उत्तराखंड का अल्मोड़ा स्थित मिशनरी का एकमात्र लेप्रोसी हॉस्पिटल होगा बंद, सामाजिक संगठन कल करेंगे प्रदर्शन

Update: 2019-09-26 13:06 GMT

कुष्ठरोगी बुजुर्ग करन कहते हैं, विस्थापन की मार बहुत बुरी होती है साहब! पहले से ही समाज की मार से पीड़ित मुझ जैसे कुष्ठ रोगियों के लिए यह हॉस्पिटल किसी जन्नत और घर से कम नहीं है, अगर यह बंद हो जायेगा तो आखिर हम कहां जायेंगे...

अल्मोड़ा से विमला की रिपोर्ट

जनज्वार। छुआछूत से भी बुरी स्थितियों से जूझते कुष्ठ रोगियों के लिए उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा में स्थित मिशनरी द्वारा संचालित एकमात्र लेप्रोसी हॉस्पिटल किसी जन्नत से कम नहीं है। घर से निकाल दिये गये और अपने रोग से जूझते जिन कुष्ठ रोगियों को समाज अपने से अलग-थलग कर देता है, वो यहां आकर अपनी नई दुनिया बनाते हैं और ठीक होने के बाद मुख्यधारा से जुड़ने के प्रयास भी।

ब यही लेप्रोसी हॉस्पिटल बंद होने जा रहा है। इसके खिलाफ क्रिश्चियन समाज के लोग कल 27 सितंबर से आंदोलन कर रैली निकालेंगे, जिसे उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी समेत तमाम कुछ अन्य सामाजिक-राजनीतिक संगठनों का समर्थन है। क्रिश्चियन समाज का कहना है कि जरूरत पड़ी तो इसके खिलाफ हम धरने पर भी बैठेंगे।

गौरतलब है कि उत्तराखंड का क्रिश्चियन मिशनरी का एकमात्र लेप्रोसी मरीजों का अस्पताल जो अल्मोड़ा के पास करबला में स्थित है, वह बंद होने जा रहा है। यह सेंटर 1836 में M.C.I. मैथोलिक चर्च आफ इण्डिया द्वारा स्थापित किया गया था, जिसका उद्देश्य शिक्षा का विस्तार करना, धर्म की स्थापना और हॉस्पिटलों का निर्माण करना था, मगर अब इसे बड़े पूंजीपतियों के हाथों बेच देने की योजना है।

त्तराखंड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष पीसी तिवारी कहते हैं, कुष्ठरोगियों का यह सेंटर किसी भी हाल में बंद नहीं होना चाहिए। हमारी पार्टी का प्रदर्शनरत किश्चियन समाज को पूरा समर्थन है।

र्ष 1836 में जब इस लेप्रोसी हॉस्पिटल की स्थापना की गयी थी, तब अल्मोड़ा के पास में स्थित मॉल गाँव के लोगों ने यह जमीन हॉस्पिटल के निर्माण एवं संचालन के लिए मिशनरी को दान स्वरूप दी थी। यह बात कानूनी दस्तावेजों में भी दर्ज है। उससे इससे पहले लेप्रोसी रोगियों का एक सेन्टर पिथौरागढ़ के चण्डाक में स्थित था, जिसे एमसीआई द्वारा काफी सालों पहले बेच दिया गया है। इसके अलावा एडम्स गलर्स इण्टर कालेज के पास भी इनके द्वारा जमीन बेची जा रही है। बरेली में स्थित क्लारा स्वयं मिशन हास्पिटल जो एशिया का सबसे पुराना हॉस्पिटल था, उसे भी बड़े पूंजीपतियों को बेच दिया गया है।

नाम न छापने की शर्त पर लेप्रोसी हॉस्पिटल में कार्यरत स्टाफ कहता है लेप्रोसी हॉस्पिटल बंद होने के बाद हमारी नौकरी भी रहेगी या नहीं इसके बारे में हमें कुछ पता नहीं है। दिल्ली से आई एक टीम ने हमसे मीटिंग कर बोला कि यह हॉस्पिटल अब बंद होने वाला है। इसके अलावा हमें किसी तरह की कोई सूचना नहीं दी गई। अघोषित तौर पर हम क्रिश्चियन समाज द्वारा हॉस्पिटल बंद होने के खिलाफ किये जा रहे आंदोलन के साथ हैं।

ल्मोड़ा लेप्रोसी सेंटर में रहकर अपना उपचार करा रहे कुष्ठ रोगियों का कहना है कि हम यहां सालों से रह रहे हैं। हमारे लिए यही घर है। हम इसे छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। हमें फिर से उजड़ना किसी कीमत पर स्वीकार नहीं है। कुष्ठ रोग से ग्रसित होने के बाद हमारे परिजनों और समाज ने हमसे अछूतों जैसा व्यवहार किया। हमें घर से निकाल दिया गया।

कुछ कुष्ठरोगियों के घर वाले खुद उन्हें लेप्रोसी सेंटर में छोड़ गये और फिर कभी उनकी खबर लेने नहीं आये। हां, अपवादस्वरूप कुछ रोगियों के परिजन जरूर उनसे मिलने आते हैं। कई मरीज तो यहां पिछले 30-40 साल से रह रहे हैं। फिलहाल इस हॉस्पिटल में 24 कुष्ठरोगी हैं, जिनमें से 10 महिलाएं और 14 पुरुष हैं। इनमें अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, नैनीताल, चमोली, गढ़वाल और नेपाल से आये कुष्ठ के मरीज शामिल हैं।

उत्तराखंड का अल्मोड़ा स्थित मिशनरी का एकमात्र लेप्रोसी हॉस्पिटल, जो बहुत जल्द हो जायेगा

कुष्ठरोग से पीड़ित बुजुर्ग करन मूल रूप से नेपाल के रहने वाले हैं। 82 वर्षीय बुजुर्ग करन पिछले 25 साल से इस सेंटर में रह रहे हैं। गोरखा रेजीमेंट में रहे करन 1962 में भारत-चीन युद्ध जो भारत-चीन सीमा विवाद के रूप में भी जाना जाता है, में भी शामिल रहे थे।

रन को कुष्ठ रोग होने के बाद सरकार ने तकरीबन 25-30 साल पहले उन्हें रुड़की के पास किसी हॉस्पिटल में छोड़ दिया। उस वक्त सरकार की तरफ से उन्हें डेढ़ लाख रूपया दे दिया गया। उसके बाद न तो उन्हें सरकार से कोई मदद मिली, और न ही उनकी कोई सुध ली गयी। करन कहते हैं, विस्थापन की मार बहुत बुरी होती है साहब! पहले से ही समाज की मार से पीड़ित मुझ जैसे कुष्ठ रोगियों के लिए यह हॉस्पिटल किसी जन्नत और घर से कम नहीं है। अगर यह बंद हो जायेगा तो आखिर हम कहां जायेंगे। हम यहां से कहीं और किसी भी हाल में विस्थापित नहीं होना चाहते।

ल्मोड़ा स्थित ​इस लेप्रोसी हॉस्पिटल को ऐसे में बंद किया जा रहा है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट कहती है कि दुनियाभर में हर साल कुष्ठ रोग यानी लेप्रोसी के लगभग 2 लाख मामलों में से आधे से अधिक मामले भारत में पाए जाते हैं। वैसे भी हमारे देश में कुष्ठ रोग को एक धब्बे की तरह माना जाता है। इसे लेकर पहले से लोगों के दिमाग में पूर्वाग्रह है, इसलिए उनके साथ​ बुरी तरह भेदभाव किया जाता है।

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