99 प्रतिशत बेघर लोगों के पास नहीं जन्म प्रमाणपत्र, CAA-NRC से बनेंगे निशाना —रिपोर्ट में दावा
एनसीयू ने पांच राज्यों में किया सर्वे, कहा- CAA-NRC-NPR से देश के 99 प्रतिशत बेघर होंगे प्रभावित, क्योंकि उनके पास नहीं हैं जन्म प्रमाण पत्र….
जनज्वार। नागरिक अधिकार संगठन एनसीयू (National Coalition for Inclusive and Sustainable Urbanisation) ने ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर से देश के भीतर रहने वाले बेघर लोगों पर सबसे अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है।
इस संगठन में शोधकर्ता, वकील, असंगठित क्षेत्र के कार्यकर्ता, नेटवर्क एक्टिविस्ट शामिल थे। इस अधिकार संगठन ने पांच राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में एक सर्वेक्षण के आधार पर दावा किया कि 99% से अधिक बेघर लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं है।
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भारत इस समय उतार-चढ़ाव भरे दौर से गुजर रहा है। हाल ही में ओक्सफेम की रिपोर्ट में भारत में मौजूद असमानता को उजागर किया गया था जिसमें हैरान करने वाली बात यह निकलकर सामने आई कि भारत के पूरे बजट की तुलना में सिर्फ 63 अरबपतियों के पास अधिक धन है। यह असमानता शहरों में संपत्ति पर कब्जे को आईना दिखाती है। भारतीय शहरों में दस प्रतिशत सबसे अमीर और सबसे गरीब के बीच 50,000 गुना अंतर है।
एनडीए सरकार की जनविरोधी और गरीब विरोधी नीतियों के कारण साल 2014 के बाद ये असमानता की खाई और बढ़ गई है जिससे समाज के सभी हाशिए पर रहने वालों खासकर दलितों, आदिवासियों, मुसलमानों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए वो मुसीबत खड़ी कर दी है जिसे बयां नहीं किया जा सकता। एनसीयू के घटक सदस्य देश में लंबी और चौड़ी अदूरदर्शी नीतियों के दुष्परिणाम का मुकाबला करने की कोशिश कर रहे हैं।
एनसीयू ने कहा कि शिक्षा, आवास और अन्य आवश्यक सार्वजननिक सेवाओं के मुद्दे सामने हैं लेकिन स्मार्ट सिटी की पहल, स्वच्छ भारत मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना, अटल मिशन और शहरी मिशन जैसे सरकार के प्रमुख कार्यक्रम सामूहिक रूप से केवल कुछ वर्गों, जातियों और अल्पसंख्यक समुदायों को टारगेट करते हैं।
ये मुद्दे जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व के कई शहरों में और भी अधिक स्पष्ट रूप से महसूस किए जाते हैं, जहां एनडीए के असंवैधानिक जनादेश, मानदंडों और दमनकारी नीतियों ने इन समस्याओं को और बढ़ा दिया है। इन नीतियों ने शहर के लिए हमारे अधिकार पर चोट की है जिसे हाल ही में उच्च न्यायालय के फैसले में मौलिक अधिकार माना गया।
11 राज्यों की सरकारों और व्यापक विरोध प्रदर्शनों के बावजूद एनडीए का नागरिकता संशोधन अधिनियम, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (सीएए-एनआरसी-एनपीआर) को लागू करने के खतरे ने शहरी गरीबों के सामने आने वाली समस्याओं को और बढ़ा दिया है।
इसके अलावा, 30 प्रतिशत शहरी बेघर आबादी के पास कोई पहचान प्रमाण नहीं है। इसी तरह कई घुमंतू, निर्वासित जनजातियां और ग्रामीण प्रवासी हैं जो एनआरसी-सीएए-एनपीआ के लिए अपेक्षित दस्तावेज पेश नहीं कर पाएंगे। एनसीयू मानता है कि नागरिकता के प्रमाण का बोझ नागरिकों पर नहीं बल्कि राज्य पर पड़ना चाहिए। दूसरे शब्दों में सरकार इस धारणा के साथ एनआरसी सीएए की प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती है कि जब तक साबित न हो, भारत में रहने वाला हर कोई अवैध अप्रवासी है। यह असंवैधानिक है और लाखों भारतीयों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
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एनसीयू ने कहा कि एनपीआर और एनआरसी को लागू करने की लागत को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। एनआरसी तैयार करने की अनुमानित लागत, असम के अनुभव के आधार पर 55,000 करोड़ रुपये होगी। इन बहुमूल्य निधियों को देश के सबसे कमजोर निवासियों के स्वास्थ्य, रोजगार और शिक्षा की ओर मोड़ा जाना चाहिए।
देशभर में 220,000 करोड़ रुपये की लागत से निर्माणाधीन हिरासत केंद्रों को बंद कर दिया जाना चाहिए और देश के सबसे कमजोर निवासियों की स्वास्थ्य सुविधाओं, रोजगार और शिक्षा के लिए इस कीमती धन को दिया जाना चाहिए।