महाराष्ट्र : कर्ज चुकाने के लिए नोटिस दे रहे हैं बैंक, आठ किसानों ने आत्महत्या की

Update: 2019-11-14 08:54 GMT

महाराष्ट्र में जिला प्रशासन की ओर से बैंकों को पत्र लिखकर आग्रह किया गया था कि किसानों को कर्ज चुकाने के लिए नोटिस ना भेजें। बावजूद इसके बैंक किसानों को नोटिस भेज रहे हैं। इसके चलते किसानों की आत्महत्या के मामले बढ़ गए हैं। इसी तरह बैंकों से नोटिस मिलने के कारण कई किसान मौत को गले लगा रहे हैं..

जनज्वार टीम, नई दिल्ली। महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के सेनगाव में रहने वाले संजय पिराजा चव्हाण पेशे से किसान थे। कभी बेमौसम की बारिश तो कभी सूखे के चलते फसलें खराब होती रहती हैं। परिवार को चलाने के लिए किसानों के पास खेत ही एक मात्र जरिया होता है। हर बार की तरह इस बार भी बेमौसम की बारिश के चलते फसलें खराब हो गईं। परिवार को चलाने और खेती करने के लिए संजय ने बैंक से 57 हजार 259 रूपये का कर्ज लिया था।

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सल फिर खराब हो गई जिसके चलते वह बैंक का कर्ज नहीं चुका पाए। कर्ज की समय सीमा बढ़ती गई मंगलवार को बैंक ने संजय के घर पर कर्ज चुकाने लिए नोटिस भेज दिया। बैंक का नोटिस देखकर संजय घबरा उठे। उन्हें कुछ समज में नही आया कि कैसे इतनी बड़ी रकम को चुकाना है।

संजय ने मंगलवार की शाम को अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उसी दिन औंढ़ा नागनाथ गांव के रहने वाले संभाजी मुकाडे ने भी बैंकों के नोटिस के कारण आत्महत्या कर ली। मराठी समाचार पत्र लोकसत्ता की रिपोर्ट के मुताबिक एक महीने के भीतर हिंगोली में 8 किसानों ने आत्महत्या की है।

नेशनल क्राइम ब्यूरो रिकॉर्ड के अनुसार 1995 से लेकर अबतक भारत में 296,438 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। आत्महत्या करने वाले किसानों में 60,750 महाराष्ट्र से हैं। वहीं साल 2015 से 2018 के दौरान 12,021 किसानों ने आत्महत्या की। साल 2019 के शुरुआती चार महीनों में ही 808 किसानों ने आत्महत्या कर ली। इस लिहाज से देखें तो चार किसान रोजाना आत्महत्या करते हैं।

जिला प्रशासन ने किसानों की आत्महत्या को देखते हुए बैंकों को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि नोटिस ना भेजें। नोटिस की वजह से कई किसान मौत को गले लगा रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद भी बैंकों ने किसानों को नोटिस भेजना जारी रखा।

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दो साल पहले राज्य सरकार ने ढोल-नगाड़े पीटते हुये छत्रपति शिवाजी महाराज कृषि सम्मान योजना की शुरूआत की थी। इस योजना के अंतर्गत जिन किसानों ने डेढ़ लाख तक का कर्ज लिया है। उनका कर्ज माफ कर किया जाना था। लेकिन ये सारी योजनाएं शब्दों में सिमट के रह गई। जमीनी हकीकत केवल किसानों की आत्महत्या ही है।

चुनाव के दौरान भाजपा सरकार ने अपने घोषणापत्र में किसानों की कर्जमाफी को लेकर वादा करके एक बड़ा दांवपेच खेला था। लेकिन सरकार के लिए अब ये असल मुद्दे नहीं हैं। दिन प्रतिदिन किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहे है। वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में सत्ता को लेकर इस तरह का घमासान मचा हुआ है कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया है।

र्तमान की सरकार को न गरीबों से मतलब है। और ना ही किसानों से उन्हे तो केवल सत्ता से मतलब है। महाराष्ट्र में सत्ता को लेकर इस तरह घमासान मचा हुआ है कि वहां पर राष्ट्रपति शासन लागू हो गया है। ये सरकार खुद ही फैसला नहीं कर पा रही है कि किसकी सरकार होगी। ऐसे में किसानों के मुद्दों पर कैसे और कौन काम करेगा ? बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के शुरुआती अनुमान के हिसाब से बेमौसम बारिश की वजह से 54 लाख हेक्टेयर से अधिक फसलें नष्ट हो गई हैं। सूखा ग्रस्त औरंगाबाद में 22 लाख हेक्टेयर फसले नष्ट हुई हैं।

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