बिहार के इस गांव में होता है कन्याओं का जनेऊ संस्कार

Update: 2018-01-23 11:19 GMT

हर साल वसंत पंचमी के दिन आयोजित होता है यह कार्यक्रम, जिसमें किया जाता है लड़कियों का जनेऊ संस्कार

बक्सर के नावानगर से छोटू कुमार की रिपोर्ट

आजकल जहां लड़कों में जनेऊ संस्कार की परंपरा खत्म होती जा रही है वहीं बक्सर में एक ऐसा गांव है जहां स्कूली छात्राएं भी जनेऊ धारण करती हैं। भले ही इसकी जानकारी लोगों को नहीं है, लेकिन लगभग पचास सालों से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है।

हर वसंत पंचमी को मणिया गांव में छात्राओं के लिए जनेऊ संस्कार आयोजित किया जाता है। कल बसंत पंचमी को आयोजित कार्यक्रम में भी छह छात्राओं का जनेऊ संस्कार किया गया। पुरानी परंपरा में जान डालने के लिए बक्सर जिले की लड़कियों ने युवाओं को सीख दी हैं। नावानगर प्रखंड के मणियां गांव के उच्च विद्यालय में अनेक छात्राएं जनेऊ धारण करती हैं।

हिंदू धर्म में वैसे तो कन्या के द्वारा जनेऊ धारण करने की मनाही है। इसके बावजूद दशकों से यह परंपरा चली आ रही है। यज्ञोपवीत संस्कार करने वाले आचार्य हरि नारायण आर्य ने कहा कि ऐसा किसी शास्त्र में नहीं लिखा गया कि कन्याएं जनेऊ धारण नहीं कर सकती हैं लेकिन कुछ कारणों से इस पर रोक है। पर इन छात्राओं ने उसका हल निकाल रखा है।

प्रतिवर्ष वसंत पंचमी के दिन जनऊ संस्कार होता है, जिसमें छात्राएं वैदिक परंपरा अनुसार जनेऊ धारण करती हैं। उन्होंने बताया कि हर साल इस विद्यालय में कन्याएं जनेऊ धारण करती हैं। यह परंपरा दशकों से चली आ रही है।

हिंदू धर्म में कन्या के द्वारा जनेऊ धारण करने की मनाही है, मगर यहां छह कन्याओं ने बसंत पंचमी को जनेऊ धारण किया नीतू कुमारी, शिल्पी कुमारी, बसंती कुमारी, अन्नु कुमार और नीतू कुमार ने जनेऊ संस्कार किया। पंडित हरि नारायण आर्य व सिद्धेश्वर आर्य ने इन सभी को जनेऊ धारण कराया।

यह परंपरा 1972 से चली आ रही है। मणिया गांव के आचार्य विश्वनाथ सिंह ने दयानंद आर्य हाईस्कूल की स्थापना की। आचार्य के चार बेटियां थीं, जिनका नाम मंजू, उषा, गीता व मीरा है। आचार्य ने स्थापना के प्रथम वर्ष के बसंत पंचमी के दिन अपनी चारों बेटियों का जनेऊ संस्कार कर दिया। तब से लेकर आज तक यह परंपरा विद्यालय में चली आ रही है।

(प्रभात खबर से साभार)

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