कोताही बरतते हैं। वो इन्हें बस वोट बैंक ही बनाये रखना चाहते हैं।

दूसरे राज्यों से आ कर दिल्ली में बसे लोगों की चर्चा जब भी होती है तो यही कहा जाता है कि दिल्ली में इतने ज़्यादा पुरबिये बस गए हैं कि उन्होंने दिल्ली का जोग्राफिआ ही बदल दिया है। दो राय नहीं कि देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र से आये लोग दिल्ली की हर गली-कूचे में बस गए हैं। इनकी जनसंख्या इतनी ज़्यादा है कि दिल्ली विधान सभा की बहुत सारी सीटों पर ये जीत-हार का समीकरण बनाने बिगाड़ने की ताकत रखते हैं। यही कारण है कि दिल्ली का हर राजनीतिक दल इन्हें टिकट देने के लिए लालायित रहता है।

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गर इनके बराबर नहीं तो भी इनसे कुछ ही कम उपस्थिति उत्तराखंड से आये लोगों की भी दिल्ली में है। इनमें कुमाउँनी और गढ़वाली दोनों शामिल हैं। उत्तराखंड से रोज़गार की तलाश में दिल्ली आये ये लोग भी पूर्वांचल वासियों की ही तरह लगभग पूरी दिल्ली में ही फैले हैं लेकिन कुछ इलाकों में इनकी तादाद काफी ज़्यादा है।

दिल्ली के जिन इलाकों में उत्तराखंडियों की अच्छी-खासी तादाद मौजूद हैं वे हैं विनोद नगर, पांडव नगर, विश्वास नगर, लक्ष्मी नगर, गीता कॉलोनी, मयूर विहार फेज 2 और फेज़ 3, दिलशाद गार्डन,करावल नगर,उत्तम नगर, संगम विहार, बदरपुर, सोनिया विहार, आर के पुरम,पालम,सागरपुर, शकूरपुर, वसंतकुंज, पटेल नगर, नज़फगढ़, बुरारी संत नगर, महावीर इन्क्लेव और शाहदरा। इनमें से ज़्यादातर लोग चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी हैं।

Full View इलाकों में से कुछ इलाके तो ऐसे हैं जहां उत्तराखंडियों की बसाहट बहुत घनी है खासकर पूर्वी और दक्षिण दिल्ली के इलाके। पूर्वी दिल्ली के विनोद नगर ,पांडव नगर,गीता कॉलोनी जैसे इलकों में तो उत्तराखंडियों की भरमार है। विनोद नगर में तो इनकी संख्या इतनी ज़्यादा है कि वहां का बद्री मंदिर गढ़वालियों को और दुर्गा मंदिर कुमाउनियों को समर्पित है। इसी बद्री मंदिर में ही मत्था टेक कर पटपड़गंज विधानसभा सीट से आम आदमी पार्टी प्रत्याशी और उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने नामांकन भरने जाने की अपनी यात्रा शुरू की थी। विनोद नगर के एक चौक का नाम तो 'कुमांऊ स्कवॉयर' है।

दिल्ली का बुराड़ी इलाका तो एक जंगल था जिसे पहाड़ियों यानी उत्तराखंडियों ने ही बसाया है। कहते हैं कि दिल्ली में पहाड़ियों की 10 में से 5 बारात द्वारका स्थित महावीर इन्क्लेव ही जाती है। कहा तो ये भी जाता है कि शाहदरा में इतने अधिक उत्तराखंडी हैं कि अगर आप पहाड़ी में गाली दें तो कोई न कोई ज़रूर बुरा मान जाएगा।

ब इतनी अधिक बसाहट है उत्तराखंडियों की दिल्ली में तो फिर क्या कारण है कि उनकी राजनीतिक हैसियत कम आंकी जाती है, उन्हें ठोस वोट बैंक तो समझा जाता है लेकिन राजनीतिक भागीदारी देते वक़्त उनकी उपेक्षा कर दी जाती है? आप दिल्ली की किसी भी राजनीतिक पार्टी का सांगठनिक ढांचा देख लीजिये, उत्तराखंडियों की भागीदारी नहीं के बराबर दिखाई देगी। उत्तराखंडियों की यही उपेक्षा लोकसभा या विधान सभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारे के समय भी दिखाई देती है।

त्तराखंडियों को टिकट बंटवारे में सबसे ज़्यादा उपेक्षा का सामना आम आदमी पार्टी से करना पड़ा है। जबकि भारतीय जनता पार्टी ने पटपड़गंज से उत्तराखंडी रवि नेगी और करावल नगर से पूर्व विधायक मोहन सिंह बिष्ट को टिकट दिया है, कांग्रेस ने पटपड़गंज से उत्तराखंडी लक्ष्मण रावत को अपना उम्मीदवार बनाया है। लेकिन आम आदमी पार्टी ने पहाड़ी बहुल इन दोनों सीटों पर किसी भी पहाड़ी को खड़ा नहीं किया है।

Full View पटपड़गंज विधानसभा क्षेत्र में 15 फीसदी उत्तराखंडी हैं। पटपड़गंज से जहां मनीष सिसोदिया को टिकट दिया गया है वहीं करावल नगर से दुर्गेश पाठक को। ये दोनों ही उत्तर प्रदेश से आते हैं। अगर आम आदमी पार्टी चाहती तो मनीष सिसोदिया को बगल के किसी क्षेत्र से उतार सकती थी। चूंकि शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा काम करने के चलते मनीष सिसोदिया काफी लोकप्रिय हैं इसलिए बगल के निर्वाचन क्षेत्र से जीतने में उन्हें ज़्यादा दिक़्क़त नहीं आती।

लेकिन आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली में रह रहे उत्तराखंड के लोग शायद महज़ वोटबैंक भर हैं। तभी तो उत्तराखंडी मतदाताओं को लुभाने के लिए 12 जनवरी को आम आदमी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने उत्तराखंड की गढ़वाली भाषा में अपनी पार्टी का चुनाव गीत जारी किया। गढ़वाली भाषा में गए इस गीत में केजरीवाल सरकार की उपलब्धियों को गिनवाया गया है।

केजरीवाल ने अपने ट्वीटर हैंडल से इस गाने के वीडियो को शेयर करते हुए लिखा था-'गढ़वाली भाषा में आम आदमी पार्टी का चुनावी गीत। इतना शानदार गीत गाने के लिए सुनील थपलियाल जी का शुक्रिया। इस गाने को ज़रूर सुनिए। गढ़वाली नहीं समझ आती, तब भी सुनिए, मज़ा आएगा। और खूब शेयर कीजिये।' मगर उत्तराखंडी समाज उन्हें मूर्ख बनाने की इस चालाकी को शायद समझ गया। तभी तो ट्विटर में एक प्रतिक्रया ये भी थी -'गीत तो अच्छा है पर गढ़वाली गाने से दिल्ली में वोट नहीं मिलेंगे।'

ससे पहले भी उत्तराखंडी वोटबैंक को देखते हुए आम आदमी पार्टी की सरकार ने अक्टूबर 2019 में गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी भाषाओँ तथा संस्कृतियों को बढ़ावा देने के लिए एकेडमी का गठन कर नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया। हालाँकि इसकी घोषणा आम आदमी सरकार नवंबर 2016 में ही कर चुकी थी। उत्तराखंडी वोटबैंक को अपने पाले में लाने की गरज से ही आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली में उत्तराखंडियों का लोकप्रिय त्यौहार 'उत्तरायणी' मानाने लगी। जनवरी 2017 में केजरीवाल सरकार ने पटपड़गंज के पश्चिम विनोद नगर इलाके में तीन दिन का 'उत्तरायणी मेले' का आयोजन किया। इसमें उत्तराखंड के छोटी के लोक कलाकारों को बुलाया गया था।

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Full View आम आदमी पार्टी के पक्ष में ये तो ज़रूर कहा जा सकता है कि नगर निमग चुनाव में पार्षदों के लिए इसने कई उत्तराखंडियों को टिकट दिए। लेकिन साथ ही यह तर्क भी तो दिया जा सकता है कि पार्षद के चुनाव के लिए चुनाव क्षेत्र छोटा होता है इसलिए वहां उन लोगों का समर्थन पाए बिना आपका बेड़ा पार नहीं हो सकता जो संख्याबल में अधिक हैं। इसलिए उत्तराखंडियों को टिकट देना आपकी मजबूरी बन जाती है। गौरतलब है कि दिल्ली में 50 वार्ड ऐसे हैं जिनमें उत्तराखंडी मतदाता चुनावी परिणाम पलट सकते हैं।

दीगर है कि आम आदमी पार्टी को चुनाव लड़ते अभी जुम्मा-जुम्मा 7-8 साल ही हुए हैं, लेकिन सवाल ये भी उतना ही लाजमी है कि अगर पार्टी एक ही बार में 15 पूर्वांचलियों को विधायक बनवा सकती है तो फिर उत्तराखंडियों से एक भी विधायक क्यों नहीं?

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