लॉकडाउन में फंसे बेटे के लिए मां ने बेचे 10000 में गहने, भेजा टिकट का पैसा तो लौटा बिहार
प्रवासी मजदूर सुबोध कुमार बताते हैं कि उनके घर की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं है। घर वापसी के लिए उनकी मां ने अपने गहने बेचकर 10,000 उनके खाते में डाले जिससे वह अपने घर वापस सही सलामत लौट सकें...
नागपुर से स्वतंत्र पत्रकार हिमांशु सिंह की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो। लॉकडाउन के चलते लाखों मजदूरों का रोजगार छिन चुका है। मजदूरों के पास घर जाने के सिवा और कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है। लाखों मजदूर अलग-अलग राज्यों में फंसे हुए हैं। मजदूरों के सामने सबसे बड़ी समस्या रोजी-रोटी का है। घर-बार अपने बीवी बच्चे तक को छोड़कर रोजी-रोटी की तलाश में निकल पड़े थे।
कोरोना महामारी के चलते संपूर्ण लॉकडाउन करना पड़ा जिससे प्रवासी मजदूरों की समस्या बढ़ गई। कई मजदूर जो दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में बाहर कमाने गए थे, वहीं अब भी कई फसे हुए हैं। घर जाने की चाह रखने वाले मजदूर अपने घर की ओर वापस जाना चाहते हैं लेकिन उनके पास अब कोई विकल्प नहीं रह गया है। इन मजदूरों को सरकार की ओर से किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिल पा रही है, जिससे इन पर समस्याओं का पहाड़ टूट पड़ा है। अव्यवस्थाओं से तंग आकर प्रवासी मजदूर अपने घरों की ओर पैदल ही सड़कों पर निकल पड़े हैं।
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बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के निवासी सुबोध कुमार बताते हैं कि वे तमिलनाडु के त्रिपुर जिले में कपड़ा प्लांट में मजदूरी करते थे। लॉकडाउन के कारण उनका रोजगार छिन गया। कोरोना के डर से वे अपने घर वापस आना चाहते थे। जब उन्हें पता चला कि ट्रेन से अपने घर जा सकते हैं तो वह रेलवे स्टेशन पहुंचे लेकिन पुलिस ने मार-पीटकर भगा दिया। सरकार की ओर से ना खाना दिया गया ना घर वापसी की व्यवस्था की गई।
सुबोध आगे बताते हैं कि हेल्पलाइन नंबर दिया गया था जिसमें उन्होंने कॉल किया लेकिन कोई मदद नहीं मिल सकी। सुबोध व उनके साथी को मिलाकर 62 लोग थे और सभी को घर वापस आना था लेकिन घर वापसी के लिए किसी के पास भी पैसे नहीं थे सभी ने अपने घर में फोन कर पैसे मंगवाए।
सुबोध भावुक होकर आगे कहते हैं कि घर में रहकर खेती किसानी कर लेंगे, लेकिन अब तमिलनाडु कभी वापस नहीं जाएंगे। सुबोध कुमार के साथी नवल कुमार मुजफ्फरपुर के निवासी हैं। नवल बताते हैं कि हम दो भाई तमिलनाडु नौकरी करने आए थे। कपड़ा फैक्ट्री में हेल्फर थे। लॉकडाउन के कारण का रोजगार छिन गया। रोजगार न होने की वजह से अपने घर वापस जाना चाहते थे लेकिन सबसे बड़ी समस्या पैसे की थी बचे पैसे लॉकडाउन में खर्च हो गए।
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'प्रशासन की ओर से किसी भी प्रकार की सहायता नहीं की गई। तब सभी लोगों ने मिलकर खुद से व्यवस्था किया। घर जाने के लिए सभी साथियों ने पैसे मिलाकर बस बुक की और घर जाने के लिए सभी ने अपने घरों से पैसे मंगवाए। घर जाने के लिए घर से 20,000 हजार रुपए कर्ज लेकर अपने खाते में मंगवाए और 16,000 बस का किराया दिया। बचे हुए पैसे से रास्ते में भोजन पानी का जुगाड़ किया। कर्ज लिए हुए पैसे अब कैसे चुकाएंगे इसका कोई उपाय नजर नहीं आ रहा।'
यह कहानी किसी एक मजदूर की नहीं है, बल्कि कई मजदूर जो दूसरे राज्यों में फंसे हुए हैं, उन सभी का लगभग यही हाल है। ना जाने कितनी मां, बहन, पत्नी अपने बच्चे, पति व भाई को घर वापस लाने के लिए गहने बेचकर, कर्ज लेकर, जमीन गिरवी रखकर पैसे दिए होंगे।