इंदौर-पटना एक्सप्रेस रेल हादसे के 4 साल बाद भी नहीं हटाए गए डिब्बे, स्थानीय लोगों को हो रहीं परेशानियां
चार साल पहले कानपुर से 100 किलोमीटर दूर हुआ था भीषण रेल हादसा, इस हादसे में हुई थी 153 लोगों की मौत, चार साल बाद भी खेतों से नहीं हटाए गए दुर्घटनाग्रस्त रेल के डिब्बे, स्थानीय लोगों को हो रहीं दिक्कतें
कानपुर से मनीष दुबे की रिपोर्ट
जनज्वार। रविवार सुबह करीब 108 किलोमीटर गति से दौड़ रही इंदौर-पटना एक्सप्रेस के पांच कोच हादसे के बाद एक दूसरे पर चढ़ गए तथा पांच पटरी से उतर गए। बी-3, बीईएक्स-वन तथा एस वन कोच के परख्च्चे उड़ जाने के कारण सबसे ज्यादा मौतें इन्हीं कोचों में हुई थीं। तीनों कोच को गैस कटर से काटकर घायलों और मृतकों को निकाला गया था।
ये कहा खेत मालिक ग्रामीण ने
यहीं के निवासी खेतिहर कमलेश मिश्रा का कहना है कि वो अपने खेतों में काम करते हुए आज भी इन पड़ी बोगियों को देखकर भय खाते हैं। जब हादसा हुआ था तब अपने घर से घटना को सुनकर भागकर आये थे। नजारा देखकर उनके रोंगटे खड़े हो गए थे। कमलेश बताते है कि पुलिस वाले पचासों की संख्या में गाड़ियों से लाशों को उठा उठाकर चील घर और अस्पताल भेज रहे थे। सैकड़ों आदमी मर गया था। लोग चीख चिल्ला रहे थे। दूर दू से लोग अपने अपनो को ढूंढने खोजने आये थे यहां लोगों का मेला लगा हुआ था।
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सरकार को कोसते हैं ग्रामीण
यहीं के निवासी मनीष शुक्ला बताते हैं कि ये सरासर सरकार और सरकारी तंत्र की लापरवाही है। हमारी गाड़ी में कोई खराबी आ जाती है तो क्या हम उसे ठीक नहीं कराते? पर ये सरकार है इसकी जेब से क्या जाता है। जनता की कमाई है सब जो ये लोग फूंके दे रहे हैं। इन बोगियों को ठीक भी करवाया जा सकता था। मरम्मत करवाई जा सकती थी, सभी काम आ सकते थे। मगर नहीं सरकार बजट बनाकर नई ट्रेन चला दी रही है। इस तरह से सरकारी सम्पत्ति पड़े पड़े सड़ रही बर्बाद हो रही इसे देखने वाला कोई नहीं।
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स्टेशन अधीक्षक की लाचारी
पुखरायां रेलवे स्टेशन के मौजूदा अधीक्षक एन के सिंह अपनी जिम्मेदारियों पर खामोशी ओढ़ते हुए हमसे बात करने से मना कर देते हैं। कहते हैं कि मैने आप का नाम सुना है, लेकिन प्लीज आपको जो भी कुछ पूछना है आप झांसी मंडल में जाकर पता करें। हमे कोई भी आदेश नहीं है। पता सब है पर आपको बता नहीं सकते। हमारी हद में सिर्फ आती जाती ट्रेनों को झंडी दिखाना ही है।
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कब तक पड़ी रहेंगी बोगियां
घटना के बाद अब तक इन पड़े डिब्बों को उठाया नहीं गया है। सरकार नई नई ट्रेनें ला बना रही। मेट्रो ट्रेन चलाई जा चुकी है लेकिन इन बोगियों का कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यहां पड़ी ये बोगियां कब तक ज्यों की त्यों पड़ी रहेंगी इसका जवाब किसी के पास नहीं है और न ही कोई जवाब देने को तैयार है। जबकि इन बोगियों की मरम्मत करवाकर दुरस्त करवाया जा सकता था। जनता की गाढ़ी कमाई को पल भर में फूंक देने वाली सरकारों को क्यो कभी हरक दरक वाली सुध नहीं आती।