बच्चों की संख्या और पढ़ाई की शर्त के कारण उत्तराखंड के इन 3 गांवों में ग्राम प्रधानी के लिए नहीं मिले दलित कैंडिडेट

Update: 2019-10-04 12:10 GMT

अल्मोड़ा के 3 गांवों में इसलिए नहीं होगा प्रधानी का चुनाव क्योंकि आरक्षित सीटों के लिए नहींं हैं सरकार द्वारा तय मानकों के मुताबिक योग्य दलित उम्मीदवार....

अल्मोड़ा से विमला ​की रिपोर्ट

जनज्वार। उत्तराखंड में 5 अक्टूबर को त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के पहले चरण के चुनाव के लिए वोट डाले जायेंगे। पहले चरण के चुनाव में अल्मोड़ा के धौलादेवी ब्लॉक में आने वाले तीन गांव भी शामिल हैं, जहां इस बार दलितों के लिए सीट आरक्षित है, मगर वहां चुनाव नहीं हो रहा, कारण किसी सरकार योग्य दलित उम्मीदवार का न मिल पाना।

गौरतलब है कि धौलादेवी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले आरासलपण, रोल और मलाण गांवों में भी कल 5 अक्टूबर को त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए वोटिंग की जायेगी, मगर यहां ग्राम प्रधान का चुनाव नहीं होगा। आरक्षित सीट के लिए दलित उम्मीदवार न होने के कारण इन तीनों गांवों में ग्राम प्रधान नहीं चुना जायेगा।

रासलपण, रोल और मलाण तीनों गांव सवर्ण बाहुल्य आबादी वाले हैं। इन तीनों गांवों में से प्रत्येक में सिर्फ एक-एक दलित परिवार रहता है, जोकि आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक रूप से भी काफी पिछड़े हुए हैं। सरकार ने पंचायत राज एक्ट में संसोधन कर ग्राम प्रधान और अन्य पदों पर चुनाव लड़ने के लिए दो से अधिक बच्चे न होने और हाईस्कूल पास होना अनिवार्य कर दिया है। आरक्षित सीटों में दलितों और महिलाओं के लिए यह अर्हता 8वीं पास है। इन अर्हताओं को इन तीन गांवों में रहने वाले मात्र एक-एक दलित परिवार पूरी नहीं करते, इसलिए प्रधानी के पद से पहले ही उनकी छंटनी हो गयी है।

त्तराखंड में 2016 के पंचायती राज एक्ट में जून 2019 में संशोधन कर नया प्रावधान लागू किया गया है कि दो से अधिक बच्चों वाले लोग पंचायत चुनाव नहीं लड़ पायेंगे। इसके साथ साथ उम्मीदवार की शैक्षणिक अर्हतायें के लिए भी प्रावधान तय किये गये हैं। एक्ट में यह भी जोड़ा गया है कि सहकारी समितियों के सदस्य चुनाव नहीं लड़ पायेंगे। हालांकि हाईकोर्ट ने सरकार के इस फैसले को रद्द कर दिया है, जिस पर उत्तराखंड सरकार ने कहा यह राष्ट्र हित में नहीं है। सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अब तक कोई फैसला नहीं दिया है।

ल्मोड़ा के धौलादेवी विकासखंड में आने वाला मलाण गांव धौलादेवी से लगभग 30 किलोमीटर दूर है। इस ग्रामसभा में 50-60 परिवार आते हैं। इन परिवारों में से सिर्फ एक परिवार दलित है, बाकी सवर्ण जाति से ताल्लुक रखते हैं। यह परिवार जिसे कि इस बार प्रधानी के पद का उम्मीदवार होना चाहिए था, वह इससे दूर है क्योंकि वह सरकार के शैक्षणिक योग्यता के पारामीटर पर खरा नहीं उतरता।

धौलादेवी ब्लॉक के ही आरासलपण और रोल गांव की भी कमोबेश यही स्थिति है। इन दोनों गांवों में भी सिर्फ एक-एक दलित परिवार निवास करते हैं, जो कि सरकार की तरफ से तय की गयी शैक्षणिक योग्यता पर खरे नहीं उतरते। यानी इन दोनों परिवारों का एक भी सदस्य हाईस्कूल पास नहीं है। रोल गांव में दलित परिवार के एक लड़के ने दसवीं पास की है, मगर वह अभी 17 साल का है, यानी उसकी उम्र इस चुनाव के लिए बाधा है।

स मसले पर सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता मुनीष कुमार कहते हैं, 'उत्तराखंड की सरकार यहाँ की जल, जंगल, जमीन, प्राकृतिक संसाधनों को बाहर से आये पूंजीपतियों को बेच सकती है। शिक्षा के नाम पर ऐसे स्कूलों का निर्माण करा सकती है, जिन स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना यहाँ के स्थानीय लोगों की औकात नहीं है, उनमें बाहर से आये पूंजीपतियों के बच्चे पढ़ते हैं। मगर यहां के जो मूल निवासी हैं, वह चुनाव तक इसलिए नहीं लड़ सकते, क्योंकि उनके लिए शिक्षा का पारामीटर तय कर दिया गया है। शैक्षणिक योग्यता तय करनी ही है तो एमपी, एमएलए और मंत्रियों समेत सत्ता में बैठे सभी सत्ताधीशों के लिए तय की जाये। क्या सत्ता में बैठे सभी लोग शिक्षित हैं।

मुनीष आगे कहते हैं, 'सरकार सभी नागरिकों को शिक्षा मुहैया कराने में विफल रही है तो खामियाजा जनता को क्यों भुगतना चाहिए। एक तरफ सरकार अनपढ़ लोगों को अयोग्य मानकर उन्हें चुनाव लड़ने से रोक रही है, तो दूसरी ओर आबादी के बहुत बड़े हिस्से को अनपढ़ बनाये रखने के लिए एक लाख स्कूल भी बन्द करने जा रही है।'

बिना ग्राम प्रधान के गांव पर ग्रामीणों का कहना है, 5 अक्टूबर को ग्राम पंचायत का चुनाव संपन्न होना है। अभी तक हमारे गांवों से कोई उम्मीदवार नहीं है। जब गांव में मुखिया/ग्राम प्रधान ही नहीं होगा तो गांव की व्यवस्था कैसे चलेगी। अगले चुनाव कब होंगे, इस बारे में हम लोगों को कुछ पता नहीं है।

पनी शैक्षणिक योग्यता के कारण ग्राम प्रधानी की उम्मीदवारी से बाहर कर दिये जाने पर दलित कहते हैं, जब नेता एमपी-एमएलए का वोट मांगने आते हैं, तब हमारी शिक्षा का कोई मूल्य क्यों नहीं होता। हमारे अंगूठे के निशान से ही ये तमाम नेता सत्ता तक पहुंचे हैं और आज हमें अशिक्षित घोषित कर दिया गया है।

लित परिवार कह रहे हैं, कभी सरकार के जिम्मेदार नेताओं यहां तक कि प्रशासनिक अधिकारियों तक ने सुदूर पहाड़ी गांवों में आकर कोई संज्ञान नहीं लिया, आखिर वह शिक्षा के आधार पर जनसंख्या को आधार बनाकर यहां के मूल निवासियों को पंचायत में उम्मीदवारी करने से रोक सकती है। यह सरकार देश और जनता का हित न देखकर केवल अपना हित देख रही है।

भारत में पहले से ही पंचायत और ग्रामसभा का विशेष महत्व रहा है, मगर आज उत्तराखंड सरकार के एक जनविरोधी फैसले की वजह से गांव में पंचायत चुनाव सम्पन्न नहीं हो पा रहे हैं, गांव प्रधानविहीन रहेंगे।

3 गांवों में सरकार द्वारा तय मापदंड के मुताबिक दलितों का चुनाव में हिस्सेदारी न कर पाने और तीनों गांवों को ग्राम प्रधान न मिल पाने पर उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता पीसी तिवारी कहते हैं, 'त्रिवेन्द्र सरकार द्वारा बनाया गया यह कानून बिल्कुल गलत है। यह लोगों को उनके चुनाव लड़ने के मौलिक अधिकार से वंचित करता है। गांव के पूरे चुनाव प्रणाली में इस नियम ने अराजकता फैला दी है। शिक्षा का स्तर अगर चुनाव की शर्त बननी ही है तो वह प्रणाली ऊपर से शुरू की जाये।'

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