पैसे खत्म होने पर लखनऊ पीजीआई के डॉक्टरों ने कर दिया गंभीर रूप से ​बीमार बच्ची को वार्ड से बाहर, 1 घंटे बाद हो गई मौत

Update: 2019-09-13 08:50 GMT

प्रतीकात्मक फोटो

मुस्कान के परिजनों का कहना है लगभग 22 लाख रुपये खर्च होने के बाद भी डॉक्टरों ने मुस्कान का बोन मैरो नहीं किया था ट्रांसप्लांट, 6 सितंबर को डॉक्टरों ने दोबारा मुस्कान के बोन मेरो ट्रांसप्लांट के लिए बनाकर दिया था 15 लाख रुपये का इस्टीमेट...

जनज्वार। डॉक्टरों की संवेदनहीनता और लापरवाही से होने वाली मौतों की खबरें आये दिन मीडिया में छाई रहती हैं। कहीं कोई नामी अस्पताल मरीज की लाश का तक सौदा करता नजर आता है, तो कभी कोई डॉक्टर हाइड्रोसिल का आपरेशन करने के बजाय मरीज का पैर काट देता है। कहीं पथरी के आपरेशन का बिल 55 लाख वसूला जाता है और उसके बाद भी मरीज नहीं बचता, तो कहीं जिंदा बच्चे को डॉक्टरों द्वारा मरा हुआ कहकर कब्रिस्तान पहुंचा दिया जाता है।

ब ऐसा ही एक संवेदनहीनता की पराकाष्ठा को छूता मामला लखनऊ पीजीआई में सामने आया है। खबरों के मुताबिक पैसा खत्म होने के बाद यहां के डॉक्टरों ने 12 सितंबर की आधी रात को एक सीरियस बच्ची को डिस्चार्ज कर दिया, जिसके एक घंटे बाद बच्ची की मौत हो गयी।

बेशर्मी की हद तो यह कि बच्ची की मौत के बाद पीजीआई निदेशक प्रो. राकेश कपूर कहते हैं, अगर मरीज के अकाउंट में पैसा नहीं होगा तो उसका इलाज नहीं हो सकता। यहां फ्री में इलाज नहीं होता। रोजाना कई शिकायतें आती हैं कि मरीज को इलाज नहीं मिलता। हम क्या करें?'

नबीटी में प्रकाशित खबर के मुताबिक 13 साल की बच्ची मुस्कान अप्लास्टिक एनीमिया से पीड़ित थी। जैसे ही उसके इलाज का पैसा खत्म हुआ, लखनऊ स्थित एसजीपीजीआई ने 12 सितंबर की रात लगभग 12 बजे मुस्कान को वॉर्ड से बाहर निकाल दिया, जिसके 1 घंटे बाद ही उसकी मौत भी हो गयी।

मुस्कान के परिजन कहते हैं, हमारी बच्ची जिस असाध्य रोग से जूझ रही थी, उसके बजट का पैसा नहीं मिलने के कारण पीजीआई प्रशासन ने उसका इलाज रोक दिया था। मुस्कान के चचेरे भाई रोहित ने इस मामले की लिखित शिकायत मुख्यमंत्री और पीजीआई निदेशक से की है और इसे ट्वीट भी किया।

गौरतलब है कि बलिया निवासी 13 साल की मुस्कान असाध्य अप्लास्टिक एनीमिया रोग से पीड़ित थी। लाखों में से किसी एक को होने वाले इस रोग में उचित मात्रा में रक्त कोशिकाएं नहीं बनती हैं। इसी के इलाज के लिए पांच महीने पहले मुस्कान को पीजीआई के हीमेटॉलजी विभाग में भर्ती करया गया था। असाध्य रोगों के इलाज के लिए सरकार की ओर से दिए जाने वाले पैसे से मुस्कान का इलाज हो रहा था। मुस्कान के चचेरे भाई रोहित ने मीडिया को बताया कि डॉक्टरों ने बोन मैरो ट्रांसप्लांट का खर्च बनाकर दिया था। सरकार की तरफ से असाध्य रोग के बजट से 11 लाख रुपये दिए गए थे, जिससे मुस्कान का बोन मैरो ट्रांसप्लांट तो नहीं हुआ, पर यह पैसा उसके अब तक के इलाज में खर्च हो गया।

ब मुस्कान के इलाज के मद में मिला पैसा खत्म हो गया तो 10 सितंबर को मुस्कान के परिजन फिर से पेशेंट वेलफेयर सोसाइटी गये, वहां उन्हें बताया गया कि असाध्य रोग बजट खत्म हो गया है, इसलिए मरीज को दोबारा पैसा नहीं मिल पाएगा। इसके बाद जब मुस्कान का चचेरा भाई रोहित हीमेटॉलजी विभाग पहुंचा तो डॉक्टरों ने मुस्कान को डिस्चार्ज कर दिया।

बुरी हालत से जूझ रही मुस्कान की हालत देखकर परिजनों ने डॉक्टरों से मिन्नतें कीं, मगर उनका दिल नहीं पसीजा। वॉर्ड से डॉक्टरों द्वारा मुस्कान को निकाले जाने के मात्र एक घंटे बाद मुस्कान की मौत हो गई।

नबीटी में प्रकाशित खबर के मुताबिक मुस्कान के चचेरे भाई रोहित ने बताया कि नवंबर 2018 में मुस्कान पीजीआई आई थी। डॉक्टरों ने बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए 15 लाख रुपये का एस्टीमेट बताया था। उसके अलावा मुस्कान को तीन लाख प्रधानमंत्री कोष और 5 लाख मुख्यमंत्री कोष से मदद मिली थी। यही नहीं 11 लाख रुपये असाध्य रोग बजट से भी मिले। इसके अलावा कुछ पैसे पीड़िता के पिता ने रिश्तेदारों से उधार लेकर इलाज के लिए दिए। यानी लगभग 22 लाख रुपये खर्च होने के बाद भी डॉक्टरों ने मुस्कान का बोन मैरो ट्रांसप्लांट नहीं किया। 6 सितंबर को डॉक्टरों ने दोबारा मुस्कान के बोन मेरो ट्रांसप्लांट के लिनए 15 लाख रुपये का इस्टीमेट बनाकर दिया था।

हीं हीमेटॉलजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ संजीव ने मीडिया से कहा कि मुस्कान को अप्लास्टिक एनीमिया था। पांच महीन से उसका इलाज चल रहा था, लेकिन उसकी तबीयत में सुधार नहीं lहो रहा था। बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए भी तैयारी की गई थी, मगर उसे लगातार बुखार, लिवर में अप्सेस, फंगल इंफेक्शन की दिक्कत रहती थी। मरीज के अकाउंट में पैसा खत्म हो गया था। मुस्कान के पिता को हमने इसकी जानकारी देने के लिए कई बार बुलाया, लेकिन वे नहीं आए।

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