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विमर्श

भारत में अल्पसंख्यकों पर पुलिसिया उत्पीड़न की इंतहा तो अमेरिका में भी अश्वेतों पर पुलिस कर रही भरपूर अत्याचार

Prema Negi
2 Jun 2020 10:30 AM GMT
भारत में अल्पसंख्यकों पर पुलिसिया उत्पीड़न की इंतहा तो अमेरिका में भी अश्वेतों पर पुलिस कर रही भरपूर अत्याचार
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भारत में भी ज्यादतियों को कवर करने गए पत्रकार भी पुलिस और सुरक्षाबलों द्वारा पीटे जाते हैं, मारे जाते हैं, जेल में बंद किये जाते हैं, और यही सबकुछ अमेरिका में भी हो रहा है...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। भारत समेत दुनिया के अधिकतर देशों की सरकारें और पुलिस इस कोविड 19 के इस दौर में समाज के विभाजन में लगी हुई हैं। हमारे देश में इस दौर में अल्पसंख्यकों पर खूब अत्याचार किये जा रहे हैं तो दूसरी तरफ अमेरिका में अश्वेतों पर भरपूर अत्याचार किये जा रहे हैं।

मारे देश में भी प्रधानमंत्री से लेकर उनके मंत्री तक और राज्यों के मुख्यमंत्री तक पुलिस के इस दमन का प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर समर्थन करते हैं, तो अमेरिका में भी ऐसा ही किया जा रहा है। भारत में भी ऐसी ज्यादतियों को कवर करने गए पत्रकार भी पुलिस और सुरक्षाबलों द्वारा पीटे जाते हैं, मारे जाते हैं, जेल में बंद किये जाते हैं, और यही सबकुछ अमेरिका में भी हो रहा है।

मेरिका में और भारत में बस इतना अंतर है कि वहां पूरे देश में आन्दोलन किये जा रहे हैं, हिंसक प्रदर्शन किये जा रहे हैं, जबकि हमारे देश में रोज ऐसी ज्यादतियों और सरकारी हत्याओं के बाद भी बस एक छोटा सा समाचार और सोशल मीडिया पर कुछ बहस की जाती है और इसी बहस के बीच में फिर से कोई ऐसी ही नई घटना हो जाती है।

मेरिका के मिनेसोता में पिछले सप्ताह जॉर्ज फ्लॉयड नामक 46 वर्षीय अश्वेत की श्वेत पुलिस वाले ने बीच सड़क पर भीड़भाड़ के बीच हत्या कर दी, और इसके बाद से अमेरिका में लगभग हरेक शहर में हिंसक प्रदर्शन जारी हैं। लगभग हरेक शहर में कर्फ्यू के बाद भी प्रदर्शन किये जा रहे हैं।

सा नहीं है कि इन प्रदर्शनों में केवल अश्वेत ही हिस्सा ले रहे हैं, बल्कि बड़ी संख्या में श्वेत भी शामिल हैं। मीडिया इसे भले ही 400 वर्षों से अश्वेतों पर किये जा रहे अत्याचार का असर मान रही हो, पर किसी भी शहर के प्रदर्शन के वीडियो को देखकर यह बताना कठिन नहीं है कि प्रदर्शन एक देश को गर्त में ले जाने वाली सरकार और पुलिस ज्यादतियों के खिलाफ हैं।

किसी भी प्रदर्शन को एक जातिवादी या नस्लवादी रंग देकर कमजोर करना आसान होता है और अमेरिका में भी यही किया जा रहा है। हमारे देश में तो यही परंपरा है, आप शाहीन बाग़ के आन्दोलन को याद कीजिये, जिसमें सीएए और एनआरसी के विरुद्ध आन्दोलन को सरकारी स्तर पर किस तरह हिन्दू-मुसलमान का मुद्दा बना दिया गया था।

मारे देश में जिस तरह सरकार की नीतियों के विरोधी सरकार द्वारा राजद्रोही, पाकिस्तानी, अर्बन नक्सल और टुकड़े-टुकड़े गैंग के सदस्य इत्यादि बताये जाते हैं, ठीक उसी तरह से राष्ट्रपति ट्रम्प भी कभी आन्दोलनकारियों को ठग बताते हैं, कभी कहते हैं की जब लूट होती है तभी लोग शूट किये जाते हैं।

भी ट्विटर पर कहते हैं कि दुनिया के सबसे खूंखार कुत्ते आन्दोलनकारियों पर छोड़ देने चाहिए तो कभी बताते हैं कि प्रदर्शन से निपटने के लिए सुरक्षाबलों को दुनिया के सबसे घातक हथियार दिए जाने चाहिए। बस अंतर यह है कि राष्ट्रपति ट्रम्प ऐसे वक्तव्य केवल ट्विटर पर देते हैं, जबकि हमारे देश में तो ऐसे भाषण देश के मुखिया मंच पर खड़े होकर रामलीला मैदान से देते हैं।

भारत में ऐसी किसी भी बर्बरता में शामिल पुलिस या सुरक्षाकर्मी को तुरंत पदोन्नति देकर सरकार समानित करती है तो अमेरिका में उनके खिलाफ कोई कार्यवाई नहीं कर उन्हें आगे भी ऐसा ही करते रहने का सन्देश देती है। जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या करने वाले पुलिसकर्मी पर भी ऐसे लचर से आरोप लगाए गए हैं कि अनेक मानवाधिकार संगठन अभी से ही बता चुके हैं कि उसे कुछ नहीं होगा। उस पुलिसकर्मी के साथ गश्त करने वाले तीन अन्य पुलिस कर्मियों पर तो कोई आरोप ही नहीं तय किये गए हैं।

से हरेक शासक जो निरंकुश होते हैं, बाहर दुनिया को कितना भी महाशक्तिशाली बताते हों या फिर सीना 56 इंच का बताते हों, अन्दर से सबसे अधिक डरे होते हैं। यह डर कभी ना कभी सबके सामने आता ही है। भारत के प्रधानमंत्री तो सवालों से भी घबराते हैं, इसलिए कभी इंटरव्यू ही नहीं देते, या देते भी हैं तो अपने चहेते लोगों को। दूसरी तरफ राष्ट्रपति ट्रम्प के डर का आलम यह है कि वाइट हाउस पर हजारों सुरक्षाकर्मियों का पहरा होने के बाद भी आन्दोलनकारियों से डरकर उसके गुफानुमा बंकर में चले गए, जो इतनी मजबूत है कि पैसेंजर प्लेन भी यदि टकराए तब भी वह अन्दर से सुरक्षित रहेगी।

मारे देश की सरकार सबका साथ और सबका विकास के नारे के साथ आयी थी, इसमें सबका साथ मिलने के बाद भी विकास केवल पूंजीपतियों का ही हुआ, बाकी पूरी आबादी तो पहले से भी पिछड़ गयी। उसी तरह ट्रम्प भी “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” के नारे के साथ आये थे, और आज ट्रम्प अपने साथ-साथ अमेरिका को भी हंसी का पात्र बना चुके हैं।

र, सबसे बड़ा सवाल यही है कि अमेरिका की जनता तो जाग चुकी है, पर क्या हमारे देश की जनता भी जागेगी और अपने साथ हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध कोई आन्दोलन खड़ा करेगी?

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