लल्लन मियां के वालिद साहब बताशे का कारोबार करते थे। उसके बाद उनके लल्लन मियां के बच्चों इनायत हुसैन,वली मुहम्मद और नूर मुहम्मद ने यही कारोबार किया। अब उनके पोते गुलाम वारिश हसन भी इसी कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं...
रिश्तों की मिठास के कारोबार का जायजा लेती संजय रावत की रिपोर्ट
जनज्वार, हल्द्वानी। मीडिया हर प्लेटफॉर्म में जहां हम रोज ढ़ेरों खबरें अलगाव, कट्टरपंथ,हिंसा और गैरबराबरी की देख हैरान परेशान होते हैं, वहां ये खबर सुकुन देने वाली लगती है । चलिए आज हम आपको 'लल्लन मियां' के परिवार और कारोबार से रु-ब-रु करवाते हैं । जिनके परिवार के बच्चों ने सज़दा सीखने की उम्र से पहले ही हर प्रशाद में शामिल 'बताशे' बनते देखे और उसी कारोबार को पुश्त दर पुश्त आगे बढ़ाया ।
हल्द्वानी बनभूलपुरा इलाके के लाईन नम्बर - 2,आज़ाद नगर में लल्लन मियां अपने वालिद साहब के समय से बताशे बनाने का कारोबार करते चले आ रहे हैं । इस समय उनकी उम्र 117 वर्ष है । वो बताते हैं कि मैंने आंख खुलते ही बताशे और दीपावली में खिलोने बनने के काम को देखा, जब ये भी नहीं पता था कि अल्लाह, ईश्वर और दूसरे मज़हबों से हमारा वजूद जुड़ा है । वालिद साहब यही कारोबार करते थे तो उनके बाद मैंने फिर मेरे बच्चों इनायत हुसैन,वली मुहम्मद और नूर मुहम्मद ने यही कारोबार किया । अब मेरे पोते गुलाम वारिश हसन भी इसी कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं।
मज़हबी सियासत के सवाल पर उनके बेटे इनायत हुसैन का कहना था कि ख़ुशकिस्मती से हम उत्तराखंडी हैं और हमारा कुमाउं फिरकापरस्ती (साम्प्रदायिकता) से कोसों दूर हैं। ईश्वर अल्लाह ने जिन्हें जेहन बक्शा है उन्हें उलजुलूल ख्याल नहीं आते हैं।
दीपावली के मौके पर कुमाऊँ भर के हर घर में लक्ष्मी पूजन पर खील के साथ रखे जाने वाले खिलौनों और बताशों में लल्लन मियाँ के पुश्तों की इतिहास छुपा है । रोज कुन्तलों - बताशे बनाने के लिए जिला नैनीताल ही नहीं बल्कि पूरे कुमाउं से व्यापारी लल्लन मियाँ को चीनी दे कर खिलौने और बताशे बनाने का ऑडर देते है और लल्लन मियाँ और उनके कारिंदे 14 घंटे काम कर करीब 5 कुंतल माल बना सारे ऑडर निपटाते हैं। ये सिलसिला दीपावली से 2 महीने पहले ही शुरू हो जाता है पर बताशों का काम हर समय ही रहता है खासकर त्यौहारों के मौकों पर।
लक्ष्मी पूजन में खिलौनों को आकार देने के सवाल पर वो मुस्कुरा कर बोलते हैं कि ये कारीगरी अपने बस की नहीं, इसके सांचे हम बरेली से खरीद कर लाते हैं उसके बाद का काम हमारा ठैरा । मज़हबी सियासत के सवाल पर उनके बेटे इनायत हुसैन का कहना था कि ख़ुशकिस्मती से हम उत्तराखंडी हैं और हमारा कुमाउं फिरकापरस्ती (साम्प्रदायिकता) से कोसों दूर हैं। ईश्वर अल्लाह ने जिन्हें जेहन बक्शा है उन्हें उलजुलूल ख्याल नहीं आते हैं।
कितनी अजीब बात है कि जिस देश में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद को लेकर सियासत जोरों पर है उसी देश के मंदिरों में चढ़ावे के लिए फूलों की खेती भी मुसलमान करते आए है और प्रशाद के लिए बताशे भी मुसलमान बनाते हैं । ये बात कौमी एकता की मिसाल तो पेश करते ही हैं और ये भी साबित करते हैं कि दोनों सांस्कृतिक अस्तित्व एक दूसरे से कैसे जुड़ा है ।