मोदी को 2002 दंगों में संलिप्त बताने वाले आईपीएस संजीव भट्ट को उम्रकैद

Update: 2019-06-20 15:18 GMT

गुजरात काडर के बर्ख़ास्त आईपीएस अफ़सर संजीव भट्ट वहीं अधिकारी हैं जिन्होंने 2002 में हुए गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल खड़े करते हुए कहा था कि दंगों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल पर उन्हें कतई भरोसा नहीं है....

जनज्वार। 2002 के गुजरात दंगे में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल उठाने वाले बर्ख़ास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को उम्रकैद की सजा सुना दी गई है। उन्हें यह सजा जामनगर की स्थानीय अदालत ने तकरीबन 30 साल पुराने एक मामले में सुनाई गई है।

सोशल मीडिया पर काफ़ी सक्रिय रहने वाले संजीव भट्ट अक्सर भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री मोदी के बारे में तल्ख़ टिप्पणियां करते आए हैं। जिस मामले में उन्हें स्थानीय जामनगर अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई है उसमें 30 साल पहले जामनगर में भारत बंद के दौरान हुई हिंसा के बाद पुलिस हिरासत में एक व्यक्ति की मौत होने पर संजीव सहित उनके कई साथियों के खिलाफ हिरासत में मौत का मुकदमा दर्ज किया गया था।

उस दौरान राज्य के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे, जिन्होंने उन पर मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं दी थी। लेकिन 2011 में जब संजीव ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी के खिलाफ 2002 के दंगे से जुड़े मामले में शामिल होने का आरोप लगाया और उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर किया, उसके बाद से ही संजीव भट्ट के मुसीबतें शुरू हो गई और अंततः एक अन्य मामले में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया।

संजीव भट्ट को मिली उम्रकैद के बाद बीबीसी को दिये बयान में उनकी पत्नी श्वेता भट्ट ने कहा, "हम मुकदमे की सुनवाई से संतुष्ट नहीं हैं। मेरे पति एक ईमानदार अफ़सर थे और उन्हें अपनी ड्यूटी करने के लिए सज़ा दी जा रही है। हम इस फ़ैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देंगे।"

गौरतलब है कि लगभग 8 महीने से जेल में बंद संजीव भट्ट को नार्कोटिक्स के एक मामले में पैसा उगाही के आरोप में पिछले साल सितम्बर में गिरफ़्तार किया गया था। गुजरात काडर के बर्ख़ास्त आईपीएस अफ़सर संजीव भट्ट वहीं अधिकारी हैं जिन्होंने 2002 में हुए गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल खड़े करते हुए कहा था कि दंगों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) पर उन्हें कतई भरोसा नहीं है।

इतना ही नहीं नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ काफ़ी मुखर रहे संजीव भट्ट ने मार्च 2011 में कोर्ट में हलफ़नामा दायर कर तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे मोदी पर गंभीर आरोप लगाए थे।

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संजीव भट्ट ने कहा था, गोधरा कांड के बाद 27 फरवरी, 2002 की शाम मुख्यमंत्री के आवास पर हुई एक सुरक्षा बैठक में वे मौजूद थे। इसमें मोदी ने कथित तौर पर पुलिस अधिकारियों से कहा था कि हिंदुओं को अपना ग़ुस्सा उतारने का मौका दिया जाना चाहिए।

वहीं मोदी सरकार ने अपनी सफाई पेश करते हुए कहा था कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि संजीव भट्ट इस बैठक में मौजूद रहे थे। संजीव भट्ट ने जब यह हलफनामा दायर किया उसके बाद से उनके और मोदी सरकार के संबंधों में और ज्यादा तल्खी आ गई और उन्हें खासतौर पर निशाने पर लिया जाने लगा। इस तरह के आरोपी संजीव भट्ट की पत्नी भी लगा चुकी हैं।

हलफनामा दायर करने के बाद ही संजीव भट्ट को बगैर अनुमति के ड्यूटी से अनुपस्थित रहने और सरकारी वाहन का दुरुपयोग करने के आरोप में 2011 में निलंबित कर दिया गया था। तब संजीव भट्ट को गिरफ़्तार भी किया गया था। संजीव भट्ट का कहना है कि उन्हें इस झूठे मुकदमे में फंसाया गया है। गिरफ्तारी के दौरान संजीव भट्ट के परिजनों ने आला पुलिस अधिकारियों को पत्र लिखकर आशंका जताई थी कि संजीव भट्ट की जान को खतरा है उन्हें कड़ी सुरक्षा मुहैया करायी जाये।

संजीव भट्ट की गिरफ़्तारी उनके मातहत काम कर चुके एक कॉन्सटेबल केडी पंत की तरफ से दर्ज की गई शिकायत पर की गई थी, जिसमें उसने संजीव भट्ट पर आरोप लगाए थे कि उन्होंने दबाव डालकर मोदी के ख़िलाफ़ हलफ़नामा दायर करवाया था।

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वहीं संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट ने पिछले साल सितंबर में उनकी गिरफ्तारी के बाद मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था, 'संजीव के ख़िलाफ़ घाटलोदिया पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया और इसके बाद उन्हें क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया, जिसे एनकाउंटर विशेषज्ञ माना जाता है, मैं उन पर भरोसा नहीं कर सकती। मुझे उनकी जान की चिंता है। 35-40 पुलिसकर्मियों ने बिना किसी सूचना के हमारे घर की दो घंटों से अधिक समय तलाशी लेते रहे। वे संजीव को अपने साथ ले गए और तब से उनसे हमारा कोई संपर्क नहीं है।'

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