हाईकोर्ट की फटकार प्राकृतिक संसाधनों को बिल्डरों के हाथ सौंपने पर क्यों तुली है हरियाणा सरकार
भूमि कम नहीं हुई है और न ही किसी को गलत तरीके से भूमि दी गई है। जो भूमि का आंकड़ा है वह सेटेलाइट के आधार पर तैयार किया गया है। 1992 में 1 पिक्सल में 24 मीटर भूमि दिखाई देती थी...
जनज्वार। एनसीआर में नेचुरल कंजरवेशन जोन (एनसीजेड) नोटिफाई करने में देरी पर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को फटकार लगाई है। हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकार प्राकृतिक संसाधनों को बिल्डरों के हाथ सौंपने पर क्यों तुली है? कोर्ट ने कहा है कि एनसीजेड को नोटिफाई करने में देरी इसलिए की जा रही है ताकि कुछ खास लोगों को कॉलोनियां काटने का मौका दिया जा सके।
हाईकोर्ट में केस की सुनवाई आरंभ होते ही याची चंद्रशेखर मिश्रा की ओर से हाईकोर्ट को बताया गया कि 1992 में एनसीजेड के लिए भूमि 1 लाख्र 22 हजार 113 हेक्टेयर थी जो 2012 में घटकर 90 हजार 402 हेक्टेयर हो गई और वर्तमान में अब केवल 64 हजार 384 हेक्टेयर रह गई है। याची ने कहा कि ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि सीएलयू की अनुमति दे दी गई थी और लगातार निर्माण कार्य चल रहा है।
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इस पर हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि सीएलयू पर रोक के आदेश इस आश्वासन के बाद हटाई गई थी कि बिना यह सुनिश्चित करे कि भूमि एनसीजेड में तो नहीं आ रही सीएलयू नहीं दिया जाएगा। उस समय कहा गया था कि जल्द ही एनसीजेड नोटिफाई किया जाएगा, लेकिन आज तक नहीं किया गया है।
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इस पर हाईकोर्ट को बताया गया कि भूमि कम नहीं हुई है और न ही किसी को गलत तरीके से भूमि दी गई है। जो भूमि का आंकड़ा है वह सेटेलाइट के आधार पर तैयार किया गया है। 1992 में 1 पिक्सल में 24 मीटर भूमि दिखाई देती थी तो 2012 में मीटर और अब तकनीक के एडवांस होने के चलते एक पिक्सल में 25 सेंटीमीटर भूमि दिखाई देती है। हालांकि अभी धरातल की वास्तविक स्थिति जानने के लिए सर्वे किया जा रहा है। कोर्ट ने इस पर फटकार लगाते हुए कहा कि अगर इस प्रकार देरी जारी रहेगी तो सभी संसाधन समाप्त हो जाएंगे।
हाईकोर्ट में सरकार द्वारा सौंपे गए हलफनामे पर भी सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि हर बार सरकार का हलफनामा एक जैसा होता है। ऐसा लगता है कि कॉपी पेस्ट हुआ है और धरातल पर सरकार ने कोई काम नहीं किया है।