आजमगढ़ में बाढ़ से हालात हुए भयावह, तीन गांवों में अब तक ढह चुके हैं 56 मकान
इतने भयावह हालातों के बावजूद प्रशासन की भूमिका मात्र बाढ़ वाले कुछ इलाकों से लोगों को निकालने तक ही है सीमित, गांवों में जलजमाव के संकट को समझने और भविष्य में इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए किसी स्तर पर शासन-प्रशासन की तरफ से नहीं उठाया जा रहा कोई कदम...
आज़मगढ़, जनज्वार। बारिश कम होने के बावजूद आज़मगढ़ में बाढ़ की स्थिति गंभीर बनी हुई है। रिहाई मंच के बाढ़ प्रभावित इलाकों में दौरे के बाद सामने आई वास्तविकता भयावह दृश्य प्रस्तुत करती है। आजमगढ़ के सगड़ी और लाटघाट क्षेत्र में स्थिति बहुत ज्यादा भयावह और खराब बनी हुई है।
रिहाई मंच के बाकेलाल यादव, जोगिंदर प्रधान, टाइगर यादव, गोलू यादव ने सगड़ी तहसील क्षेत्र के नरईपुर, लाड़ और लूचुई गांवों का दौरा किया। केवल इन्हीं तीन गांवों में बारिश और जलजमाव के कारण 50 से अधिक मकान अब तक गिर चुके हैं।
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हरैया गांव में मकान गिरने से दो लोग गंभीर रूप घायल हो गए। क्षेत्र के लगभग सभी गांवों में पानी भर गया है, रास्ते पानी में डूबे हुए हैं। फसले पानी में डूबी हुई हैं। पेड़ों के गिरने से बिजली के तार टूट गए हैं, जिसके कारण पिछले तीन दिनों से बिजली की आपूर्ति बाधित है। बेघर हो चुके ग्रामीणों को अभी तक किसी प्रकार की सरकारी मदद नहीं मिली है। जिला प्रशासन ने भी अभी तक कोई सुध नहीं ली और न ही विद्युत विभाग ने आपूर्ति बहाल करने के लिए कोई कदम उठाया है।
सिराजपुर गांव जाने के लिए तमसा नदी पर बना पुल बह गया है। गांव के लोग बाढ़ के बीच गांव में ही फंसकर रह गए हैं। घरों में पानी भर चुका है। ग्रामीणों को गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है। वहां से तत्काल फंसे हुए लोगों को निकालने की ज़रूरत है।
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कस्बा फूलपुर में नदी किनारे स्थित कई घरों में पानी भर गया है। दो बुज़ुर्ग दम्पत्ति और एक 22 वर्षीय नौजवान को स्थानीय तैराक शिल्पी की मदद से किसी तरह बाहर निकाला गया। यहां प्रशासन की मदद से घरों को खाली करवाकर कर लोगों को अस्थाई रूप से धर्मशाला में पनाह दी गई है।
इंसाफ अभियान के विनोद यादव कहते हैं, आज़मगढ़ शहर की कई कॉलोनियों में पानी भर जाने के कारण स्थानीय लोगों को मकान के ऊपरी भाग या अन्यत्र शरण लेनी पड़ी है। मेंहनगर क्षेत्र के कई इलाकों में बाढ़ और जलजमाव के कारण घरों में पानी भर जाने के कारण अनाज व खाद्य सामग्री भीग गई है। छप्पर वाले घरों में लोग अपना सामान सुरक्षित रख पाने असमर्थ हैं। खाना बनाने और खाने की स्थिति नहीं रह गई है।
कई क्षेत्रों में धान की फसल का पहले बारिश की कमी से बुरा हाल था। अब फसलें बाढ़ के पानी में डूबकर बर्बाद हो रही हैं। ग्रामीणों को बहुत विकट स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। जान—माल और खाने तक के लाले पड़ रहे हैं।
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मगर इतने भयावह हालातों के बावजूद प्रशासन की भूमिका मात्र बाढ़ वाले कुछ इलाकों से लोगों को निकालने तक ही सीमित है। गांवों में जलजमाव के संकट को समझने और भविष्य में इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए किसी स्तर पर शासन-प्रशासन की तरफ से कोई कदम नहीं उठाया जा रहा।
बाढ़ का पानी कम होने के बाद कई तरह की बीमारियों की आशंका होती है। खासकर जलजमाव के कारण पानी के दूषित होने से उत्पन्न होने वाली बीमारियों से निपटने के लिए शासन और प्रशासन को विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है।
ज़रूरत इस बात की भी है कि बाढ़ से किसानों को होने वाले नुकसान का सही आकलन कर मुआवज़े के बारे में भी प्रशासन उचित कदम उठाए।