वायरस से पीड़ित मृतक का अंतिम संस्कार करने से बच रहे हैं परिजन, अंतिम अरदास के लिए भी नहीं आता कोई, फोन पर ही व्यक्त कर रहे संवेदनाएं, अंतिम संस्कार में नहीं आ रहा कोई...
जनज्वार ब्यूरो, चंडीगढ़। कोरोना वायरस ने जिंदगी को जहां लॉकडाउन कर दिया है, वहीं मौत के मायने भी बदल दिए हैं। अब मौत होने के बाद कोई संवेदना प्रकट करने भी नहीं आ रहा है। यदि मौत की वजह संक्रमण है तो परिजन भी संस्कार करने से बच रहे हैं।
पंजाब में इस तरह के कई उदाहरण सामने आ गये हैं जहां परिजनों ने संस्कार करने से ही मना कर दिया है। पांच अप्रैल को लुधियाना में एक महिला की मौत संक्रमण से हो गयी थी। परिजनों ने उसका शव लेने से ही इंकार कर दिया है। बाद में प्रशासन की ओर से ही अंतिम संस्कार कराया गया।
संबंधित खबर : क्वारंटीन किए गए 10 लोगों ने दलित रसोइया के हाथ से बना खाना खाने से किया इनकार, केस दर्ज
एक अन्य मामले में क्योंकि पूरा परिवार ही क्वारंटीन था, इसलिए राजस्व विभाग ने अंतिम संस्कार कराया। स्वर्ण मंदिर के पूर्व हजूरी रागी निर्मल सिंह की मौत के बाद तो उनके अंतिम संस्कार गांव के शमशानघाट में कराने से ही मना कर दिया गया था। बाद में एक किसान ने अपनी जमीन पर उनका अंतिम संस्कार कराया।
पीजीआई के पूर्व डाक्टर अश्वनी शर्मा ने बताया कि यह समझदारी है। इसका गलत मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि थोड़ी सी लापरवाही से संक्रमण हो सकता है। इसलिए दूरी बेहद जरूरी है। उन्होंने बताया कि लोग समझदार हो रहे है। ऐसे मौके पर इस तरह की समझदारी की उम्मीद की जानी चाहिए। यह वायरस पर रोक लगाने के लिए जरूरी है।
हालांकि उन्होंने कहा कि अंतिम संस्कार किसी शमशानघाट में रोकना सही नहीं है। इससे बचना चाहिए। उन्होंने बताया कि क्योंकि अधिकारियों की देखरेख में संस्कार के वक्त सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाता है। जबकि यदि परिजन अंतिम संस्कार करते हैं तो हो सकता है कोई चूक हो जाये। इसलिए भी यदि परिजन यह निर्णय लें रहे हैं तो यह सही है। यह वक्त भावनाओं का नहीं है, बल्कि सुरक्षित रहने का है।
संबंधित खबर : पंजाब में लॉकडाउन के कारण भूख से बिलबिलाते लोग छतों पर कर रहे प्रदर्शन
जानकारों का यह भी कहना है कि यह जिंदगी की जंग है। इसे तभी जीता जा सकता है जब हम सभी वायरस से सुरक्षित रहेंगे। और सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है, दूरी बनाये रखना। भीड़ जमा न की जाये। भीड़ करने से बचा जाये। भीड़ में जाने से भी बचा जाना चाहिए।