बिजनौर प्रशासन को हाईकोर्ट से बड़ा झटका, CAA हिंसा में रिकवरी नोटिस पर लगाई रोक
नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामले में बिजनौर प्रशासन को हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। बिजनौर एडीएम की ओर से प्रदर्शनकारियों को जारी रिकवरी नोटिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है...
जेपी सिंह की रिपोर्ट
जनज्वार। नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामले में बिजनौर प्रशासन को हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। बिजनौर एडीएम की ओर से प्रदर्शनकारियों को जारी रिकवरी नोटिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। एडीएम ने बीती 24 फरवरी को यह नोटिस जारी किया था। लेकिन एक अन्य मामले में सीएए के विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा को लेकर 4 पत्रकारों पर दर्ज केस को निरस्त करने से हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया है। याचिका में कहा गया था कि,पुलिस ने याचियों फर्जी तरीके से फंसाया है।
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जावेद आफताब और तीन अन्य याचियों द्वारा दायर की गई याचिका पर रविवार को सुनवाई करते हुए जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस दीपक वर्मा की खंडपीठ ने रिकवरी नोटिस पर रोक लगाने का निर्देश जारी किया। कोर्ट ने याचिका पर राज्य सरकार से जवाब भी मांगा है। इससे पहले मोहम्मद फैजान के मामले में भी कोर्ट ने स्टे लगा दिया था। फैजान मामले के आधार पर ही हाई कोर्ट ने इस मामले में भी रिकवरी नोटिस पर रोक लगाई है। कोर्ट ने कहा है कि मामले पर अगली सुनवाई 20 अप्रैल को होगी।
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दरअसल नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हिंसा में शामिल लोगों के साथ प्रदेश सरकार सख्ती पर उतारू है। इस मद्देनजर लखनऊ में जिला प्रशासन ने तोड़फोड़ के दोषियों के नाम, फोटो और पते के साथ बड़े-बड़े होर्डिंग शहर के चौराहों पर लगवा दिए हैं। होर्डिंग के मुताबिक आरोप सिद्ध होने के बाद निर्धारित तिथि तक अगर दोषी पाए गए लोगों ने जुर्माना जमा नहीं किया तो उनकी संपत्ति कुर्क की जाएगी।
हालांकि सरकार के इस कदम को गैरकानूनी बताते हुए कांग्रेस ने कहा कि सरकार न सिर्फ लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी का मजाक बना रही है बल्कि अदालत के फैसले को खुलेआम चुनौती दे रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा कि कई अदालतों ने अपने फैसले में कहा है कि इस आंदोलन में हुई हिंसा और आगजनी में हुए संपत्ति के नुकसान के आंकलन का हक पुलिस-प्रशासन नहीं बल्कि अदालत को है। यह अदालत की अवमानना है, कोर्ट को इसका संज्ञान लेना चाहिए।
चार पत्रकारों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को निरस्त नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिजनौर में सीएए के विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा को लेकर चार पत्रकारों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को निरस्त करने से इनकार कर दिया है। यह आदेश जस्टिस मनोज मिश्र एवं जस्टिस दीपक वर्मा की खंडपीठ ने इकबाल कुरैशी एवं अन्य की याचिका खारिज करते हुए दिया है।
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कोर्ट ने कहा कि याचियों पर लगाए गए आरोप और विवेचना के दौरान उनके विरुद्ध मिले साक्ष्यों का परीक्षण मुकदमे के ट्रायल के दौरान किया जाएगा। ऐसे में इस स्थिति में एफआईआर पर हस्तक्षेप करने का कोई औचत्यि नहीं है। याचिका में कहा गया था कि, पुलिस ने याचियों फर्जी तरीके से फंसाया है। वह भी केवल इसलिए कि घटना के दौरान रिपोर्टिंग करते समय उन्होंने पुलिस अधिकारियों से सवाल पूछ लिए थे।
चारों याचियों के खिलाफ बिजनौर पुलिस ने 20 दिसंबर 2019 को नाथुर थाने में विधि-विरुद्ध जमाव, हत्या का प्रयास, भीड़ को उकसाने और हिंसा में शामिल होने आदि के आरोप में मुकदमा दर्ज किया है। याचिका में इस एफआईआर को निरस्त करने और याचियों की गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की गई थी।