अमेरिका में पत्रकारों पर पुलिसिया बर्बरता क्योंकि ट्रंप मानते हैं मीडिया को दुश्मन

Update: 2020-06-03 14:09 GMT

दुनियाभर में मानवाधिकार और पत्रकारों की सुरक्षा का पाठ पढ़ाने वाले अमेरिका की हालत भारत जैसी ही है, यहाँ पर भी प्रवासी श्रमिकों पर रिपोर्टिंग करने वाले अनेक पत्रकार पुलिस की बर्बरता का शिकार हो चुके हैं और जेल जा चुके हैं....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने कुछ चहेते पत्रकारों को छोड़कर बाकी मीडिया को अपना दुश्मन मानते हैं। हाल में ही उन्होंने प्रेस को जनता का दुश्मन करार दिया था। इस ट्वीट में उन्होंने बाकायदा सीएनएन, एमएसडीएनसी, न्यूयॉर्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट का नाम भी इन दुश्मनों में शामिल किया था।

यह भी पढ़ें : कोविड-19- डोनाल्ड ट्रंप का दावा- वैक्सीन बनाने के बेहद करीब है अमेरिका

जाहिर है, जब राष्ट्रपति को प्रेस अपना दुश्मन लगता है, तब पुलिस और सुरक्षा बलों को प्रेस पर ज्यादती की पूरी आजादी होगी। जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद से पनपे आन्दोलन की रिपोर्टिंग करते अबतक 50 से अधिक पत्रकारों पर पुलिस ने अब तक आंसू गैस के गोले छोड़े हैं, या रबर बुलेट से घायल किया है या फिर हवालात में डाल दिया है। यह सब उस देश का किस्सा है, जो दुनियाभर में मानवाधिकार का पाठ पढ़ाता है और प्रेस की आजादी की वकालत करता है।

समें कोई आश्चर्य नहीं है कि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा प्रकाशित प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में अमेरिका 48वें स्थान पर है। ट्रम्प के शासन में आने के बाद से इस इंडेक्स में हरेक वर्ष अमेरिका कुछ स्थान और लुढ़क जाता है।

यह भी पढ़ें : भारत में अल्पसंख्यकों पर पुलिसिया उत्पीड़न की इंतहा तो अमेरिका में भी अश्वेतों पर पुलिस कर रही भरपूर अत्याचार

बसे चर्चित घटना मिनियापोलिस की है, जहां आंदोलनकारियों के बीच में सीएनएन के दो पत्रकार एक दूसरे से थोड़ी दूर रिपोर्टिंग कर रहे थे। उन पत्रकारों में एक ओमर जिमिनेज़ अश्वेत थे और दूसरे पत्रकार श्वेत थे। जिमिनेज़ के पास पुलिस वाले आये और पीछे मुड़ने को कहा। जिमिनेज़ ने बार बार बताया कि वह सीएनएन के पत्रकार हैं, अपना पहचान पत्र दिखाया, फिर भी पुलिस वालों पर कोई फर्क नहीं पड़ा।

यह भी पढ़ें : अमेरिका में अब तक कोरोना से 1 लाख से ज्यादा मौतें, मगर ट्रंप को लगता है WHO और चीन को आंखें दिखाने से मिल जायेगा इलाज

पुलिस ने जिमिनेज़ को हथकड़ी पहनाई, फिर उसके दल के प्रोड्यूसर और कैमरामैन के साथ भी ऐसा ही किया। कैमरामैन का कैमरा पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया, पर ध्यान नहीं दिया की कैमरा ऑन है। ये सारी वारदात कैमरा रिकॉर्ड करता रहा। जो कैमरा नहीं दिखा पाया, वह था कि पुलिस वाले जिमिनेज़ को हवालात ले जाते समय सीएनएन के श्वेत पत्रकार के बगल से गुजरे और मुस्तैदी से काम करने की बधाई दी। इस पूरे वाकये को सीएनएन ने लाइव दिखाया था। बाद में जिमिनेज़ को रिहा कर दिया गया।

यह भी पढ़ें : अमेरिका ने WHO से तोड़ा नाता, राष्ट्रपति ट्रंप ने किया ऐलान, चीन को लेकर दिया ये बड़ा बयान

मिनियापोलिस में ही रिपोर्टिंग कर रही स्वतंत्र फोटो जर्नलिस्ट लिंडा तिरदो की आँखों में पुलिस द्वारा चलाई गई रबर बुलेट लगी और उन्हें दिखाना बंद हो गया। न्यूयॉर्क में हफपोस्ट के रिपोर्टर च्रिस मथिअस को पुलिस ने रिपोर्टिंग करते समय अरेस्ट किया। नीना स्वन्बेर्ग नामक स्वीडन की पत्रकार के पैर में रबर बुलेट लगाने से वे चलने में असमर्थ हो गयीं।

मिनियापोलिस में सीबीएस न्यूज़ के दल में से साउंड रिकार्डिस्ट के हाथ में रबर बुलेट लगाने के कारण वह काम करने में असमर्थ हो गया। यहीं पर कैनेडियन ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन की रिपोर्टर सुसन ओर्निस्तों पर पार्किंग एरिया में पुलिस ने गैस कनस्तर से हमला किया।

ब तक केवल दो ऐसे मामले सामने आये हैं, जिसमें प्रदर्शनकारियों ने प्रेस पर हमला किया हो। न्यूयॉर्क में प्रदर्शन के दौरान भीड़ ने ट्रम्प के पिट्ठू फॉक्स न्यूज़ के दल को घेर कर उन पर बोतलें और इसी तरह की दूसरी चीजें फेंकीं थी। सीएनएन के एटलांटा ऑफिस में भी प्रदर्शनकारी घुस आये थे, पर कोई नुकसान नहीं किया।

यह भी पढ़ें : राष्ट्रपति ट्रम्प ने अमेरिका में कोरोना के सबसे ज्यादा मामलों को बताया गर्व की बात

रिपोर्टिंग के समय जब पत्रकारों पर पुलिस ने हमला किया तब अधिकतर स्थानों पर सबकुछ ऑन कैमरा हो गया। केंटुकी में वाइस न्यूज़ के पत्रकार माइकल अन्थोनी अदम्स जब रिपोर्टिंग कर रहे थे, तब पुलिस वाले उनके पास आये। अदम्स लगातार चिल्लाते रहे, आई एम प्रेस, पर पुलिस वालों का जवाब था, आई डू नॉट केयर। इसके बाद पुलिस ने उन पर मिर्ची का पाउडर छिड़क दिया।

यह भी पढ़ें : विविधता-एकता के लिए सम्मान दिखाए भारत, अल्पसंख्यकों के खिलाफ इस्तेमाल हो रही अभद्र भाषा : संयुक्त राष्ट्र

ही स्थिति मिनियापोलिस में स्वतंत्र खोजी पत्रकार रयान रैचे की भी रही। उन पर भी आंसू गैस के गोले और मिर्ची पाउडर दागे गए। मिनियापोलिस में एमएसएनबीसी के पत्रकार मॉर्गन चेक्सी के ऊपर बारूद के गोले छोड़े गए।

पुलिस की इस बर्बरता के विरूद्ध संयुक्त राष्ट्र के साथ साथ ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्वीडन और रूस जैसे देशों ने भी आवाज उठाई है और अपने पत्रकारों के सुरक्षा की मांग की है। दुनियाभर में मानवाधिकार और पत्रकारों की सुरक्षा का पाठ पढ़ाने वाले अमेरिका की हालत भारत जैसी ही है। यहाँ पर भी प्रवासी श्रमिकों पर रिपोर्टिंग करने वाले अनेक पत्रकार पुलिस की बर्बरता का शिकार हो चुके हैं और जेल भी जा चुके हैं।

Tags:    

Similar News