NRC-NPR के खिलाफ झारखंड विधानसभा में हेमंत सोरेन ने किया प्रस्ताव पारित

Update: 2020-03-24 05:35 GMT

हेमंत भी चले नीतीश की राह, झारखंड विधानसभा में विपक्ष के हंगामे के बीच मोदी सरकार के NRC-NPR के खिलाफ प्रस्ताव पारित, चिंदबरम वाला NPR चलेगा...

रांची से राहुल सिंह की रिपोर्ट

जनज्वार। झारखंड विधानसभा ने एनआरसी व एनपीआर (NRC-NPR) के मौजूदा स्वरूप के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है। सोमवार 23 मार्च को बिना वोटिंग के ही सत्ता पक्ष ने इस संबंध में विधानसभा में विपक्षी भाजपा के हंगामे के बीच प्रस्ताव पारित करा लिया।

प्रस्ताव में कहा गया है कि झारखंड में एनआरसी (NRC) यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजनशिप नहीं लागू किया जाए। जबकि एनपीआर यानी नेशनल पापुलेशन रजिस्टर तैयार करने का काम 2010 के फार्मेट के अनुरूप किया जाए, न कि मौजूदा फार्मेट के अनुसार। 2010 में एनपीआर का फार्मेट कांग्रेस सरकार ने तैयार किया था और उस वक्त पी चिदंबरम गृहमंत्री थे। जबकि अभी अमित शाह गृह मंत्री हैं।

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झारखंड की झामुमो-कांग्रेस सरकार के इस कदम का भाजपा ने तीखा विरोध किया है। भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने इसे सरकार का वोट बैंक पाॅलिटिक्स करार दिया। उन्होंने कहा है कि सरकार एक ओर स्थानीयता की नीति के तहत 1932 का खतियान लागू करने की बात करती है, वहीं घुसपैठ कर रहे लोगों को खुली छूटे देने की बात भी करती है।

Full View के संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम ने 2010 के स्वरूप में एनपीआर लागू करने का प्रस्ताव रखा है। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अपडेट करने की मंजूरी दी है। तय कार्यक्रम के अनुसार, एक अप्रैल 2020 से 30 सितंबर 2020 तक सरकारी प्रतिनिधि घर-घर जाकर नागरिकों का डेटाबेस जुटाने वाले हैं। इसके जरिए अवैध रूप से रह रहे अन्य देशों के लोगों की पहचान करना है। बाहरी व्यक्ति अगर देश के किसी हिस्से में छह महीने से रह रहा है तो उसे भी एनपीआर में दर्ज किया जाएगा। यह अलग बात है कि अब कोरोना वायरस के खतरे के मद्देनजर यह काम प्रभावित हो सकता है।

पिछले महीने 25 फरवरी को झारखंड के पड़ोसी बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने भी ऐसा ही प्रस्ताव अपनी विधानसभा में पारित करवाया था। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने एनडीए का सहयोगी दल होते हुए भी ऐसा कदम उठाया और आश्चर्य की बात कि गठबंधन की मजबूरी के चलते बिहार भाजपा को भी नीतीश के इस कदम का समर्थन किया था।

बिहार विधानसभा के प्रस्ताव में भी मौजूदा एनपीआर को खारिज कर दिया गया था और 2010 के एनपीआर को लागू करने की मांग की गयी थी। वहीं, एनआरसी को भी जदयू ने लागू नहीं करने की मांग की थी। जदयू मोदी सरकार के द्वारा चर्चा में लाए गए तीन अहम मुद्दों में सिर्फ एक नागरिकता संशोधन कानून को ही समर्थन दिया, जिस पर पार्टी के विरोध का स्वर उठाने वाले पार्टी के दो नेताओं प्रशांत किशोर व पवन कुमार वर्मा को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

मौजूदा एनपीआर का विरोध क्यों?

मौजूदा एनपीआर का इस आधार पर विरोध किया जा रहा है कि इसे एनआरसी से लिंक किया गया है। पी चिदंबरम इसे मोदी सरकार का भयावह एजेंडा की संज्ञा दे चुके हैं। चिदंबरम कहा चुके हैं कि भाजपा सरकार द्वारा अनुमोदित एनपीआर 2010 के एनपीआर से बहुत ही खतरनाक है और अलग है।

Full View कहा था कि उस एनपीआर ने 2011 की जनगणना की तैयारी का समर्थन किया था, उसमें एनआरसी का कोई उल्लेख नहीं था। उन्होंने यह मांग की थी कि भाजपा को यह बताना चाहिए कि वह 2010 के एनपीआर फाॅर्म और डिजाइन का समर्थन करते हैं और इसको विवादस्पद एनआरसी से जोड़ने का कोई इरादा नहीं है।

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हीं अमित शाह ने इस पर कहा था कि एनआरसी सिर्फ जनसंख्या रजिस्टर है और उसका एनआरसी से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा था कि एनपीआर में सिर्फ जनसंख्या का रजिस्टर तैयार किया जाता है, जबकि एनआरसी में यह प्रूफ मांगा जाता है कि आप किस आधार पर देश के नागरिक हैं।

ब तक पश्चिम बंगाल, पंजाब, केरल, राजस्थान सहित कई राज्यों ने एनआरसी एवं एनपीआर के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा है। अब इस कड़ी में झारखंड भी जुड़ गया है।

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