दिल्ली जैसे महानगर के हेडगेवार अस्पताल में दिल के एक बेहद गंभीर हालत के मरीज के साथ बेहद अमानवीय और असंवेदनशील बर्ताव करते हुए उस मरीज को खुद बाहर के मेडिकल स्टोर से अपनी दवा लाने के लिए भेज दिया गया....
सुशील मानव की रिपोर्ट
मुन्ना भाई एमबीबीएस’ फिल्म में मुन्ना मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर से पूछता है, ‘सर यदि मरीज की हालत क्रिटिकल हो वो मर रहा तो अस्पताल पहले उसे भर्ती करके उसका इलाज करेगा या फॉर्म भरवाएगा।’ मुन्ना का ये सवाल आज तक अनुत्तरित है।
ये अनुत्तरित सवाल तबसे लेकर आज तक जाने कितनी बीमार जिंदग़ियों को लील चुका है। कल 5 अक्टूबर को एक ऐसे ही हालात में न्यूज एक्सप्रेस के पूर्व एकंर प्रोड्यूसर दीपांशु दूबे की हार्ट अटैक से मौत हो गई। उनकी उम्र 30-32 वर्ष थी। ‘न्यूज़ एक्सप्रेस’ के पूर्व एंकर दीपांशु दूबे की कल कड़कड़ड़ूमा में एक मेडिकल स्टोर पर हार्ट अटैक से मौत हो गई। वहां वो हेडगेवार अस्पताल द्वारा दवा लेने के लिए भेजे गए थे। दीपांशु के मित्र पत्रकार महेंद्र मिश्रा के मुताबिक दीपांशु को एक बार पहले भी हार्ट अटैक आ चुका था।
बता दें कि दीपांशु दूबे वो कानपुर का रहने वाले थे और दिल्ली में अकेले रहते थे। इस कठिन समय में उसके पास कोई नहीं था, अतः अपनी तबियत बिगड़ने के हालत में भी वो खुद अपनी गाड़ी चलाकर हेडगेवार अस्पताल पहुंचे थे। अस्पताल पहुंचने के बाद अस्पताल प्रशासन की जिम्मेदारी बनती थी कि मरीज को अविलंब प्रॉपर ट्रीटमेंट देते। लेकिन नहीं, राजधानी दिल्ली जैसे महानगर के हेडगेवार अस्पताल में दिल के एक बेहद गंभीर हालत के मरीज के साथ बेहद अमानवीय और असंवेदनशील बर्ताव करते हुए उस मरीज को खुद बाहर के मेडिकल स्टोर से अपनी दवा लाने के लिए भेज दिया गया।
ये बेहद संगीन मामला है कि जिस शख्स को अस्पताल पहुंचने पर तत्काल भर्ती करके उसका इलाज चालू कर दिया जाना चाहिए था, उसको अस्पताल के बाहर बाज़ार से दवा लाने के लिए भेज दिया जाता है। लोगों ने बताया कि मेडिकल स्टोर पर दीपांशु को एक और दौरा पड़ा और दीपांशु वहीं गिर पड़ा।
फिर लोगों ने सीने पर पंप करने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसे उसकी सांसों को लौटाया नहीं जा सका। हेडगेवार अस्पताल प्रशासन की ओर से घोर लापरवाही और गैर जिम्मेदाराना रवैये के चलते एक युवा पत्रकार की असमय ही मौत हो गई।
बता दें कि दीपांशु की 10 महीने पहले ही शादी हुई थी। उनका आवास कानपुर में है। ‘न्यूज एक्सप्रेस’ से नौकरी छोड़ने के बाद दीपांशु दूबे ने कुछ दिन ‘चैनल वन’ के लिए काम किया था। आजकल वो अपना एक यूट्यूब चैनल चला रहा था, जबकि 10 अक्टूबर को पत्रिका में ज्वाइन करने के लिए उसे जयपुर जाना था।
अस्पतालों में बरती जानी वाली इस अमानवीय और गैरजिम्मेदाराना रवैये की बात 9 सितंबर को सीवर में मरे विशाल के भाई अंगद ने भी उठाई थी। बता दें कि 9 सितंबर को दिल्ली के मोतीनगर में डीएलएफ कॉलोनी के सीवर में मरे पांच मजदूरों में से एक विशाल के बड़े भाई अंगद के मुताबिक उसके भाई को जब सीवर से निकाला गया तो उस वक्त उसका भाई विशाल जिंदा था और वो अपने पैरं पर चलकर एंबुलेंस में गया।
एंबुलेंस में ऑक्सीजन जैसा कोई सुविधा नहीं थी। उसे मोतीनगर के किसी अस्पताल में ले जाया गया वहां वो लगभग पौना घंटा जिंदा था। वहाँ उसने नर्स को खून दिया और तीन-चार उलटिंया के बाद उसे आरएमएल रिफर कर दिया, वहां जाने तक उसका भाई विशाल जिंदा था। एंबुलेंस उसे आरएमएल के स्ट्रेचर पर छोड़कर चली गई थी। हम लोग साथ में जाते हैं तब तो कोई सुनवाई सरकारी अस्पताल में होती नहीं है। वो तो फिर भी अकेला था। उसकी हर्टबीट बहुत धीमे धीमे आ रही थी। थोडी देर बाद उसकी मृत्यु हो गई।
क्या निजी और सरकारों अस्पतालों के इस गैरजिम्मेदाराना और अमानवीय रवैये का कोई ईलाज नहीं है हमारे समाज, सरकार और प्रशासन के पास?